क्रिया धातु 'ऋ' से ऋत शब्द की उत्पत्ति है। ऋ का अर्थ है उदात्त अर्थात ऊर्ध्व गति। 'त' जुड़ने के साथ ही इसमें स्थैतिक भाव आ जाता है - सुसम्बद्ध क्रमिक गति। प्रकृति की चक्रीय गति ऐसी ही है और इसी के साथ जुड़ कर जीने में उत्थान है। इसी भाव के साथ वेदों में विराट प्राकृतिक योजना को ऋत कहा गया। क्रमिक होने के कारण वर्ष भर में होने वाले जलवायु परिवर्तन वर्ष दर वर्ष स्थैतिक हैं। प्रभाव में समान वर्ष के कालखंडों की सर्वनिष्ठ संज्ञा हुई 'ऋतु' । उनका कारक विष्णु अर्थात धरा को तीन पगों से मापने वाला वामन 'ऋत का हिरण्यगर्भ' हुआ और प्रजा का पालक पति प्रथम व्यंजन 'क' कहलाया।
आश्चर्य नहीं कि हर चन्द्र महीने रजस्वला होती स्त्री 'ऋतुमती' कहलायी जिसका सम्बन्ध सृजन की नियत व्यवस्था से होने के कारण यह अनुशासन दिया गया - ऋतुदान अर्थात गर्भधारण को तैयार स्त्री द्वारा संयोग की माँग का निरादर 'अधर्म' है। इसी से आगे बढ़ कर गृह्स्थों के लिये धर्म व्यवस्था बनी - केवल ऋतुस्नान के पश्चात संतानोत्पत्ति हेतु युगनद्ध होने वाले दम्पति ब्रह्मचारियों के तुल्य होते हैं।
आयुर्वेद का ऋतु अनुसार आहार विहार हो या ग्रामीण उक्तियाँ - चइते चना, बइसाखे बेल ..., सबमें ऋत अनुकूलन द्वारा जीवन को सुखी और परिवेश को गतिशील बनाये रखने का भाव ही छिपा हुआ है। ऋत को समान धर्मी अंग्रेजी शब्द Rhythm से समझा जा सकता है - लय। निश्चित योजना और क्रम की ध्वनि जो ग्राह्य भी हो, संगीत का सृजन करती है। लयबद्ध गायन विराट ऋत से अनुकूलन है। देवताओं के आच्छादन 'छन्द' की वार्णिक और मात्रिक सुव्यवस्था भी ऋतपथ है।
अंग्रेजी ritual भी इसी ऋत से आ रहा है। धार्मिक कर्मकांडों में भी एक सुनिश्चित क्रम और लय द्वारा इसी ऋत का अनुसरण किया जाता है। 'रीति रिवाज' यहीं से आते हैं। लैटिन ritus परम्परा से जुड़ता है। परम्परा है क्या - एक निश्चित विधि से बारम्बार किये काम की परिपाटी जो कि जनमानस में पैठ कर घर बना लेती है।
कभी सोचा कि 'कर्मकांड' में 'कर्म' शब्द क्यों है? कर्म जो करणीय है वह ऋत का अनुकरण है। कर्मकांडों के दौरान ऋत व्यवहार को act किया जाता है। Rit-ual और Act-ual का भेद तो समझ में आ गया कि नहीं? :)
वाह!
जवाब देंहटाएंवाह । कुछ कुछ आया ।
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंनतमस्तक!!
जवाब देंहटाएंदेव देव नमस्तुभ्यं
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - ७ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअरे भाई! वहाँ मत डालिये। पंगे हो जाते हैं।
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