आज फिदेल कास्त्रो की मृत्यु हो गयी, वही कास्त्रो जिनको उनकी दीर्घ आयु ने अपने मित्र सहयोगी ‘चे’ की तुलना में बौना बना कर रखा। कास्त्रो अपने पीछे एक ऐसा क्यूबा छोड़ कर गये जिसमें शिक्षा और स्वास्थ्य सेवायें नि:शुल्क हैं, टॉयलेट पेपर की राशनिंग है और पुस्तकें विलासिता की वस्तुओं सी महँगी हैं। वामपंथी क्यूबा के निवासी कहते हैं – सरकार हमें वेतन देने का बहाना करती है और हम काम करने का।
कॉलेज में था तो बोलीविया की डायरी, कुछ संस्मरण आदि में चे-कास्त्रो द्वय के बारे में पढ़ा था और भक्ति एवं व्यक्ति पूजा क्या हो सकती हैं, जाना था। भारत में देखें तो केवल ‘भक्ति आन्दोलन’ ही ‘अपने नायकों के प्रति कम्युनिस्ट श्रद्धा’ के समांतर खड़ा हो सकता है। फिर भी दोनों इसलिये आदरणीय हैं ही कि उसे सफल कर दिखाया और जीवित रखा जिसे वे क्रांति कहते थे, वह भी अमेरिका जैसे शत्रु के सामने। उनकी क्रांति को मिटाने की अभिलाषा शत्रु में इतनी थी कि सम्भवत: आज भी क्यूबा के अप्रवासियों को अमेरिकी नागरिकता सबसे आसानी से मिल जाती है!
असमय मृत्यु योद्धाओं को अमरता का चोला पहना जाती है जैसा कि यहाँ भगत सिंह और उधर ‘चे’ के साथ हुआ। दीर्घायु उन्हें अभिशप्त धूमिलता से अलंकृत करती है क्यों कि विरुद्ध रह कीर्ति पाना सरल होता है बनिस्बत इसके कि सत्ता के केन्द्र में रहते हुये कीर्ति पायी जाय। फिदेल कास्त्रो के साथ यही हुआ।
फिदेल की राह बाहर से आक्रमण की थी और आज भारत में जो हो रहा है वह भीतर से शत्रु पर आक्रमण की है। क्रांति के समय फिदेल सत्ता के बाहर ‘विद्रोही’ थे और यहाँ मोदी सत्ताधीश प्रधान हैं। फिदेल को जनता ने नहीं, उन्हों ने जनता के लिये स्वयं को चुना था। मोदी को जनता ने चुना। फिदेल कास्त्रो का सत्ता में आने से पूर्व विद्रोही इतिहास था, जिसकी छाया से ‘सत्ताधीश कास्त्रो’ कभी उबर नहीं पाया। मोदी का ऐसा कोई इतिहास नहीं। मोदी की तुलना के लिये लोग भूतपूर्व सिंगापुरी प्रधान का नाम ले रहे हैं, सही ही ले रहे हैं। उन्हें मोदी और कास्त्रो की यह तुलना बचकानी लगेगी लेकिन जब क्रांतिकारी परिवर्तन को लक्ष्य के रूप में देखेंगे तो सम्भवत: समझ पायेंगे कि मोदी ने क्या कर दिया है!
