चीनी कम्युनिस्ट शक्तियों द्वारा तिब्बत पर सशस्त्र क़ब्जा और एक प्राचीन बौद्ध संस्कृति का विनाश आधुनिक समय की सबसे भयानक त्रासदियों में से एक है। पिछ्ले कुछ वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों से तिब्बत समस्या को पर्याप्त प्रचार प्रसार मिला है और यह समस्या बहुत तेजी से अंतरराष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है। इसे जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग के आगे प्रस्तुत किया गया है।
तिब्बत की समस्या तत्काल ध्यान माँगती है क्यों कि हजार के हजार चीनी तिब्बत में प्रवेश कर रहे हैं और तिब्बतियों की विशिष्ट ‘जन, संस्कृति और धर्म समूह’ पहचान के ऊपर विलीन होने और पूर्णत: नष्ट हो जाने का अभूतपूर्व खतरा मँडरा रहा है।
बहुत पहले 1959 में ही, विधिवेत्ताओं के अंतरराष्ट्रीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘तिब्बत और विधि-शासन के प्रश्न’ में उल्लिखित किया कि वहाँ जातिसंहार (genocide) के आपराधिक वृत्ति प्रयोजन ( mens rea) और आपराधिक कदाचार (actus reus), दोनों प्रमाण पाये गये। इस रिपोर्ट के अनुभाग ‘जातिसंहार का प्रश्न’ के अंतिम अनुच्छेद में यह लिखा गया: “... इसलिये यह आयोग आग्रहपूर्ण आशा करता है कि यह मामला संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा तत्काल उठाया जायेगा। क्यों कि इस समय जो जातिसंहार के प्रयास की तरह लग रहा है वह तत्काल और पर्याप्त कार्यवाही के अभाव में पूर्ण जातिसंहार के कृत्य में बदल जायेगा। तिब्बत का अस्तित्त्व और तिब्बतियों का जीवन दोनों दाँव पर लगे हैं और विश्व के सर्वोच्च अंतर्राष्ट्रीय संगठन के मार्फत सच का खुलासा करने योग्य पर्याप्त नैतिक शक्ति शक्ति संसार में कहीं न कहीं अवश्य बची होगी।“
चीनी लेबर कैम्प में बँधुआ/बेगार तिब्बती मज़दूर |
हालाँकि तीन अलग अलग अवसरों पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने तिब्बत में मानवाधिकार हनन के बारे में अपनी गहरी चिंता जताई लेकिन उस समय इसके आगे जाने में असमर्थ रहा। फिर भी, हम यह तर्कसंगत विश्वास रखते हैं कि चूँकि तिब्बत का प्रश्न एक बार पुन: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण हो रहा है और चीनी तिब्बतियों का सांस्कृतिक जातिसंहार कर रहे हैं; इसके सदस्य राष्ट्र चीन के ऊपर प्रतिबन्ध को लेकर सामने आयेंगे जैसा कि दक्षिण अफ्रीका के साथ अक्सर किया गया है।
जातिसंहार के रोकथाम और दण्ड के लिये सम्मेलन (9 दिसम्बर 1948) में, जो कि संयुक्त राष्ट्र की आम महासभा के संकल्प 96(1) दिनांक 11 दिसम्बर 1946 के अनुसरण में हुआ था, जातिसंहार को समस्त राष्ट्रों के क़ानून के विरुद्ध अपराध की संज्ञा दी गई है। जिन राष्ट्रों ने वहाँ हस्ताक्षर किये उन्हों ने जातिसंहार के रोकथाम और उसे दंडित करने का प्रण लिया। इसलिये, प्रत्येक उस राष्ट्र का जिसने कि हस्ताक्षर किये, यह नैतिक दायित्त्व बनता है कि वह जातिसंहारक कृत्यों के विरुद्ध कार्यवाही करे।
तिब्बत में चीनी रहवासियों के विशाल पैमाने पर हो रहे घुसपैठ के कारण तिब्बतियों द्वारा अपनी राष्ट्रीय पहचान खो देने का खतरा पहले के मुकाबले आज कहीं अधिक है। संयुक्त राष्ट्र इससे अनजान नहीं रह सकता। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के लिये एक अराजनैतिक संस्था वैज्ञानिक बौद्ध संगठन (Scientific Buddhist Association) द्वारा एक वृहद रिपोर्ट ‘Tibet : The Facts’ तैयार की गई। यह रिपोर्ट तिब्बत की परिस्थिति का सम्पूर्ण और वस्तुनिष्ठ आकलन प्रस्तुत करती है। यह रिपोर्ट चीन से तिब्बत की स्वतंत्रता के पक्ष या विपक्ष में तर्क नहीं रखती और अपनी वस्तुनिष्ठता और तथ्यगत परिशुद्धता के लिये व्यापक रूप से सराही गयी है। यह रिपोर्ट तिब्बत समस्या को समझने के लिये स्पष्ट खाका प्रदान करती है और चीनी अधिकारियों द्वारा तिब्बत में सन् 1950 से किये गये भीषण मानवाधिकार हननों का लेखा जोखा प्रस्तुत करती है।
तिब्बत के बारे में हाल ही में उपलब्ध हुये नये तथ्यों और सामग्रियों के उपयोग द्वारा वैज्ञानिक बौद्ध संगठन ने इस रिपोर्ट को अद्यतन किया है और हम उन्हें इस रिपोर्ट की पुनर्प्रस्तुति के लिये दी गई अनुमति के लिये धन्यवाद देते हैं। हम अद्यतन रिपोर्ट का पाठ उपलब्ध कराने के लिये श्री पॉल इंग्राम को विशेष रूप से धन्यवाद देते हैं।
7 अक्टूबर 1986 सोनाम नोर्बु दैग्पो
चेयरमैन
तिब्बती युवा बौद्ध संगठन
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मूल (Original) : TIBET : THE FACTS
Copy Right : Scientific Buddhist Association, London, 1984
First Revised Edition : The Tibet Young Buddhist Association, Dharamsala, India with Permission of SBA.
