"आप फिलिस्तीनियों के हक़ की लड़ाई में उनके साथ
हैं या नहीं?"
"फिलिस्तीन? यह कहाँ है?"
"फिलिस्तीन? यह कहाँ है?"
"अखबार नहीं पढ़ते क्या? इजराइलियों
ने उनका जीना हराम कर रखा है।"
"अखबार पढ़ कर मुझे तो हाथरस, बागपत जैसे स्थानों पर रहने वाले लोगों से सहानुभूति होती है। उन्हें
सुकून से जीने का माहौल मिले इसके लिये आप के परवरदिगार से भी दुआ माँगने को तैयार
हूँ।"
"हाथरस? वहाँ क्या हुआ?"
"हम दोनों दो नावों में सवार हैं मित्र! बीच
में पानी नहीं, अपराध हैं और लहरें अलग अलग। इससे पहले कि
संसार स्वर्ग हो, अच्छा हो कि हम अपनी अपनी सहानुभूतियों के
साथ दोजखनशीं हो जायँ। वो मजहब को अफीम
मानने वाले क्या कहते हैं अंत में?"
"आमीन!"
"हाँ, वही।"
"आमीन!"
जवाब देंहटाएं"हाँ, वही।" :)
बढ़िया लेखन , गिरिजेश भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
शानदार!! इसका अनुभव मुझे तब हुआ जब मैंने बहुत करीब से देखा!! उसके पहले मेरा ओपिनियन भी अलग था!
जवाब देंहटाएंkya baat hai bahut khoob
जवाब देंहटाएंजरूरी नहीं कि हर संघर्ष सत और असत के बीच ही हो। अनेक संघर्ष बुराइयों की आपसी लड़ाइयाँ हैं, ... बुराइयाँ अच्छाई से भी लड़ती हैं, आपस में भी लड़ती हैं, और एक दूसरे को आड़ भी देती हैं क्योंकि उनकी सोच और कारोबार एक ही है, प्रकृति भी एक ही है - हिंसा, असहिष्णुता, स्वार्थ, संकीर्णता, घमंड और तानाशाही ...
जवाब देंहटाएंbadhiya
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