पत्नी के नैहर जाने के पहले पति पत्नी संवाद (अगर कह सकें तो) :
1. पेपर वाला एडवांस ले गया है। फिर से माँगने आये तो भगा दीजियेगा। हो सके तो छुट्टी ही कर दीजियेगा।
- हूँ। (मन में - पढ़ता ही कहाँ हूँ, फालतू का खर्च। तुम्हें यही दिखता है न?)
2. कामवाली एक टाइम आ कर कर जायेगी सब काम। आप रोटी तो नहीं बनायेंगे न?
- (मुझे अकेले में कामवालियों के साथ उलझन होती है) अरे मैं खुद कर लूँगा। उसे भी छुट्टी दे दो।
- नहीं, आ कर कर जायेगी एक ही टाइम
- (मन में) अब कौन समझाये इन्हें?
3. रात में पौधों में पानी दे दिया है। शाम शाम को पानी देते रहियेगा।
- हूँ (मन में - बारिश होगी ही, पानी देने की क्या आवश्यकता? इतना भी नहीं समझती)।
4.धुले कपड़े बाँध कर रख दिये हैं। धोबी आयेगा तो प्रेस करने को दे दीजियेगा।
- (मन में) अरे तुम जाओ तो सही! अब कौन टोकने वाला है,"पैंट मैचिंग नहीं। कल ही इस कलर की पहने थे, आज फिर वैसी ही शर्ट उठा लिये! दिमाग है भी या नहीं?"। है यार! लेकिन चलता नहीं है ऐसे मामलों में।
5. (प्रकट में) बच्चों के लैपटॉप आलमारी में बन्द कर दी हूँ। (निहितार्थ) बेहूदे प्रयोगों के लिये बाहर मत निकालना।
- हूँ। इसमें बताने वाली क्या बात है?
6. आम हैं। दही जमा दी हूँ। चिउड़ा है। दूसरे फल भी हैं। सब्जियाँ, आलू, प्याज भी हैं। चावल उधर नीचे है। फ्रिज में एक दिन का खाना रखा है। सोमवार से पहले खाना बनाने की कोई जरूरत नहीं।
- हूँ (मन में - सिवाय आम, दही और दूसरे फलों के सब व्यर्थ हैं सुभद्रे! इस भयानक उमस में गैस बारना अपने मान का नहीं)
7. घर खुला न छोड़ दीजियेगा। छुट्टियों में लैपटॉप के अलावा कभी कभी बाहर निकल कर देख भी लीजियेगा, चाभियाँ वहीं हैं।
- हूँ (मन में - कौन कारूँ का खजाना रखा है? बाहर क्या देखने निकलूँ?)
8. दूसरा मोबाइल चार्ज रखियेगा। ये रहा चार्जर।आप के मोबाइल पर तो नेट का कब्जा है, हमेशा इंगेज।
- हूँ (मन में - आज तक सिवाय इनके किसी को परेशानी नहीं हुई - ऑफिशियल या प्राइवेट कोई भी। विदेशी ब्लॉगर तक मिला कर पछताते हैं कि पकड़ लेता है तो छोड़ता ही नहीं! ...चलो इसी बहाने पुराना मोबाइल तो दिखा। कितने दिनों के बाद इसके दर्शन हुये!सिम बदल कर देखता हूँ कि अब भी इसमें नेट चलता है क्या?)
9. आलमारी खुली मत छोड़ दीजियेगा। एक छोटी चुहिया घूमती दिखी मुझे।
- हूँ (मन में - चुहिया दिखी होगी तो तुम्हारा क्या हाल हुआ होगा!)
10. किसी भी बरतन का मुँह खुला मत छोड़ियेगा। छिपकलियाँ हैं, कीड़े फतिंगे हैं, बरसात आने वाली है।
- हूँ (मन में - तुम जाओ तो यहाँ भी बरसे। बारिश को तुमने ही रोक रखा है।)
11. धुली चादरें रखी हैं। तकिये के कवर भी। बदलते रहियेगा।
- हूँ (मन में - तीन कमरों में दो दो दिन सोये तो सप्ताह बीत जायेगा। चादरें बदलने की क्या आवश्यकता?)
