सरस तीर सन्न्यासी बैठा था। पीले, धूसर और किञ्चित हरे मण्डूक मेंक माँक, मेंक माँक ... कर रहे थे। उनके फूलते पिचकते कपोलों के अनुकरण में जैसे जल में भी बुलबुले उठ रहे थे। बुलबुले उठते, आकार ले कुछ पल प्लवित रहते और फूट जाते। सन्न्यासी की देह फुहार जैसा अनुभव करती, वर्षा होगी, होगी ...
... पर्जन्य अनुग्रही हुआ। सावन की झमाझूम वर्षा आरम्भ हो गयी। मण्डूक चुप हो गये, बुलबुले जाने कहाँ गये, प्राणी जगत का स्वर रहा ही नहीं, मात्र पर्जन्य की हहर थी।
सन्न्यासी बैठा सुनता रहा, सुनता रहा, सुनता रहा। तृप्त हुआ और अनुरोध कर बैठा - अब थम भी जाओ। चमत्कार हुआ, सब थम गया। पल भर, बस उस पल में जब कि सब थम गया था, नीरवता थी, सन्न्यासी ने गहन गुहा से आह्वान सुना और चल पड़ा।
प्रस्थान स्वस्ति में पार्श्व गायन पुन: आरम्भ हो गया - मेंपों, मेंपों, मेंपों ... स्वर भिन्न थे।
सन्न्यासी के ओठ स्मित आ विराजी - ये मण्डूक भी न... कितने विलासी होते हैं, गायन निपुण भी। गंधर्वों जैसे, बंदी जैसे, सूत मागध जैसे ... संसर्ग अवसर मिल जाय तो चुप हो जाते हैं।
दूर गगन की घटा ने उसकी सोच में हाँ में हाँ मिलाई ... आ जाओ न!
उसने मस्तक ऊपर कर सम्मान दिया और साँसें सावित्री हो गयीं -
अ आ उ ऊ .ँ उ उँ ऊँ हँ .ँ उ ऊ ऊ उ म अ उ म आ उ म ओ .ँ ओं ओँ आ उ म तत् तत् स स स स व इ ई ई वई त तु तू र र इ ई ईई व व र रण ए ए हे ई ई इ ण इ ई य य यं य य आ ऊँ तत् तत् स स स स व इ ई ई वई ई म ह ही हीं हीँ ओँ ओं ओ आ अ अ अ: ह : : .ँ ,,,
सुन्दर लेख,
जवाब देंहटाएंस्वागत है मेरे नए ब्लॉग पोस्ट #भगवान पर|
https://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/god.html
इस लघुकथा को न समझ पाने की व्यथा से ग्रस्त हूँ। मुझ अज्ञानी सा कोई और है क्या...?
जवाब देंहटाएंI really appreciate your professional approach. These are pieces of very useful information that will be of great use for me in future.
जवाब देंहटाएंBlogging is the new poetry. I find it wonderful and amazing in many ways.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
जवाब देंहटाएंप्रिय ब्लॉगर,
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सादर