आक्रोश नहीं, ध्यान से देखना, सोचना, समझना और कार्य अपेक्षित हैं। रेत से सिर निकाल आँखें खोल कर देखिये कि कैसे कैसे सपने इस धरती को लेकर देखे जा रहे हैं!
आप ऐसा मानचित्र वास्तव में घटित होते देखना चाहेंगे?
राख़ मे आग बहुत है कुरेद कर देखो .... क्रान्ति के बीज दमन की हवा मे उगते हैं .... जब हज़ारों गुनाह होते हैं.... जुर्म जब बेपनाह होते हैं... उठ खड़े होते हैं जाँबाज कई... मेले बलिदानियों के लगते हैं.... ये धरा बाँझ नहीं थी न कभी भी होगी... इसके आँचल की उर्वरा है बहुत ... कोई दुश्मन जो तबाही देगा .... फिर से इतिहास गवाही देगा ... जिस जवानी ने फूल खेले हैं... वक्त आया तो खून खेलेंगे.... पर कभी आँच न आने देंगे.... अपनी धरती पे प्राण दे देंगे...
नींद की आगोश में चैन से सो रहे हैं सभी ,और कोई उनके घर के भीतर तक सुरंग बनाने में लगा है. आरामतलब ये लोग किसी आहट पर ऑंखें खोलते हैं मगर अनजान बने रहते हैं ,बेघर होने तक!
While the syllabus of schools brainwashes innocent children to a concept of false secularism, and teaches them to keep eyes closed to this cunningness to be socially accepted ad respectable, we seem to be racing towards this map. And this is probably not the final stage in their plans. It is only the initial stage...
संजय जी, बदलाव की बयार जब बहती है तो वह दशा और दिशा नहीं देखती है।।। चाहें वो गांधी का सत्याग्रह हो, असहयोग हो या जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन हो या मुक्तिवाहिनी का संघर्ष।
बाल्कनिकरण (balkanization) का प्रयास कम नहीं हुआ है इस देश पर।।। और हर बार का अनुभव यही सिखाया है, कम से कम मुझे, कि 'बिनु भय होंहि न प्रीत' और बात घूम-फिर के पुनः नेतृत्व और 'युगपुरुष' पे आ जाती है।।। :)
भय जब प्रतिहिंसा में बदलता है तो बहुत ही खूनी और खतरनाक रूप में सामने आता है। उत्तरपूर्व और खालिस्तान, कश्मीर, लाल गलियारा आदित्यदि का उदहारण भी हमारे सामने है। बहुत बार सोंचता हूँकि कितना अच्छा होता अगर हम प्रजातंत्र की जगह राजतंत्र अपनाए होते।।। लेकिन फिर प्रश्न प्रासंगिकता का उठ खडा होता है।।। का कीजिएगा? Hundred headed Hydra है यह :)
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राख़ मे आग बहुत है कुरेद कर देखो ....
जवाब देंहटाएंक्रान्ति के बीज दमन की हवा मे उगते हैं ....
जब हज़ारों गुनाह होते हैं....
जुर्म जब बेपनाह होते हैं...
उठ खड़े होते हैं जाँबाज कई...
मेले बलिदानियों के लगते हैं....
ये धरा बाँझ नहीं थी न कभी भी होगी...
इसके आँचल की उर्वरा है बहुत ...
कोई दुश्मन जो तबाही देगा ....
फिर से इतिहास गवाही देगा ...
जिस जवानी ने फूल खेले हैं...
वक्त आया तो खून खेलेंगे....
पर कभी आँच न आने देंगे....
अपनी धरती पे प्राण दे देंगे...
षड्यंत्रकारी बहुत मक्कार, दुष्ट और निर्दय हैं, जाग्रता!
जवाब देंहटाएंसजगता नितांत आवश्यक है। जहां जगत का कल्याण भाव नहीं है उनके प्रति क्षणिक सहानुभूति भी अक्षम्य अपराध है।
जवाब देंहटाएंबहुत लोग तो समझ नहीं रहे हैं, भोला समझ कर सहयोग किये जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंनींद की आगोश में चैन से सो रहे हैं सभी ,और कोई उनके घर के भीतर तक सुरंग बनाने में लगा है.
जवाब देंहटाएंआरामतलब ये लोग किसी आहट पर ऑंखें खोलते हैं मगर अनजान बने रहते हैं ,बेघर होने तक!
जिस प्रकार इन लोगों का षड्यंत्र चल रहा है, सही सत्य साबित होगा.
जवाब देंहटाएंसरकार और नागरिक सभी को समय पर चेतना चाहिए.
While the syllabus of schools brainwashes innocent children to a concept of false secularism, and teaches them to keep eyes closed to this cunningness to be socially accepted ad respectable, we seem to be racing towards this map. And this is probably not the final stage in their plans. It is only the initial stage...
जवाब देंहटाएंआगे आगे देखिये.... नक्शे बदलते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने भैया जी, आक्रोश नहीं।
हटाएंदिफ़ा ए पाकिस्तान काउंसिल का विज़न है यह
नीचे उर्दू का हिंदी अनुवाद दिया है मैंने।
अगला पडाव बलोचिस्तान, हैकि नही!!!
सादर
ललित
Future map of India as expected
Pakistan-Khalistan-Islamic North India-Islamic Bengal-Seven Sisters
Then in South
Hindu India-Islamic Hyderabad
From Difa i Pakistan council
ललित भाई, मेरी चिंता उधर की बजाय इधर के बदलाव की ज्यादा है।
हटाएंसंजय जी, बदलाव की बयार जब बहती है तो वह दशा और दिशा नहीं देखती है।।। चाहें वो गांधी का सत्याग्रह हो, असहयोग हो या जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन हो या मुक्तिवाहिनी का संघर्ष।
हटाएंबाल्कनिकरण (balkanization) का प्रयास कम नहीं हुआ है इस देश पर।।। और हर बार का अनुभव यही सिखाया है, कम से कम मुझे, कि 'बिनु भय होंहि न प्रीत' और बात घूम-फिर के पुनः नेतृत्व और 'युगपुरुष' पे आ जाती है।।। :)
भय जब प्रतिहिंसा में बदलता है तो बहुत ही खूनी और खतरनाक रूप में सामने आता है। उत्तरपूर्व और खालिस्तान, कश्मीर, लाल गलियारा आदित्यदि का उदहारण भी हमारे सामने है। बहुत बार सोंचता हूँकि कितना अच्छा होता अगर हम प्रजातंत्र की जगह राजतंत्र अपनाए होते।।। लेकिन फिर प्रश्न प्रासंगिकता का उठ खडा होता है।।। का कीजिएगा? Hundred headed Hydra है यह :)
सादर
ललित