हदीस
की मानें तो भारत विजय अरबश्रेष्ठतावादी मजहब के संस्थापक की अंतिम इच्छाओं में से
एक थी। यदि यह मजहब नहीं होता तो भारत के सांस्कृतिक इतिहास के अद्यतन प्रस्थान
बिन्दु आदिशंकर (आचार्य) होते जिनके अंतिम समय के बारे में पाँचवीं सदी ईसापूर्व
से नवीं सदी ईस्वी तक की मान्यता है।
सन्
711 में सिन्ध पर इस्लामी आक्रमण हुआ। उस समय वहाँ
ब्राह्मण वंश का शासन था। उसके तत्काल पूर्व के राय वंश ने शैव आराधना के
कीर्तिमान स्थापित किये थे। राय वंश ने सिन्ध के पार जा कर खलीफा के राज्य के कई
भाग अपने नियंत्रण में कर लिये थे। सिन्धु नदी खिलाफत और बुत(बुद्ध)परस्त राज्यों
के बीच की 'प्राकृतिक सीमा' मानी जाती
थी जिसका जब तब दोनों ओर से अतिक्रमण किया जाता रहा। रायवंश की अंतिम रानी मंत्री
पर अनुरक्त थी और राजा की मृत्यु के पश्चात उन दोनों ने गुप्त विवाह कर लिया जिसका
रहस्य तब तक नहीं खोला गया जब तक कि मंत्री ने रानी की सहायता से सभी निकटवर्ती अधिकारियों का विनाश कर स्वयं को राजा नहीं घोषित कर दिया।
कासिम
के सिन्ध आक्रमण के समय इस नये वंश का तत्कालीन राजा दाहिर लोकप्रिय नहीं था। कारण
- एक भविष्यवाणी को असत्य सिद्ध करने के लिये उसने अपनी बहन से ही विवाह कर लिया
था और विरोध में उठे अपने भाई की मृत्यु का कारण भी बना था। निम्नवर्गीय प्रजा और
लड़ाके जाट कबाइली संस्कृति से अनुप्राणित बौद्ध धर्म के अनुयायी थे जब कि उच्च
कुलों और जनसामान्य में सनातन धर्म के साथ साथ दार्शनिकता से भरपूर विद्रोही बौद्ध धर्म का प्रभाव भी था। सभी धर्मों के प्रति
राज्य के सहिष्णु व्यवहार के होते हुये भी राजनीतिक वर्चस्व के लिये शीतयुद्ध एक
वास्तविकता थी। इस जटिल समीकरण में अरबों
के आक्रमण के समय जाट उनके साथ हो गये। आगे का इतिहास सबको पता है।
अपने
प्यारे संस्थापक की अंतिम इच्छा की पूर्ति के लिये तब से ले कर आज तक अरबी हर तरीका
अपनाते रहे हैं जिनमें तक़िया भी एक है जिसके अनुसार मजहब विस्तार के लिये छल, प्रपंच, धोखा, पाखंड, आवरण या किसी भी तरह का किया गया अपराध न केवल परम कर्तव्य है परन सवाब(पुण्य) दायी भी। पूरे भारत में पसरे अगणित औलिया, फौलिया, मजार, कब्र आदि तक़िया हेतु ही स्थापित किये गये।
ध्यान देने योग्य है कि अरब में ऐसे स्थान हैं ही नहीं, हो
भी नहीं सकते क्यों कि वास्तव में वे कुफ्र हैं।
धर्मप्राण
किंतु मूर्ख हिन्दू बहुसंख्यकों की किसी को भी पूज देने की प्रवृत्ति का सबसे सफल
दोहन मध्यकाल में पुष्कर के समान्तर केन्द्र स्थापित करने में अजमेर में हुआ और
ब्रिटिश काल में सिर्डी में। अपने सम्मोहक संगीत और प्रतीक शैली के साथ प्रसरित
हुये सूफियों के अवदान अल्प नहीं हैं किंतु यह भयानक सत्य है कि तक़िया के रूप में
सूफी मत ने भारतीय प्रतिरोध को बिन तलवार न केवल नष्ट कर दिया अपितु मानसिक
दोहन कर युगों युगों तक के लिये उसकी नियति भी लिख दी।शंकर
न हुये होते तो अरबी संस्कृति सिन्धु के इस पार गांगेय क्षेत्रों से ले कर
ब्रह्मपुत्र तक अपना परचम फहरा रही होती। शंकर पीठों पर भले अयोग्य बैठे हों किंतु
आज किसी ने अनजाने ही यदि तक़िया के भयानक षड्यंत्र के विरुद्ध स्वर उठाया है तो मैं
उसके समर्थन में हूँ।
Hadeeth Number One:
जवाब देंहटाएंhttp://hadith.al-islam.com/Display/D...Doc=3&Rec=4781
أخبرني محمد بن عبد الله بن عبد الرحيم قال حدثنا أسد بن موسى قال حدثنا بقية قال حدثني أبو بكر الزبيدي عن أخيه محمد بن الوليد عن لقمان بن عامر عن عبد الأعلى بن عدي البهراني عن ثوبان مولى رسول الله صلى الله عليه وسلم قال
قال رسول الله صلى الله عليه وسلم عصابتان من أمتي أحرزهما الله من النار عصابة تغزو الهند وعصابة تكون مع عيسى ابن مريم عليهما السلام
Thawban (RA) narrates that the Messenger of Allah (sallallahu 'alaihi wa sallam) said, "Two groups of my Ummah Allah has protected from the Hellfire: a group that will conquer India and a group that will be with 'Eessa son of Maryam (AS)" (Nasai & also mentioned in Ahmed & Tabarani.).
