मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

लालबहादुर शास्त्री - संक्षिप्त परिचय


श्री लालबहादुर वर्मा का जन्म आश्विन कृष्ण सप्तमी/अष्टमी, जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत के दिन उत्तरप्रदेश में गङ्गातीरे मुगलसराय (आज का चंदौली जनपद जो कि वाराणसी से लगा हुआ है) में हुआ था, संवत   वि., दिन था रविवार । सूर्योदय से कुछ ही अनन्तर सप्तमी से अष्टमी होने से वह दिन भानुसप्तमी भी था एवं स्त्री पितरों के श्राद्ध का दिन भी। 
पिता का नाम श्री शारदा प्रसाद, माता का नाम श्रीमती रामदुलारी । इनका कुलनाम श्रीवास्तव बताया जाता है।
एक वर्ष की आयु के भी न हुये थे कि पिता की छाया सिर से उठ गई । काशी विद्यापीठ से स्नातक होने के पश्चात उन्हों ने अपने नाम से 'वर्मा' हटा कर विद्या आधारित 'शास्त्री' लगा लिया ।
तत्कालीन कांग्रेस से जुड़े शास्त्री जी ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी १ वि. को भारत गणराज्य के दूसरे प्रधानमंत्री बनने से पूर्व परिवहन मन्त्री थे, स्वतंत्र भारत के पहले। कहा जाता है कि राजकीय बसों में महिला प्रचालक की नियुक्ति उन्हीं के समय में आरम्भ हुई। भीड़ को नियंत्रित करने हेतु लाठी के स्थान पर पानी की धार का विकल्प भी उन्हों ने सुझाया।    
 ग्रेगरी में वह रेलमंत्री हुये। चार वर्ष पश्चात तमिलनादु में हुई एक रेल दुर्घटना में  यात्रियों के मृत्यु का नैतिक उत्तरदायित्त्व स्वयं पर लेते हुये उन्हों ने त्यागपत्र दे दिया।
प्रधानमंत्री रहते उन्हों ने किसानों एवं उनसे जुड़े उत्पादन उपक्रमों पर विशेष ध्यान दिया। दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हेतु राष्ट्रीय डेरी विकास परिषद की स्थापना उन्हीं के समय हुई। अन्न अनुपलब्धता की विकट स्थिति का सामना करने हेतु उन्हों ने 'हरित क्रान्ति' की नींव रखी। आकाशवाणी द्वारा उन्हों ने लोगों से प्रति सप्ताह एक समय उपवास रखने का निवेदन किया । जनता ने अनुपालन किया, सोमवार की साँझ को भोजनालयों ने भी चूल्हे स्थगित कर दिये थे। इस उपवास को जनता ने 'शास्त्री व्रत' नाम दिया ।
वह शुचिता एवं सादगी के प्रतिमान थे।
 ग्रेगरी में पाकिस्तानी आक्रमण के विरुद्ध विजय इन्हीं के नेतृत्त्व में मिली एवं २ ग्रेगरी के चीन युद्ध में हुई पराजय के कारण गिरे आत्मविश्वास को जनता ने पुन: प्राप्त किया । शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया ।
युद्ध में विजय पश्चात विदेशी भूमि ताशकंद (तत्‍कालीन सोवियत संघ का भाग)  समझौते को गये जो कि एक बड़ी रणनीतिक चूक थी । जो जीता था, सब पाकिस्तान को लौटाने के पश्चात सन्दिग्ध परिस्थितियों में अगले ही दिन माघ कृष्ण पञ्चमी  वि. को उनकी मृत्यु हो गई । संदिग्ध परिस्थितियों के कारण हत्या की सम्भावना भी व्यक्त की जाती है जो कि तत्कालीन परिस्थिति में अनुमानित की जा सकती है। मृत देह का शव परीक्षण नहीं किया गया । 
वे पहले नागरिक थे जिन्हें मृत्यु पश्चात 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया । जनता आज भी उन्हें सम्मान देते हुये 'शास्त्री जी' नाम से सम्बोधित करती है।  
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संदर्भ : 
http://www.freepressjournal.in/webspecial/lal-bahadur-shastri-birth-anniversary-10-lesser-known-facts-about-the-man-of-peace/1145405

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