शुक्रवार, 22 मई 2009

राजमहल की डिनर टेबल से (भाग - 2) - राजकुमार की शिक्षा

भाग - 1 से आगे ....

डिनर के बाद जब महारानी मोनियो अगले दिन के विभिन्न अवसरों पर बोलने के लिए लिखी हुई बातों को याद करने, दुहराने और अभ्यास करने विश्राम कक्ष में चलीं गईं तो राजकुमार राउल की क्लास चालू हुई. जनमर्दन बेदी आज तक सब कुछ लिख कर मोनियो कि जुबान बन उनके मुँह से हकलवाते रहे थे, उसी से प्रभावित हो कर राउल को शिक्षा भ्रष्ट करने के उनके प्रस्ताव को मोनियो ने मान लिया था.
राजपरिवार की परिपाटी है कि उनके सामने सिपहसालार और अन्य राजपरिवारों के सदस्य ही कुर्सी पर बैठ सकते हैं, अन्य लोग नहीँ. इस परिपाटी के जनक भी जमा-हर-ला ही थे और इसे उन्हों ने गोद लिए गए अपने मुँहबोले पिता से बहुत बारीकी से सीखा था. उन्हें वह लाड़ दुलार से पाखण्डी भी कहा करते थे.

धुरखेल संकट समेटी की बैठकों में चूँकि सिपहसालार, दरबारी और तुच्छ रियाया सभी शामिल होते थे इसलिए एक और संकट को टालने के लिए पाखंडी ने यह व्यवस्था दी थी कि लबना माल मिजाज की दुकान की तर्ज पर झक सफेद गद्दे की व्यवस्था हो. गद्दे पर सभी लोग भावी राजा के साथ नीचे ही बैठते थे. इससे एक ओर तो वह राजा के सामने कुर्सी पर बैठने के धर्मसंकट से बँच जाते थे तो दूसरी ओर रियाया भावी राजा की सिंहासन के बजाय जमीन पर बैठने की विनम्रता देख निहाल हो जाती थी.
चूँकि सालों साल मोनियो के कुत्ते की थाली में ही भोजन करने की विनम्रता के बाद भी जनमर्दन बेदी का ओहदा अभी भी थर्ड कटेगरी के दरबारी तक ही सीमित था, इसलिए वह राजकुमार राउल के सामने कुर्सी पर बैठ नहीं सकते थे. दूसरी तरफ गुरु की भूमिका निर्वाह करने के कारण वह उनसे नीचे भी नहीं बैठ सकते थे. हालाँकि ग़लत इम्प्रेशन जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन फिर भी फर्क तो पड़ता ही था. दुविधा की इस स्थिति से उबरने के लिए राजकुमार ने अपने परबाबा(या परनाना? या पता नहीं क्या! बड़ा कंफ्यूजन है) कि विधि ही अपनाई और. .
गद्दा बिछ गया.
राउल ने बैठते ही आदेश दिया - बेदी! हम पंचतंत्र नहीं पढ़ेंगे.

जनमर्दन ने चुटिया बाँधते हुए व्यवस्था दी, हुकम, पंचतंत्र तो पुरानी बात हो गई. वो तो प्रात: स्मर्णीया महारानी को इस पिछ्ड़े देश की एक ही किताब का नाम मालूम है इसलिए उन्हों ने ऐसा कह दिया. उन्हें कोकशास्त्र या पंचतंत्र कुछ भी दे दो, उन्हें वह पहले से लिखे अबूझ भाषण ही लगेंगे. सच पूछिए तो मुझे भी कोकशास्त्र और पंचतंत्र में कोई फर्क नहीं बुझाता.
अबे, यह कोकशास्त्र क्या है? बेदी, तुम उलझाओ नहीं.
जनमर्दन को अब तक अपनी जुबान फिसलने का एहसास हो चुका था सो टिकट कटे सिपहसालार सी सूरत बना कर बोले - हुकम! कोकशास्त्र रति क्रीड़ा से सम्बन्धित एक पुस्तक है जिसकी शिक्षा की आप को क्या हिन्दुस्तान के किसी भी जवान को जरूरत नहीं है. मेरे मुँह से ऐसे ही निकल गया.
राउल को डाक बँगले में गुजारी पिछली रात याद आ गई सो शरमा कर पहले लाल फिर गुस्सा कर लाल पीले होते हुए भौंके - जुबान सँभाल कर रखा करो नहीं तो नई के बजाय टॉमी वाली पुरानी थाली में खाना पड़ेगा, अपने आप ही कट जाएगी. बताओ क्या पढ़ाना चाहते हो?
हुकम! राष्ट्रीय शव-तांत्रिक दलदल में जो उठा पटक चल रही है, उसकी शिक्षा न केवल उन विरोधियों को जानने में आप की मदद करेगी जो हर बार अलग अलग गैर-खानदानियों को राजा बनाने का शिगूफा छोड़ देते हैं बल्कि आप इस बूढ़े देश की तमाम बुढ़भसी प्रवृत्तियों के बारे में भी जान जाएँगें.
हुआ ये कि कल मैं उनकी तरफ़ निकल गया था, सूँघने के लिए. आप को तो पता ही है कि जब जब टॉमी बिमार होता है, सूँघने का काम मैं ही करता हूँ. मैंने देखा:

अबल जुगाड़ी मारदेई के सिर में ला-ला-दानी सिन्दूर और तेल मिला कर लगा रहे थे. डफली और भाँजहाथ कीर्तन गा रहे थे और सेकुलरखोदी ला-ला-दानी के दोनों कानों में बारी बारी से तेल डाल रहे थे. अज़ीब सा नज़ारा था.

बेदी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया. वे लोग ऐसा क्यों कर रहे थे?

हुकम, बताता हूँ. . . . . . .(अगला भाग)

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