(1)
और जब मैं अन्धा हो जाऊँ
तब तुम मुझे स्पर्श देना
वह मेरा प्रकाश होगा।
और जब मैं अन्धा हो जाऊँ
तब तुम मुझे स्पर्श देना
वह मेरा प्रकाश होगा।
(2)
चश्मिस!
जहाँ भी हो, सुनो!
किशोर भोरों में जो
टप टप टपकता
ऊषा का आह्वान करता
अभिशप्त विश्वामित्र
देख लेता था तुम्हें
तम के पार भी;
आज जान गया है प्रकाश को
अन्धा होने के बाद,
उसका चश्मा उतर गया है।
(3)
जहाँ भी हो, सुनो!
किशोर भोरों में जो
टप टप टपकता
ऊषा का आह्वान करता
अभिशप्त विश्वामित्र
देख लेता था तुम्हें
तम के पार भी;
आज जान गया है प्रकाश को
अन्धा होने के बाद,
उसका चश्मा उतर गया है।
(3)
कहो कि जब वही प्रकाश, वही पुतलियाँ, वही आकाश होगा
कहो कि जब उनके संघनन का रेटिना से नहीं साथ होगा
तुम उतरोगी हर साँझ उस उदास दिये सी मेरी आँखों में
जिसकी कालिख है जमा घर के इंतजारी ताखों में!
(4)
कहो कि जब उनके संघनन का रेटिना से नहीं साथ होगा
तुम उतरोगी हर साँझ उस उदास दिये सी मेरी आँखों में
जिसकी कालिख है जमा घर के इंतजारी ताखों में!
(4)
अन्धेरों ने कहा है हाथ बढ़ाने को
रोशनदानी हवा बही है पाँव उठाने को
मौन है कि कानों के लिये कुछ भी नहीं
छील गयी है याद खाल जलती भी नहीं
बस नथुने हैं कि काम जारी है
स्वेद वही भूमा की गन्ध वही
सूखे फागुन बस धूल भरी आँधी है।
(5)
रोशनदानी हवा बही है पाँव उठाने को
मौन है कि कानों के लिये कुछ भी नहीं
छील गयी है याद खाल जलती भी नहीं
बस नथुने हैं कि काम जारी है
स्वेद वही भूमा की गन्ध वही
सूखे फागुन बस धूल भरी आँधी है।
(5)
अबीर लिये बैठा हूँ मैं
तुम सेनुर थोड़ी ले आना।
तुम सेनुर थोड़ी ले आना।
रफ़ ... हाशिये पर ...
जवाब देंहटाएंअब लगता है कि अधूरे प्रेम पत्र को पूरा होने का समय आ गया है
जवाब देंहटाएंफ़ागुन फ़ागुन.. :)
जवाब देंहटाएंस्वेद वही भूमा की गन्ध वही
जवाब देंहटाएंसूखे फागुन बस धूल भरी आँधी है।
बहुत खूब!
एक से बढ़कर एक.....
जवाब देंहटाएं"अबीर लिये बैठा हूँ मैं
जवाब देंहटाएंतुम सेनुर थोड़ी ले आना।"...यह और खुले भईया!
नहीं तो इन दो पंक्तियों में अपना पूरा माधुर्य, अपनी पूरी कसक, अपना पूरा शृंगार समेटने की क्या जिद!
बेहतरीन।
लुकी छुपी फाग
जवाब देंहटाएंयह तो मुख्य धारा के भाव हैं, जीवन को रफ में न जियें, फेयर कर लें...
जवाब देंहटाएंतुम उतरोगी हर साँझ उस उदास दिये सी मेरी आँखों में
जवाब देंहटाएंजिसकी कालिख है जमा घर के इंतजारी ताखों में!
...अति सुन्दर!
किसी खास मौसम के साथ चली आती हैं यादें...
गज़ब कर दिया. अपने मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंअबीर लिये बैठा हूँ मैं
तुम सेनुर थोड़ी ले आना
आंखें टैस्ट कराते ही एेसे एेसे विचार !
जवाब देंहटाएंआँखों की समस्या से जूझते मेरे बाबा को ही ऐसी पंक्तियाँ सूझ सकती हैं. हे ईश्वर (अगर तू कहीं है तो) सुन, ऐसे लोगों को इतनी प्रतिभा मत दे दिया कर, जिन्हें खुद उस प्रतिभा का मोल न मालूम हो.....:)
जवाब देंहटाएंबंधु हिमांशु से सहमत हूँ-
"अबीर लिये बैठा हूँ मैं
तुम सेनुर थोड़ी ले आना।". इसे थोड़ा और विस्तार दिया जाय.