"सुनो जी! मेरे पाँवों में बहुत दर्द है।"
"लेट जाओ, पाँव दबा देता हूँ।"
"धत्त! लोग क्या कहेंगे?"
"लोग? कहाँ? बताएगा कौन? तुम भी न!"
"छोड़ो ठिठोली। वह दवा दे दो। तुमसे पैर दबवा कर नरक में नहीं जाना।"
"नरक? इतने दिनों से मेरे साथ रहते हुए भी मानती हो?"
"नहीं...
हाँ...वह दवा दे दो। और चुपचाप सो जाओ।"
"धत्त! लोग क्या कहेंगे?" यही तो बड़ा चक्कर है.
जवाब देंहटाएं"नरक? इतने दिनों से मेरे साथ रहते हुए भी मानती हो?"
जवाब देंहटाएंडायलाग संशोधन -
"इतने दिनों मेरे साथ रहने के बाद भी और किस नरक की बात कर रही हो ? "
नमस्कार,
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनायें हम तक प्रेम, स्नेह में लिपट पर पहुँचीं.
मित्रों की शुभकामनायें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं.
आभार
@ "इतने दिनों मेरे साथ रहने के बाद भी और किस नरक की बात कर रही हो ? " :)
जवाब देंहटाएंयहाँ भावभूमि अलग है। शब्द और वाक्य जब वृहद कालखण्ड और अनुभूतियों को समेटे होते हैं तो साधारण होते हुए भी अर्थ के मामले में परतदार हो जाते हैं।
@ "नरक? इतने दिनों से मेरे साथ रहते हुए भी मानती हो?"
जवाब देंहटाएंसाथ रहकर अगर स्वर्ग का अहसास हुआ हो तो इन बातों को माना ही जायेगा।
क्या इस तरह की बातें वाकई पिछड़ेपन की निशानी हैं?
सधे शब्दों की जादूगरी।
कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी है ...
जवाब देंहटाएंचलिये अब तो सबको पता चल ही गया :)
जवाब देंहटाएंक्या दोस्त....एकदम राप्चिक ठेलेला है भिड़ू :)
जवाब देंहटाएंचंद शब्दों में ही बहुत कुछ कह दिया है।
सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग का सुन्दर चित्रण.....
जवाब देंहटाएंयह तो घर घर की " लघुकथा " है ।
जवाब देंहटाएंइतने वर्षों तक मेरे साथ रहने के बाद भी नरक का भय ...:):)
जवाब देंहटाएंसाक़ी शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
जवाब देंहटाएंया वो जगह बता जहाँ पर खुदा न हो॥
[शायर याद नहीं]
प्रेम पत्र का एपिसोड २७ और आज की पोस्ट पर आई टिप्पणियां गिनी !
जवाब देंहटाएंलगता है मित्र चाहते है 'जो चला गया उसे भूल जा'
या फिर 'सबका मालिक एक' :)
प्रेम पत्र पढ़कर तो दिल में दर्द होना था! कहीं आराम करने और लम्बी सांस लेने के लिए तो नहीं कहा गया..पांव में दर्द है! देखिए, सही मर्ज की सही दवा दीजिएगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलोगों का क्या है ....लोगों का काम है कहना !! ..............बीत ना जाए .... :-)
जवाब देंहटाएंप्राइमरी का मास्टर
इतने दिन में तो दर्द ही दवा हो जाता है. नहीं हुआ तो अभी कुछ शेष है.
जवाब देंहटाएंपढ़िए जी, बात को साफ़ साफ़ कहने कि आदत नहीं हैं इसलिए स्पष्ट कहूँगा .
जवाब देंहटाएंअपनी बुद्धि मोटी है , बारीक़ बात दिमाग में घुसती ही नहीं.
क्या कहा गया समझ नहीं आया अतः लेख बेहतरीन है.......
स्त्री मन के इन भावों को संस्कार/आदर/सम्मान/हिचक/झेंप कुछ भी नाम दे सकते हैं.
जवाब देंहटाएंस्त्री बुद्धिमान थी पैर दबवा लेती नरक मे जाती जो भोग रही हैं उसको दुबारा भोगने की चाह नहीं थी , उस साथ से इह लोक मे ही भर पायी परलोक मे !!!!!1
जवाब देंहटाएंपत्नी सचमुच बहुत बुद्धिमान है। पति को आहत किए बिना पिंड छुड़ाना जानती है :)
जवाब देंहटाएं"धत्त! लोग क्या कहेंगे?"
जवाब देंहटाएंaapas ki baton me log kya kahenge....
aur kahna bhi nahi chahiye.....
pranam
देखिए न! बात की बात में लोगों ने क्या-क्या कह दिया। :)
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