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Hadeeth Number Two:
Translation: Na'im b. Hammad in al-Fitan reports that Abu Hurayrah, radhiAllaahu 'anhu, said that the Messenger of Allah, sallallahu 'alayhi wa sallam, mentioned India and said, "A group of you will conquer India, Allah will open for them [India] until they come with its kings chained - Allah having forgiven their sins - when they return back [from India], they will find Ibn Maryam in Syria." (Kanzul-Ummal)
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Hadeeth Number Three:
http://hadith.al-islam.com/Display/D...Doc=3&Rec=4780
حدثني محمد بن إسمعيل بن إبراهيم قال حدثنا يزيد قال أنبأنا هشيم قال حدثنا سيار أبو الحكم عن جبر بن عبيدة عن أبي هريرة قال
وعدنا رسول الله صلى الله عليه وسلم غزوة الهند فإن أدركتها أنفق فيها نفسي ومالي وإن قتلت كنت أفضل الشهداء وإن رجعت فأنا أبو هريرة المحرر
Abu Hurayrah (RA) said, "The Messenger of Allah (sallallahu 'alaihi wa sallam) promised us the conquest of India. If I was to come across that I will spend my soul and wealth. If I am killed then I am among the best of martyrs. And if I return then I am Abu Hurayrah (RA) the freed." (Nasai & also mentioned in Ahmed & Hakim.).
अरब में ऐसे स्थान नहीं हैं क्योंकि वहाँ ऐसे स्थानों की कोई जरूरत नहीं। यहाँ मौका भी है, दस्तूर भी है सदियों पुराना।
जवाब देंहटाएंमैं भी समर्थन में
जवाब देंहटाएं…………और मैं गिरिजेश के समर्थन में हूँ।
जवाब देंहटाएंअक्षरसः सत्य....!!!
जवाब देंहटाएं-शक्ति प्रताप सिंह विशेन
कलेवर में आलेख छोटा हो, पर नीर-क्षीर करने में असंदिग्ध रूप से सफल है.
जवाब देंहटाएंमैं जब खुद को किसी एक पक्ष में रखने का प्रयास करता हूं तो खुद को कृष्ण अथवा भीष्म में से किसी एक स्थान पर रखने के लिए विवश होता हूं।
जवाब देंहटाएंदोनों के पास दोनों विकल्प थे, लेकिन भीष्म की प्रतिज्ञा ने उन्हें जबरन अधर्म के पक्ष में ला खड़ा किया। भीष्म की कोई कमजोरी नहीं थी, वे दुर्योधन को जानते थे और पाण्डुपुत्रों को भी.. लेकिन हस्तिनापुर की गद्दी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को उन्होंने अपनी मानसिक और शारीरिक बेडि़यां बना दिया, इसका नतीजा यह हुआ कि कौरव जो पाण्डुपुत्रों के समक्ष खड़े होने के योग्य भी नहीं थे, महाभारत का युद्ध लड़ने में सक्षम हुए।
सनातन मान्यता भी मुझे धर्म और अधर्म का चुनाव करने की छूट देती है। जहां तक बात है कि संप्रदाय से सत्ता हासिल करने के कुत्सित प्रयासों की, इसके विरोध में हम पहले ही मोदी जैसा हथियार चला चुके हैं। वह पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में विराजमान है और तेजी से अपने पैर राज्यो की ओर पसारने के लिए प्रयास कर रहे हैं। राजनीति को राजनीति के हथकंडों से अपनाया जाए और धर्म व संप्रदाय को इन्हीं के हथकंडों से।
सनातन को अगर कोई खतरा है तो वह कट्टरता से है, प्रतिबद्धता से है, धृतराष्ट्र की नेत्रहीनता से है, भीष्म की प्रतिज्ञाओं से है.. न कि औलिया फौलिया, तौलिया से...
