... देर
तक पिता के टँगे कुर्ते को देखता रहा। आर्य प्रतिमान वाली प्रशस्त ऊँची देह ऐसी
खिया गयी है कि पहनने पर अब वे खेत में खड़े पुतले से दिखते हैं...
...
एक उसाँस ले मैंने कुर्ते को आयु जान पहन लिया। मेरी बढ़ गई, उनकी घट गयी। दर्पण में देखा कि फूली शरद ऋतु का एक कास कनपटी पर ठहर गया
है। हाथ लगाया तो जाना पहली सफेदी थी।
बधाई ।
जवाब देंहटाएंदो पीढियों की सन्धि की खूँटी पर टँगा वह कुर्ता इन साढे तीन लाईनों में कितना कुछ कह गया.
जवाब देंहटाएंवार्धक्य की ओर बढ़ता एक शानदार चित्र ध्यान में आ गया - परिणति क्षीणकाया में हो तो हो( परिपूर्ण जीवन-भोग के बाद वह भी स्वीकार्य) .बेटी से पूछो तो कहेगी - वाह पापा ,अब तो और अधिक प्रभावशाली लग रहे हैं !
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