कम्युनिस्टों से मोदी को जो सीखना है, वह है प्रचार तंत्र का आक्रामक उपयोग। उसके लिये क्यूबा के किसी स्क्वायर पर जा कास्त्रो के गगनचुम्बी पोर्ट्रेट देखने की आवश्यकता नहीं, दिल्ली से कुछ दिनों पूर्व उट्ठे करोड़ो के राजकीय विज्ञापनों को याद करना भर है। यह देखना भर है कि कैसे राज्यसभा टीवी का प्रयोग अब भी वामपंथी अपने प्रचार के लिये कर रहे हैं और कैसे ‘मतदाताओं से उनकी जात पूछने वाला’ कांग्रेसी दलाल अब स्टूडियो में बैठ छोटे व्यापारियों को उनकी ही तिजोरी दिखा रहा है कि देखो! खाली हुई जा रही है! सोशल मीडिया पर मोदी भक्तों को उस बारीकी से सीखना है जिससे उस दलाल को आभा-वलय प्रदान किया जा रहा है।
करना कुछ नहीं है, बस जिस तरह से वे नकारात्मक घटनाओं को उछाल रहे हैं वैसे ही मोदी टीम को सकारात्मक घटनाओं का इतना घनघोर प्रचार करना है कि दलालों की म्याऊँ सुनाई तो दे लेकिन समझ में आने से पहले ही तिरोहित हो जाये! और ऐसी घटनायें अपार हैं क्यों कि एक शांत क्रांति के स्वागत में जनता का मूड अभी भी उत्साही बना हुआ है, भारत बदल रहा है!
एक वृद्ध के यहाँ से हम लोगों ने पर्स लिया। मैंने थोड़ी उत्सुकता दिखाई तो उन्हों ने बड़े प्यार से ‘पेपरलेस’ भुगतान यंत्र की प्रक्रिया समझाई।
यह छोटे से कैलकुलेटर के बराबर का यंत्र है जिसमें कार्ड लग जाता है। देखो बेटे! स्क्रीन पर तुम्हारे नाम के साथ राशि भी आ गई है। तुम्हारे मोबाइल पर भी सन्देश आ गया होगा। इसमें पर्ची नहीं निकलती और प्रयोग बहुत आसान है। तीन सौ रुपये मासिक शुल्क पर यह उपलब्ध है। खाते से लिंक है, मोबाइल में ऐप इंस्टाल है, इंटरनेट है ही, बस ब्लूटूथ से जोड़ कर रखना है, भुगतान सीधे खाते में!
...फिदेल कास्त्रो के नाम क्यूबा में मार्ग नहीं हैं और भविष्य में यहाँ मोदी के नाम भी नहीं होंगे। नवोन्मेषी लोग 'मार्ग और मूर्ति' सरीखी बहुजनी कांग्रेसी गतिविधियों में अपनी ऊर्जा नहीं खपाते। हाँ, उन्हें प्रचार तंत्र तगड़ा रखना ही होता है और दण्ड का भी। कौटल्य भी तो यही कह गये हैं, नहीं?
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति …. very nice article …. Thanks for sharing this!! 🙂
जवाब देंहटाएंआपने तो पूरी कविता रच दी.
जवाब देंहटाएंबहरहाल, एक और परिवर्तन. भोपाल में पोस्टर लगे हैं - स्वच्छता में नं 1 शहर का रैंक पाने की ललक और प्रेरणा के लिए. थोड़ा ध्यान से देखा तो वाकई शहर साफ सुथरा नजर आया. पांच साल पहले तो यहाँ का बड़ा तालाब भी बदबू मारता था और पानी के ऊपर आधे तालाब में कचरा फैला रहता था - जलकुंभी का शासन था. आज यह तालाब भी लुगानो झील जैसा दिख रहा था. और, यह कोई मजाक नहीं है!
बहुत ही बढ़िया आर्टिकल है ... Thanks for this article!! :) :)
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी, मैं पहले से आपके लिखने का कायल हूं। लेकिन आपकी मोदी-भक्ति देखकर विस्मित हूं। क्या छल के पीछे का सच देखने की आपकी दृष्टि एकदम मर गई है? राजशाही के जमाने की सोच से निकलकर लोकशाही की भावना को आत्मसात करें। तब आपको अपनी भी भूमिका समझ में आएगी और आज के भारतीय सत्ता तंत्र की अंतनिर्हित खामियां भी। कोई भी सार्थक युद्ध लड़ने के लिए पहले मोह से निकलना ज़रूरी है जिसे खुद से लड़ना पड़ता है।
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