सोरठी ब्रिजभार या
बिरजाभार के गायन की परंपरा पूरब में रही है जिसके गायक बहुत कम बचे हैं।
ग्रीष्मावकाश में हमलोग छतों पर लेटे रात भर सुने हैं। गायक उसके लिए धन नहीं लेते
थे (बिद्या नाहीं बेचबे!), केवल सीधा अर्थात अन्न में चावल, दाल, तरकारी, नमक,
हल्दी, आदि ले जाते। गायन की भावुकता सबको
रुला देती थी। यह क्षेत्र ही करुण रस प्रधान रहा है।
इसमें सात जन्मों की
कथा सौ भागों में मिलती है। इन्द्र के शाप से एक
देव और एक अप्सरा मृत्यलोक में जन्म लेते हैं और आगे जनम जनम मिलते बिछड़ते रहते
हैं। विशुद्ध प्रेम काव्य है। बहुत ढूँढ़ने पर इसका बिहारी
रूप मिला, वह भी लखनऊ में सड़क किनारे! प्रकाशन
दिल्ली से।
‘एकिया हो रामा’, ‘हो राम’, ‘राम न रे की’ जैसे टेक ले यह कथा गायी जाती रही है।
इस कथा में भी बहुत पुरानी चलन के संकेत मिलते हैं। उदाहरण के लिये सुमिरन
मंगलाचरण में राम, अपनी धरती, शेषनाग, भगवान, पञ्च परमेश्वर, जन्मदायिनी माता, गुरु,
सूर्य, सुबेहन (?), गंगा, हनुमान, पाँच पाण्डव, 56 कोटि देवता (33 नहीं!), काली,
दुर्गा सात कुमारी बहिनी की वन्दना है।
दिशायें एक तरह से
रचयिता की भौगोलिक स्थिति स्पष्ट कर देती हैं। पश्चिम में सुबेहन (?), दक्षिण में
गंगा है, पाण्डव उत्तर में। कहीं न कहीं यह उस समय की कथा लगती है जब पञ्चदेव उपासना
प्रचलन में थी। आगे वाचिक मौखिक परम्परा के साथ क्षेत्रीय रूप धारण करती चली गयी।
पाण्डवों की स्तुति
इसे वीरगाथा परम्परा से तो जोड़ती ही है, साथ ही महाभारत कथा के बहुआयामी पक्ष को उजागर
भी करती है कि देवता और योद्धा एक भी माने गये।
माता के दूध के ऋण के
लिये ‘निखवा’ प्रयुक्त हुआ है जिसकी संगति वैदिक काल की मुद्रा ‘निष्क’ से लगाई जा
सकती है। ऋण का भुगतान मुद्रा अर्थात निष्क से ही न किया जाता है!
Bahut sundar. BAU kahan hain aaj kal ?
जवाब देंहटाएंAny idea where i can get this book in print ?
जवाब देंहटाएंमैंने तो मार्ग किनारे लिया था ! :(
हटाएंKya yeh book hindi me hai ya regional language me ?
हटाएंAap apne blog par or pics share kar sakte hai ?
हटाएंmere pas hai ye book ...lekin suru ka 3 ya 4 page km hai...9888280703
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