रात 11:30 बजे उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा का घर जला दिया गया। उनकी तीन गाड़ियाँ भी फूँक दी गईं। पुलिस प्रशासन जैसे तमाशा ही देखते रहे। मीडिया पर भी हमले की खबर है।
मुझे राजनेताओं से कोई सहानुभूति नहीं होती। ऐसा जो कुछ भी होता है उसके पीछे या तो राजनेता होते हैं या धर्मगुरु कठमुल्ले या उनके चमचे। लेकिन एक सभ्य लोकतांत्रिक समाज में क्या इस तरह की घटना का होना और प्रशासन की मूक सहमति होना स्वीकार्य है? जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ में यह हाल है तो बाकी जगहों पर क्या होगा? उत्तर प्रदेश की किस तरह की छवि यह सरकार सम्प्रेषित कर रही है?
यह प्रदेश तो जैसे अभिशप्त है। पहले आजादी की लड़ाई की विरासत वालों ने शिष्ट टाइप का आतंक रचा। प्रतिक्रिया में धर्म और जाति की राजनीति ने सिर उठाया। बात बहादुर पार्टी विद डिफरेंस के सारे करम वैसे के वैसे। लखनऊ में कुछ ठोस काम शुरू हुए तो उसके बाद गुण्डई के साथ साथ लोहिया पार्क, पथ वगैरह उपजे और अब इस सरकार का ‘प्रस्तर श्रृंगारित कुराज’। सारा धन जैसे कुण्ठा को मूर्तिमान करने में ही जाना चाहिए।
देश की क्रीम मेधा नौकरशाही तो जैसे कुन्द हो अपना घर भरने और ‘देवी देवताओं’ के यहाँ मथ्थे टेकने में ही व्यस्त है। क्या ये सारे नेता और प्रशासक इतने बेवकूफ हैं कि वास्तविक और सस्टेनेबल विकास क्या होता है, इसका पता ही नहीं ! मुझे शक होता है।
केवल सस्ती नारेबाजी और दिखावे की बातें ! विकास का कोई ठोस और व्यवहारिक ब्लू प्रिंट नहीं। उत्तर प्रदेश में रही किसी भी सरकार के पास विजन नहीं रहा जो व्यक्तिगत और पार्टीहित के अलावा दूरगामी विकास की सोचे और उसकी ऐसी नींव डाले कि कोई सरकार आए जाए, विकास सतत और सत्त्वर गति से होता रहे।
मुझे तो अपने देश के लोकतंत्र के मॉडल पर ही शको सुबहा है। जैसे इसे एक विशाल और व्यवस्थित षड़यंत्र के तहत रचा गया है – इस तरह के ‘कुराज राज’ को पैदा कर उसे फलने फूलने देने के लिए। लेकिन ऐसी व्यवस्था में भी कई राज्य विकास की दौड़ लगा रहे हैं फिर उत्तर प्रदेश क्यों नहीं? कोफ्त होती है, शायद हम उत्तर प्रदेशी लोग भ्रष्टाचरण और काहिली के कुछ अधिक ही शिकार हैं या सचमुच असहाय हैं ?
यह स्थिति सिर्फ एक राज्य की नही है बदहाली हम झारखंडी भी झेल रहे हैं ..मेरे शहर धनबाद में पिछले दिनों हत्यायों की झडी लग गई ..अब तक कुछ नही हो पाया ..हम विवश हैं यह सब झेलने को. रह - रह के परिवार और सदस्यों की चिंता होती है.
जवाब देंहटाएंएक सही और विचारणीय सवाल् उठाया है आभार्
जवाब देंहटाएंयह लोकतंत्र एक व्यवस्थित षड्यंत्र ही है मित्र...
जवाब देंहटाएंबेवकूफियाना बयान बहुत उर्वर जमीन होता है राजनीति के लिये! :)
जवाब देंहटाएंअब सबके सिर पर कलियुग नाच रहा है। निम्नतम स्तर तक गिरने की होड़ लगी है। अभी बहन जी का बयान आया है कि उनके खिलाफ़ अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाली महिला का कुकृत्य माफ़ी के लायक नहीं है। उसका घर जलाने वाले लोग बसपा पार्टी से किसी प्रकार सम्बन्धित नहीं थे। यह कि सोनिया गान्धी के इशारे पर रीता बहुगुणा ने वह बयान दिया। दलितों के बलात्कार की कीमत पैसे से लगाने वाला SC/ST एक्ट कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने बनवाया था। यह सब कांग्रेस की ही करनी है।
जवाब देंहटाएंतो अब देखना है कि कांग्रेस के पास इसका क्या जवाब है। रही बात सस्टेनेबल विकास की तो यह किस अजायबघर में पाया जाता है, यह भी बताना पड़ेगा तभी इन नेताओं को इसकी जानकारी हो सकेगी। अभी तो रीता बहुगुणा द्वारा लिखित वह पुस्तक पढ़ी जा रही है जिसमें उन्होंने नेहरू-गान्धी परिवार के खिलाफ़ लिखा था।
उत्तर प्रदेश के हालत सचमुच बहुत बुरे हो चले हैं -व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं रह गयी है !
जवाब देंहटाएंविगत दो दशकों से यह हिंसा की प्रवृत्ति अधिक दिखाई दे रही है जबसे हम अमेरिका परस्त हुए हैं क्यों?
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र तो बस नाम के लिए है इस देश में। उद्योगपतियों और विदेशी सौदागरों के लाभ के लिए देश चलाया जा रहा है। परमाणु संधि को ही देखिए, इससे क्या देश की गरीबी मिटनेवाली है? असली लोकतंत्र आने में अभी बहुत देर है। यूपी में हाल कुछ बदततर है पर अन्य राज्यों में भी स्थिति बहुत भिन्न नहीं है। हिंदी प्रदेश की दिक्कत यह है कि वहां लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसलिए बात को समझ नहीं पाते। जैसे-जैसे साक्षरता बढ़ेगी, उम्मीद की जानी चाहिए कि लोग स्वयं विकल्प तलाशने की ओर प्रवृत्त होंगे।
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