हिन्दू विवाह सप्तपदी, पारस्कर गृह्य सूत्र
1.8.1 |
प्रथम पग इषे - अन्न हेतु,
दूसरा पग ऊर्जे - बल हेतु,
तीसरा पग रायस्पोषाय - धन हेतु, पोषण, पुष्टि हेतु,
चौथा पग मायोभवाय - सुख सन्तुष्टि हेतु,
पाँचवा पग पशुभ्य: - पशु सम्पदा हेतु,
छठा पग ऋतुभ्य: - ऋतुओं हेतु,
सातवें के साथ स+खा, सखा हो मुझसे जुड़ जाओ,
मेरी अनुव्रता हो, सात लोकों में। लोक तो गिना दिये ऊपर, अन्तिम तो तुम्हारा सख्य है।
सात जन्मों की बात सम्भवत: यहाँ से आई होगी।
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पारस्कार विवाह संस्कार विधान दिन का है। सूर्यास्त पश्चात वर वधू को ध्रुवतारा दिखाता है -
अस्तमिते ध्रुवं दर्शयति। ध्रुवमसि ध्रुवं त्वा पश्यामि ध्रुवैधिपोष्ये मयि मह्यं त्वादादबृहस्पतिर्मया पत्या प्रजावती सञ्जीव शरद: शतमिति।
तुम ध्रुव हो, मैं तुम्हें ध्रुव देखता हूँ, तुम मेरे साथ ध्रुव अर्थात दृढ़ हो हे पोषणीया! तुम्हें बृहस्पति ने मुझे दिया है, मुझ पति से सन्तानोत्पत्ति करती हुई तुम मेरे साथ सौ शरद ऋतुओं तक रहो।
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विवाह पश्चात तीन रातों तक वे लवणहीन भोजन करेंगे, भूशायी रहेंगे तथा एक संवत्सर तक शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनायेंगे। एक संवत्सर तक सम्भव न हो तो बारह रातों तक, वह भी न हो सके तो छ: रातों तक, वह भी न हो सके तो न्यूनतम तीन रातों तक संयम रखें।
इस निषेध के पीछे कितना बड़ा मनोवैज्ञानिक तथ्य छिपा है, समझा जा सकता है।
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गाँवों में (नगरों में तो अब सब दुर्बी दुलाम दुलक्षणं है) इस निषेध को महिलाओं ने कुछ दिनों से जोड़ दिया है कि इन दिनों में कङ्गन नहीं खुलना! तीन से छ: दिनों तक का निषेध सामान्य है। मेरे विवाह पश्चात अनुपालन किया गया था।
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हिन्दू विवाह इतनी सुन्दर पद्धति सम्भवत: अन्य कोई नहीं होगी।
परसो एक विवाह में सम्मिलित हुआ। उसमें विवाह के साक्षी रूप में ध्रुव तारा को इंगित किया गया था। मन में यह विचार आया कि यदि विवाह दिन में होते हैं तो ध्रुव तारा साक्षी कैसे होगा। अब समझ आया।
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