शनिवार, 25 अप्रैल 2009

Flash ! Taliban in Delhi !!

अभी अभी साथी कर्मचारियों को एक मेल लिख कर घर लौटा हूँ. टी.वी. के किसी खबरिया चैनल पर चल रहा है दिल्ली में तालिबानी(?). मुझे लगता है कि अपना अंग्रेज़ी मेल जस का तस ब्लॉग में देना उचित होगा. थोड़ा बैक ग्राउण्ड - कश्मीरी लोगों और विशेषकर पंडितों पर चले अत्याचार पर एक रिपोर्ट दिखी, मन द्रवित और आन्दोलित हुआ तो मेल लिख मारा. मेल में संदर्भित अटैचमेंट यहाँ है: http://ikashmir.net/atrocities/index.html

एक दु:खद सत्य:
google में atrocities in kashmir लिख कर सर्च करने पर तथाकथित हिन्दू और भारतीय अत्याचार के कितने ही परिणाम आते हैं जो पाकिस्तानियों या उनके सरपरस्तों द्वारा लिखे गए हैँ. उन्हीं के बीच यह लिंक भी अकेला दिखता है. हम अपनी और अपने लोगोँ की समस्याओँ के प्रति कितने उदासीन हैं ! एक बात और - यह दस्तावेज़ नग्न सत्य है, किसी मज़हब के ख़िलाफ नहीं. आप पाएंगें कि इसमें उन तथाकथित इस्लाम के झण्डाबरदारों द्वारा मुसलमानों पर किए गए अत्याचारों का भी लेखा जोखा है.

अथ
Pls. be patient, logical and free from collective hypnotism of secularism, liberalism, idealism, intellectual idealisation and philosophical moorings before and while going through the attached article.
Sometimes the truth is so bare that it demands not your interpretation but your action and even change in your day to day thinking.
Taliban is standing at your borders. Despite all advancements in thought process and civilisation, we by our own in-actions and mal-actions, have invited this danger. How many Talibans in infancy are roaming around you, you don't know. But with just a little of caution and alertness, you can sense them and act to kill them in infancy. It is not an attempt to create fear psychosis. Taliban is a reality to tackle with. Taliban is a thought process solid in action. Don't wait for a big action by state when they'll stand before you in full gory and glory. Your alert day to day acts will help in and will result in preventing the infant from developing as adult. All you have to do is, act before it is too late !!

इति
सच जानना हो तो यहां जाएं :
http://www.kashmiri-pandit.org/projectr3/survivorstories.php?sid=0



2 टिप्‍पणियां:

  1. आपका ब्लॉग पढ़ा, हमारे देश का ये बहुत बड़ा दुर्भाग्य है की एक बहुत बड़ा तबका खास तौर पर बुद्धि जीवियों का, ऐसा है - जो अच्छी तरह से जानता है कि क्या क्या किया जाना चाहिए किन्तु न जाने आलस्य कि ये कौन सी खुमारी है जिसकी वजह से वो उठना नहीं चाहता ,खडा नहीं होना चाहता ! और मजे की बात ये है कि बड़े आराम से लोग जात झाड़ के कह देते हैं कि इस देश का कुछ भी नहीं हो सकता. तालिबान हमारे इर्द गिर्द मौजूद है और उसकी कामयाबी के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं. आपका ब्लॉग सराहनीय है शायद कुछ अंधे और बहरे बुद्धि जीवियों के आँख कान कुछ हरक़त में आ जाये.
    ब्लॉग जगत में मातृभाषा के प्रोत्साहन के लिए कोटि कोटि नमन . उम्मीद है कि आप लिखते रहेंगे.
    प्रणाम.

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  2. तालिबानी हमारी सीमाओं पर ही नहीं हमारे बीच में भी हैं। यह खतरा बाहर से कम और भीतर से ज्यादा है। बाहरी तालिबानियों से तो सेना और दूसरे सशस्त्र बल लड़ लेंगे। लेकिन जो हमारी आस्तीन में छिपे हुए हैं उनको पहचान कर मिटा देने का कठिनतर कार्य तो हम नागरिकों को ही करना है।

    आपकी पोस्ट अच्छी है।

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