प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद ऊपर उल्लिखित अंग्रेजी मूल से किया गया है। इसका उद्देश्य मात्र चेतना और ज्ञान प्रसार है, किसी भी तरह का व्यवसायिक या आर्थिक लाभ नहीं। विभेद की स्थिति में अंग्रेजी पाठ ही मान्य होगा।
संस्कृति का सुनियोजित संहार।
जवाब देंहटाएंसोनाम नोर्बु दैग्पो को पढवाने के लिए आभार आपका ! कई नयी जानकारियां मिली ! तिब्बत को हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही अमानवीयता और संहार का भंयकर दौर दौरा है तिब्बत पर मगर चीनियों से निपटाना क्या आसान है ?
जवाब देंहटाएंकई आक्रान्ताओं का विनाश हुआ ही है उसके कारण भी अंकुरित हुए -देखना है चीन का पराभव कब होता है ?
जातिसंहार uff
जवाब देंहटाएंकोई समुदाय शांति से रहना चाहे तो यह बहुतों को नागवार गुजरता है.
जवाब देंहटाएंविश्व समुदाय द्वारा चीनी कम्युनिस्ट राक्षसों के सामने खडे हो सकने की अक्षमता ने तिब्बत की समस्या को विकराल कर दिया है। जहाँ पशु-पक्षियों के आगम विलोपन को इतना प्रचार मिलता है वहीं एक समूचे राष्ट्र और संस्कृति को कम्युनिस्ट इम्पीरियलिज़्म द्वारा पूरी नृशंसता से कच्चा चबा लिया जाना अनदेखा रह जाता है। तिब्बत का दमन फिलिस्तीन, सूडान, लिबिया और ईस्ट तिमूर के नाम पर हल्ला मचाने वालों की तोताचश्मी और दोहरे मापदंडों का जीता-जागता उदाहरण है। इस मामले में शायद पण्डित नेहरू एक अकेले राजनीतिज्ञ थे तो तानाशाहों के मुँह में से दलाई लामा को निकाल पाने का साहस कर सके और उनके इस साहस की वजह से आज की दुनिया कम से कम तिब्बत की समस्या से परिचित तो हुई। चीन ने तिब्बतियों और दलाई लामा की बौद्ध-अहिन्सा की नीति का भी जिस तरह जमकर शोषण किया है उससे यह स्पष्ट है कि इस तरीके से यह समस्या सुलझ नहीं सकती है। बुद्ध को बचाने के लिये क्या फिर से परशुराम को ही आगे आना पडेगा?
जवाब देंहटाएंतिब्बत को अपना सहयोग देने के लिये कृपया "तिब्बत के मित्र" जैसी संस्थाओं के सदस्य बनें और इस प्रकार के आन्दोलनों से जुडें।
लिखते रहो गिरिजेश, क्या पता कब किसी मानवाधिकारी की कुम्भकर्णी नीन्द टूटे और तिब्बत को कुछ राहत मिले।
इस विषय पर कोई खास जानकारी नहीं थी। आज विस्तृत जानकारी ही नहीं मिली स्थिति की भयावहता से भी परिचय हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख, तिब्बत के बारे अच्छी जानकारी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह आधुनिक सभ्यता है ...कई बार यकीन नहीं होता !
जवाब देंहटाएंतिब्बत के लिये चीन से न्याय मांगना वैसा ही है जैसे कोई शाकाहारी शेर के सामने सिर्फ़ इस बूते पर खड़ा हो जाये कि उसने खुद कभी जीव हत्या नहीं की इसलिये वह भी किसी के द्वारा नहीं मारा जायेगा।
जवाब देंहटाएंजिस भावना से आप लिख रहे हैं उसी से हम पढ़ भी रहे हैं.
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील पोस्ट ......
जवाब देंहटाएंसराहनीय सद्प्रयास.....
जवाब देंहटाएंदुनिया कितनी तरक्की कर रही है...जुमला जब सुनती हूँ तो मन में अट्टहास उठता है..क्या सचमुच ?
मानवता ,संवेदनाएं यदि तरक्की करे तो दंभ भरा जा सकता है तरक्की का...
आपका प्रयास सराहनीय है गिरीजेश जी...
जवाब देंहटाएंआज एक कमेंट में इस ब्लाग को देखा। आद्योपांत पढ़ूँगा।
जवाब देंहटाएंआपका यह प्रयास अतुलनीय और श्लाघनीय है। यह जारी रहे और जन जन तक पहुँचे।
हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।