नौ महीनों की ज़िद्दी निर्लज्जता के बाद जब मेरे पड़ोसी खुले सीवर मैनहोल पर चैम्बर बना कर ढक्कन लगाने के कार्य का श्रीगणेश हुआ तो मैं अति प्रसन्न हुआ। अब यह टेंसन खत्म होना था कि कोई भैंस सरीखा जानवर या बच्चा उसमें फिर से गिर जाएगा ।
लेकिन अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि:
- प्रसन्न होऊँ ?
- अपने केश नोचूँ ?
- निर्लज्जता जारी रखूँ ?
या
उपर सुझाए तीनों काम करूँ ?
आप स्वयं देख लीजिए।
यह वही लखनऊ है जहाँ तीन हजार करोड़ की लागत से पथरीले पार्क बनाए गए हैं लेकिन मैनहोल का ढक्कन उपलब्ध नहीं है। मुझे यह अभी तक समझ में नहीं आया कि जब ढक्कन गोल था तो फ्रेम आयताकार क्यों लगवाया गया ? अनजाने में ही जल संस्थान ने मॉडर्न शिल्पकार का काम कर दिया है।
भारत की व्यवस्था का इससे अच्छा स्कल्प्चर नहीं हो सकता - आयताकार छेद पर गोलाकार ढक्कन जो ढक कर भी न ढक पाए। अन्दर की बजबजाहट दिखती रहे और काम पूरे होने की घोषणा भी हो जाय।
राष्ट्रीय दुर्व्यवस्था को हमारा शासकीय तंत्र ऐसे ही ढके हुए है।
अरुण यह मधुमय देश हमारा...
जवाब देंहटाएंaise posts ko to media cover nahi karegi....ha.n kareen saif ke rishto ko jaroor kaid karegi...YE BHARA DESH HE MERA...LEKIN YE LOKTANTR KA MEDIA BHI HAI.
जवाब देंहटाएंइस प्रश्न को तो कम्पटीशन औऱ IIT के सिलेबस में डालना चाहिए कि एक आयत पर ढक्कन का माप यह है, बताओ कि ढक्कन का बाकी हिस्सा कहां गया :)
जवाब देंहटाएंमेन होल इस तरह से ढ्क दिया गया है कि हाथी का पांव न धंस सके, बस।
जवाब देंहटाएंजब हाथी नहीं गिरेगा मेन होल में, तो कोई भी नहीं गिरेगा।
कितना तो रटा होगा आपने भी बचपन में, हाथी के पांव में सबका पांव।
तो ये तो अंडरस्टुड है सर कि हाथी का पांव नहीं तो किसी का भी पांव नहीं।
लगाएये नारा:- हाथी नहीं गणेश है,
बह्र्मा, विष्णु, महेश है।
a round peg in a sqare hole
जवाब देंहटाएंa round peg in a sqare hole
जवाब देंहटाएंDamn innovative !
जवाब देंहटाएंA circular lid on rectangular frame !.....wow...This is called - "Thinking out of the box".
Muskuraiye ki aap Laucknow mein hain !
कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिए
जवाब देंहटाएंकहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए!
(साभार)
थू थू .....
जवाब देंहटाएंसारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा…………………।यूँ ही तो नही कहा गया ना…………………और अगर नही है तो देश के कर्णधार बना देंगे।
जवाब देंहटाएंमित्र, यह व्यवस्था की पारदर्शिता परिलक्षित करती है. कुछ भी छुपाना नहीं चाहते. अब पूरा ढ़क देते तो आप कहते कि मैनहोल में कुछ छुपा देना चाहते हैं. फिर आप की चिंता क्या थी, मैनहोल का खुला होना या खुले होने के कारण किसी का गिर जाना. तो अब कोई गिरेगा तो नहीं. अब आपकी चिंतायें बदलती रहें तो वो क्या करें.
जवाब देंहटाएंवर्ग व वृत्त में अन्तर न आता हो शायद ।
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जवाब देंहटाएंनागरिक के जान की कीमत क्या होती है ?
एक मुआवज़ा... या और भी कुछ ?
इस मेनहोल में आदमी केवल घायल होकर रह जायेगा,
मुआवज़ा कम देना पड़ेगा, कि नहीं ?
क्या एक नागरिक इस कीमत पर अपँग व्यवस्था को अपनी सेवा भी न देगा ?
यदि वह स्वयँ ही अपँग हो गया तो सरकार को मुआवज़ा बढ़ाने का एक मौका और मिलेगा, कि नहीं ?
क्यों ऎसी समाजविरोधी पोस्ट लिखते हो, गिरिजेश बाबू ?
यह तो मेरे व्यक्तित्व सरीखा है - चौकोर पर गोल ढक्कन फिट करने की जद्दो जहद।
जवाब देंहटाएंगंवई कोर पर साहबी एक्स्टीरियर!
शहर के सुन्दरीकरण में एक और आर्ट का इज़ाफा है ये......
जवाब देंहटाएंये पाबलो-पिकासो के नाम से होगी...समझा कीजिये आप...
abstract आर्ट पर मुग्ध होंगी मैडम..बहिन जी...
हाँ नहीं तो...
ha ha ha.. ati sundar sudhaarikaran..
जवाब देंहटाएंइसीमें खुश रहिये कि कम से कम ढक्कन तो है भले ही गोलाकार है....अनजाने में गिराने का तो डर नहीं..चेतनामयी पोस्ट...