केवल गद्दी पर बैठ जाने के कारण मैं शंकराचार्य की बात का समर्थन नहीं कर सकता। अगर शंकराचार्य ने घोर अंधकार के समय कुछ कदम उठाए होते तो मैं उनके साथ होता, अब मैदे में मुक्कियां मारने का कोई औचित्य नहीं है। जिस प्रकार पूर्व में वे एकांत में अपने त्याग का आनन्द उठा रहे थे, उसी प्रकार अब भी उन्हें कोने में ही पड़ा रहने देना चाहिए, जब तक कि कोई काबिल इस गद्दी पर न आ बैठे।
I completely agree
हटाएंजी नहीं, सनातन मान्यता विनाशाय दुष्कृताम की है, वह आपको धर्म और अधर्म का चुनाव करने की छूट नहीं देती है। सहनशीलता, विरोध और प्रोत्साहन, ये सब अलग-अलग बातें हैं। बुराई अच्छाई का गला काट देती है, अच्छाई क्षमा में यकीन करती है, इसका अर्थ यह नहीं हुआ की अच्छाई बुराई को बढ़ावा देती है।
हटाएं(आलेख और शंकराचार्य जी पर फिर कभी, अगर बहुत उकसाया गया तो )
1. मैं वैसे इन शंकराचार्य जी से असहमत रहती हूँ अक्सर और
हटाएं2. साईं बाबा से मुझे अक्सर कोई प्रोब्लम नहीं होती लेकिन
3. फिर भी इस मामले में मैं शंकराचार्य जी से खुद को सहमत पाती हूँ ।
4. सुरेश चिपलूनकर जी ने इस विषय पर जो आज पोस्ट की वह मुझे सच के काफी करीब लगता है ।
5. मैं साईं को विष्णु शिव कृष्ण और राम के रूप में दिखाए जाने के सख्त विरुद्ध हूँ । कुछ चित्रों में वे शेषशाई विष्णु होते हैं और माँ लक्ष्मी उनके पैर दबाती दिखती हैं । इस सब पर मुझे सख्त आपत्ति है ।
6. यह सब देखते हुए गिरिजेश जी का आलेख सही लग रहा है
The only thing that will NOT LET ME accept saai baaba is that he FORCED by his "SAINTLYNESS" a brahmin devotee to eat nonvegetarian food - which is NOT what i expect a man of spirituality to do.
हटाएंOf course I may be wrong - but i feel IF someone is a man of God, he may or may not be vegetarian but he will NOT force other vegetarians to eat meat
@@ सनातन मान्यता भी मुझे धर्म और अधर्म का चुनाव करने की छूट देती है।
हटाएं??????
बढ़िया सटीक लेखन , गिरिजेश भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
मैं क्या कहूँ हमेशा ही इन सब में कह भी नहीं पाता कि मैं कनफ्यूजन में हूँ ।
जवाब देंहटाएंकह भी नहीं पाता इन सब में कि बस मैं ही कनफ्यूजन में हूँ ।
जवाब देंहटाएंकह भी नहीं पाता हूँ कि इन सब में बस मैं ही बस कनफ्यूजन में हूँ ।
जवाब देंहटाएंअब अगर मैं कह दूँगा नौटँकी ना करो तो मेरी तो जान पर आ जायेगी इसलिये मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंमुझे भी यही उचित लग रहा है !
जवाब देंहटाएंमैं भी समर्थन करती हूँ ,समय पर चेत जाना ही उचित है!
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ कहाँ ग़ायब हुई जा रही हैं ?
जवाब देंहटाएंमेरा समर्थन है । " अब जाग मुसाफ़िर भोर भई.....। "
जवाब देंहटाएंहिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सिखों का जन्म हुआ और अब वह खुद को हिन्दू नहीं सिख कहता है ..बुद्ध को विष्णु का अवतार माना जाता है लेकिन बोद्ध स्वयं को हिन्दू नहीं कहते !
