दिल दे तू इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो ग़म की घड़ी को भी खुशी से गुज़ार दे।
________: * :________
सजा कर मय्यत-ए-उम्मीद नाकामी के फूलों से
किसी हमदर्द ने रख दी मेरे टूटे हुए दिल में।
________: * :________
छेड़ ना ऐ फ़रिश्ते! तू ज़िक्रे ग़मे जानाँ
क्यों याद दिलाते हो भूला हुआ अफसाना?
________: * :________
भगतसिंह की जेल नोटबुक (1929 - 31) , पृष्ठ 24(27)
आभार: शहीदेआज़म की जेल नोटबुक
आज 'अद्भुत प्रेमी' भगतसिंह का जन्मदिन है (27 सितम्बर 1907)
आभार आपका ..
जवाब देंहटाएंभगत सिंह को नमन और श्रद्धासुमन
आभार।
जवाब देंहटाएंआत्मा को चैन पड़ गया शायद
जवाब देंहटाएंयूँ ही कोई अपना नाम क्यों ले?
शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी को उनके १०४ वे जन्मदिवस पर सभी मैनपुरीवासीयों की ओर से शत शत नमन |
जवाब देंहटाएंभगत सिंह और उसके हमख्यालों को हमारा नमन।
जवाब देंहटाएंइस संबंध में आज के अखबार में एक छोटी सी खबर देखी थी बस, होता किसी नेता अभिनेता का जन -दिवस तो.......।
सुन्दर ईश्वर को हम बना रहे होते है, न कि वह हमें?? कुछ ऐसी ही बात है न श्रीमन
जवाब देंहटाएंश्रद्धासुमन!
जवाब देंहटाएंएक शहीद, एक पैगम्बर, एक मसीहा, एक अवतार काफी नहीं है:
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
लोग कहते हैं भगत सिंह...ज़िंदाबाद , इन्कलाब... ज़िंदाबाद !
जवाब देंहटाएंमुझे वे अविनाशी से लगते हैं !
भगत सिंह को कल याद तो किया था ...अब जब उनके जैसे हैं नहीं , तो उनका जन्मदिन मनाये कैसे जोर शोर से ...!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
वीर व उनकी भावना को नमन।
जवाब देंहटाएंदिल दे तू इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जवाब देंहटाएंजो ग़म की घड़ी को भी खुशी से गुज़ार दे।
अच्छी पोस्ट के लिए आभार
क्यों याद दिलाते हो भूला हुआ अफसाना?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर पोस्ट के लिए आभार ...... क्या इस jpg picture को अपने लेख में इस्तेमाल कर सकता हूँ ?
जवाब देंहटाएंअवश्य कीजिए सर!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंगौरव जी के ब्लॉग पर आपके दिये लिंक से यह नायाब जानकारी यहाँ मिली।
जवाब देंहटाएंआभार, आपका।