जवाब देंहटाएंसर जी अपने मुल्क मे यह कोई बहुत अचरज की बात नही है..क्योंकि ऐसे न जाने कितने आयताकार होल्स को ऐसे वृत्तीय ढक्कनॊ से ही ढ़क दिया जाता है..क्योंकि उस होल का आयताकार ढक्कन किसी और वृत्तीय मेनहोल को ढ़क रहा होगा..ऐज ए ढक्कन हम भी कही-न-कही फ़िट हो जाना चाहते हैं..’मिसफ़िट’ ही सही...
जवाब देंहटाएंफिलहाल निसपृहता से काम लें ...ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का...विषयक गीत की पैरोडी बनाकर भी कुंठायें बाहर मत निकालिये !
जवाब देंहटाएंमेनहोल के अन्दर रहने वाले प्राणीयो को भी तो ताज़ी हवा की आवश्यक्ता होगी . इसीलिये ........
जवाब देंहटाएंपहले प्रसन्न होवें > आयत पर वृत्त हेतु
जवाब देंहटाएंफिर केश नोचें > जब कोई फंस/ गिर जाए
निर्लज्जता जारी रखें > पुन: पोस्ट लिख कर
:-D
आप भी क्या गोल व चौकोर का झमेला लेकर बैठ गए? जाइए कितने ही तो पार्क बन गए हैं, कितनी ही मूर्तियाँ बनी हैं, उन्हें बनाने के लिए शिल्पकारों को नौकरी मिली अब बचाने के लिए एक नया सुरक्षा दल बनेगा। दो चार गिर गए, मर गए तो कोई बात नहीं। यह प्रदेश का हाल है। देश भर में एक परिवार के नाम से रास्ते, सड़क, पुल, चौराहे, दोराहे, योजनाएँ व जो चाहे बन रहा है। गनीमत है कि हम सबको भी वह नाम अपने आगे लगाने को बाध्य नहीं किया जा रहा।
जवाब देंहटाएंआप किसी चौकोर मूर्ति लगवाने का प्रस्ताव रखिए। देखिए ढक्कन से जल्दी मूर्ति बनकर आ जाएगी और वह कहीं भी फ़िट भी हो जाती है।
घुघूती बासूती
मिसफिट होना इस देश में सरकारी नौकरी पाने वालो के लिए अघोषित योग्यता है
जवाब देंहटाएंशिकायत कर दीजिये फिर कुछ दिनों में ढक्कन आयताकार और फ्रेम गोल बनवा दिए जायेंगे !
जवाब देंहटाएं....लगता है ढक्कन साथ लेकर घूम रहे हैं आखिर भय जो होगा कोई पीछे से लात न मार दे !!!
जवाब देंहटाएंभाईसाहब ढक्कन तो पहले ही बना लिये गये थे ..
जवाब देंहटाएंअपने देश में विकास की यही दशा और दिशा है।
जवाब देंहटाएंवाह रे ' शान-ए-अवध ' लखनऊ !
जवाब देंहटाएंन्यू योर्क के सारे मैन होल हैं ' मेड इन इंडिया ' तकनीकी परिपुष्टता के नमूने .
हाँ अपने देश में हम परिपूर्णता की परिभाषा नहीं खोज पाते / जानते .
और सारी टिप्पणियां पढ़ मज़ा भी आया !
@ प्रवीण पाण्डेय
जवाब देंहटाएंबंधू वर्ग और वृत्त का अंतर भले न समझ आता हो बहन जी को पर ,,,,,,,,,,,
' वर्ग ' और ' वित्त ' का तो आता है .
असली कुंजी तो यही आइ . बाकी जो या जिसका मन करे गिरे भहराए ,बहिन जी के ठेंगे से :) .
बहुत ही शर्मनाक स्थिति है इस प्रदेश की। शिकायत करके देखिए तितर-बितर कर दिये जायेंगे आप शायद उसी तरह जिस तरह माला प्रकरण पर कुछ प्रमुख सचिव लोग हो गये।
जवाब देंहटाएंअम्बेडकर जयन्ती मनाइये...। लगता है चैन से रहना पसंद नही है आपको...।
अगर पूरा ढक जाएगा तो पानी भाप बनकर उड़ेगा कैसे :)
जवाब देंहटाएं- प्रसन्न होऊँ ? - निश्चित ही प्रसन्न हो सकते हैं क्योंकि अब उस गटर में कोई गिर नहीं सकेगा । पड़ोसी को साधुवाद ।
जवाब देंहटाएं- अपने केश नोचूँ ? -केश नोच कर क्यों ज्ञानजी के नाऊ के पेट पर लात मार रहे हैं ।
- निर्लज्जता जारी रखूँ ? -इस बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा । ब्लागिंग एक निरंतर कर्म है । जारी रखें ।
har taraf pardarsita lane ki jo bate sarkar or vibhag karte hai...wahi to kiya hai....or agar aapko zyada samsya hai to paise kharch kariye or suchana ke adhikar ka istemal kariye...or wahan bhi aisi hi pardarsita mil jayegi...
जवाब देंहटाएंक्या इसमें कुछ दार्शनिकता भी ढूँढ़ी जा सकती है... या अध्यात्म ?
जवाब देंहटाएंमुख्य विषय से कुछ हट कर-- मेन होल चकोर नहीं होने चहिये क्योंकि ढक्कन उसमें गिर सकता हैं. गोल ढक्कन कभी गोल होल में नहीं गिरता.
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