जवाब देंहटाएंअब साईं को मानने वाले जल्द ही साई धर्म की स्थापना कर लेंगे इस तरह अवश्य ही हिन्दू धर्म कमज़ोर होगा .
यह भी सच है कि अरब देशों मज़ार आदि जैसी जगहें नहीं हैं.
साईं को मानने वाले अचानक ही बढे हैं ...कोई २० साल पहले दिल्ली में एक ही मंदिर था लोदी रोड पर .....अब शहर की लगभग हर सोसायटी में एक साई मंदिर है. कुछ तो ख़ास बात होगी जो अचानक इतना प्रसार हुआ और अगर इस से खतरा था तो शुरू में ही इस प्रसार को रोका क्यूँ नहीं गया? अब कुछ नहीं हो सकता है जो है जितना है उसे बचा कर रकः जाए ,उसके संरक्षण के लिए प्रयास किये जाएँ तो बेहतर !
हिन्दू समुदाय की दुर्बलता रही कि हम पूजा-पाठ और बिना कुछ किए धरे पुण्य लूटने के लोभ में अनैतिक कार्यों में संलिप्त होते रहे .....या मौन बने रहे । आज स्थिति बहुत गम्भीर हो गयी है । साई मन्दिरों में अरबों की सम्पत्ति यदि मुस्लिमों के हाथ चली गयी तो उसका उपयोग साई के हिन्दू भक्तों के विरुद्ध नहीं होगा ...इस बात की कोई गारण्टी नहीं । सांई के भक्तों को समझाना होगा । शायद अब समय आ गया है कि हम पुनः निराकार ब्रह्म की उपासना का अभियान प्रारम्भ करें । केवल सांई की मूर्ति पूजा का विरोध किया जाना एक उपद्रव को जन्म दे सकता है । आसाराम के भक्त आज क्या कर रहे हैं ! असामाजिक तत्वों को धार्मिक आस्था के नाम पर देवतुल्य स्वीकारने की मूढ़ता का ख़ामियाज़ा भुगतने के लिए हिन्दू समाज को तैयार रहना होगा । सत्तर के दशक में संतोषी माता और स्टोव देवता की बड़ी धूम मची हुई थी । स्टोव देवता को विज्ञापन नहीं मिल सका और वे एक-दो साल बाद ही लुप्त हो गये । संतोषी माता ने आकार ग्रहण किया और म मन्दिर में विराजमान हो गयीं । निराकार ब्रह्म को मानने वाले भारत में देवी-देवताओं की आज भी कमी है । कल किसी नये भगवान का मन्दिर बन सकता है ...सम्भावनायें बनी हुयी हैं । भारत में भगवानों की बहुत आवश्यकता रही है । यह अकर्मण्य वर्ग की महत्वाकांक्षाओं और विवशताओं का परिणाम है । अब इस पर विराम लगने की आवश्यकता है । बहुत हो गया ....गीता का कर्म योग छोड़कर सांई मन्दिर में पागल हुए भारतीय समाज को आने वाला समय कभी क्षमा नहीं करेगा । इसलिए संशोधन और परिमार्जन की आवश्यकता तो है ......केवल बचे को संरक्षित करने से कम नहीं चलेगा । मूर्खतापूर्ण कृत्यों के उदाहरण आगे के लिए भी नासूर रहेंगे ।
हटाएंभाई गिरिजेश जी ! ये लिंक्स भी नज़र रखे जाने योग्य हैं । यदि हम यूँ ही ख़ामोश रहकर उपेक्षा करते रहे तो आने वाले समय में वैदिक ज्ञान के स्थान पर क़ुरान और हदीस ही हमारे आदर्श होंगे । कल एक बनारसी पंडित जी से चर्चा हो रही थी । उन्होंने फ़रमाया - सारे धर्म मनुष्य के हित के लिये हैं इसलिए हिन्दुओं को अपने पूर्वाग्रह त्यागकर इस्लाम स्वीकार कर लेना चाहिये।
हटाएंWhat Non-Muslims Say About Prophet Muhammad (pbuh)
The Last Prophet and Qur'an in Previously Revealed Scriptures
Prophet Muhammad in Hindu Scriptures, Dr. Badawi
मैं समर्थन में
जवाब देंहटाएंकृपया उस मंच पर यह लिंक न दें। उस मंच पर पहले घमासान हो चुका है, मैं दुबारा कोई विवाद नहीं चाहता।
जवाब देंहटाएंविदेशी आक्रमण के दौरान जाट अरबों के साथ शामिल हो गए थे ?
जवाब देंहटाएं