कूर्म पुराण में मल मूत्र त्याग कहाँ न करें, इसकी पूरी सूची दी हुई है :
'व्यासगीता' से :
छायाकूपनदीगोष्ठचैत्याम्भः पथि भस्मसु ।
अग्नौ चैव श्मशाने च विण्मूत्रे न समाचरेत्॥२,१३.३६॥
न गोमये न कृष्टे वा महावृक्षे न शाड्वले ।
न तिष्ठन् वा न निर्वासा न च पर्वतमस्तके ॥ २,१३.३७॥
न जीर्णदेवायतने न वल्मीके कदाचन ।
न ससत्त्वेषु गर्तेषु न गच्छन् वा समाचरेत् ॥ २,१३.३८॥
तुषाङ्गारकपालेषु राजमार्गे तथैव च ।
न क्षेत्रे न विले वापि न तीर्थे न चतुष्पथे ॥ २,१३.३९ ॥
नोद्यानोदसमीपे वा नोषरे न पराशुचौ ।
न सोपानत्पादुको वा छत्री वा नान्तरिक्षके॥२,१३.४०॥
न चैवाभिमुखे स्त्रीणां गुरुब्राह्मणयोर्गवाम् ।
न देवदेवालययोरपामपि कदाचन ॥ २,१३.४१ ॥
न ज्योतींषि निरीक्षन्वानसंध्याभिमुखोऽपिवा ।
प्रत्यादित्यं प्रत्यनलं प्रतिसोमं तथैव च ॥ २,१३.४२ ॥
...संक्षेप में कहूँ तो मार्ग, वृक्ष के नीचे, घास वाली भूमि, जोती हुई भूमि पर भी मल मूत्र त्याग का निषेध है।
एक रोचक पाठभेद है जो दर्शाता है कि कैसे पुराण श्लोक दूषित किये गये, यह क्षेपकों से इतर प्रवृत्ति है:
पाठ 1:
न सोपानत्पादुको वा छत्री वा नान्तरिक्षके
पाठ 2:
न सोपानत्पादुको वा गंता यानांतरिक्षग:
...
दूसरा वाला पाठ गीताप्रेस संस्करण में है जिसका अर्थ दिया है - यान में अंतरिक्षगामी हो कर (मल मूत्र त्याग न करे)। पहले वाले से सीधा अर्थ निकलता है कि अंतरिक्ष की ओर ऊर्ध्व हो कर न करे (समझ ही सकते हैं कि क्या स्थिति होगी! )
...
अब दूसरे श्लोक को लेकर यदि कुछ उत्साही लोग यूरी गगारिन से सहस्राब्दियों पहले ही अंतरिक्ष में भारतीय मनुष्यों की आवाजाही का प्रमाण प्रस्तुत करने लगें तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।
न सोपानत्पादुको वा गंता यानांतरिक्षग:
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दूसरा वाला पाठ गीताप्रेस संस्करण में है जिसका अर्थ दिया है - यान में अंतरिक्षगामी हो कर (मल मूत्र त्याग न करे)। पहले वाले से सीधा अर्थ निकलता है कि अंतरिक्ष की ओर ऊर्ध्व हो कर न करे (समझ ही सकते हैं कि क्या स्थिति होगी! )
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अब दूसरे श्लोक को लेकर यदि कुछ उत्साही लोग यूरी गगारिन से सहस्राब्दियों पहले ही अंतरिक्ष में भारतीय मनुष्यों की आवाजाही का प्रमाण प्रस्तुत करने लगें तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।
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महाभारत वर्णित सुदर्शन द्वीप के रूप में विश्व का मानचित्र, चंद्रमा में, दो खरहों तथा पीपल की पत्तियों वाला, प्रतिबिम्बित एवं कथित रूप से रामानुजाचार्य द्वारा निर्मित घूम ही रहा है!
घोर कलियुग यही है!
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