12. मोजे कोने में न फेंक कर धुलते रहियेगा।
- हूँ (मन में - इसके लिये धन्यवाद। मुझे बदबू सहन नहीं होती)
13. रोज शाम को टंकियों का पानी देख लिया करियेगा। मोटर चलाते रहियेगा।
- हूँ (मन में - किसी दिन खाली रह गयीं तो ऑफिस गेस्ट हाउस जिन्दाबाद! वैसे भी पानी खर्चने वाले तो जा ही रहे हैं।)
14. एलर्जी की दवायें रख दी हूँ। ये देखिये - यहाँ।
- हूँ (मन में - तुम नहीं रहती हो तो एलर्जी भी फरार रहती है।)
15. बुक शेल्व खुला मत छोड़ियेगा। कितनी धूल जम जाती है। साफ करते अब मुझे भी परेशानी होने लगी है, कामवाली के वश का नहीं। उस वैक्युम क्लीनर को तो हटा ही दीजिये। किसी काम का नहीं।
- हूँ (मन में - अब तो मैं बहुत कम पढ़ता हूँ। खोलता ही कहाँ हूँ कि धूल जमे? तुम्हें तो बस कहने के लिये कुछ चाहिये।)
16. जाऊँ न?
- हाँ, अपना मोबाइल हमेशा ऑन रखना और पास रखना। हा, हा, हा।
- (मुस्कुरा कर) मुझे पता था कि अंत में यही होने वाला है...
1. पेपर वाला एडवांस ले गया है। फिर से माँगने आये तो भगा दीजियेगा। हो सके तो छुट्टी ही कर दीजियेगा।
- हूँ। (मन में - पढ़ता ही कहाँ हूँ, फालतू का खर्च। तुम्हें यही दिखता है न?)
2. कामवाली एक टाइम आ कर कर जायेगी सब काम। आप रोटी तो नहीं बनायेंगे न?
- (मुझे अकेले में कामवालियों के साथ उलझन होती है) अरे मैं खुद कर लूँगा। उसे भी छुट्टी दे दो।
- नहीं, आ कर कर जायेगी एक ही टाइम
- (मन में) अब कौन समझाये इन्हें?
3. रात में पौधों में पानी दे दिया है। शाम शाम को पानी देते रहियेगा।
- हूँ (मन में - बारिश होगी ही, पानी देने की क्या आवश्यकता? इतना भी नहीं समझती)।
4.धुले कपड़े बाँध कर रख दिये हैं। धोबी आयेगा तो प्रेस करने को दे दीजियेगा।
- (मन में) अरे तुम जाओ तो सही! अब कौन टोकने वाला है,"पैंट मैचिंग नहीं। कल ही इस कलर की पहने थे, आज फिर वैसी ही शर्ट उठा लिये! दिमाग है भी या नहीं?"। है यार! लेकिन चलता नहीं है ऐसे मामलों में।
5. (प्रकट में) बच्चों के लैपटॉप आलमारी में बन्द कर दी हूँ। (निहितार्थ) बेहूदे प्रयोगों के लिये बाहर मत निकालना।
- हूँ। इसमें बताने वाली क्या बात है?
6. आम हैं। दही जमा दी हूँ। चिउड़ा है। दूसरे फल भी हैं। सब्जियाँ, आलू, प्याज भी हैं। चावल उधर नीचे है। फ्रिज में एक दिन का खाना रखा है। सोमवार से पहले खाना बनाने की कोई जरूरत नहीं।
- हूँ (मन में - सिवाय आम, दही और दूसरे फलों के सब व्यर्थ हैं सुभद्रे! इस भयानक उमस में गैस बारना अपने मान का नहीं)
7. घर खुला न छोड़ दीजियेगा। छुट्टियों में लैपटॉप के अलावा कभी कभी बाहर निकल कर देख भी लीजियेगा, चाभियाँ वहीं हैं।
- हूँ (मन में - कौन कारूँ का खजाना रखा है? बाहर क्या देखने निकलूँ?)
8. दूसरा मोबाइल चार्ज रखियेगा। ये रहा चार्जर।आप के मोबाइल पर तो नेट का कब्जा है, हमेशा इंगेज।
- हूँ (मन में - आज तक सिवाय इनके किसी को परेशानी नहीं हुई - ऑफिशियल या प्राइवेट कोई भी। विदेशी ब्लॉगर तक मिला कर पछताते हैं कि पकड़ लेता है तो छोड़ता ही नहीं! ...चलो इसी बहाने पुराना मोबाइल तो दिखा। कितने दिनों के बाद इसके दर्शन हुये!सिम बदल कर देखता हूँ कि अब भी इसमें नेट चलता है क्या?)
9. आलमारी खुली मत छोड़ दीजियेगा। एक छोटी चुहिया घूमती दिखी मुझे।
- हूँ (मन में - चुहिया दिखी होगी तो तुम्हारा क्या हाल हुआ होगा!)
10. किसी भी बरतन का मुँह खुला मत छोड़ियेगा। छिपकलियाँ हैं, कीड़े फतिंगे हैं, बरसात आने वाली है।
- हूँ (मन में - तुम जाओ तो यहाँ भी बरसे। बारिश को तुमने ही रोक रखा है।)
11. धुली चादरें रखी हैं। तकिये के कवर भी। बदलते रहियेगा।
- हूँ (मन में - तीन कमरों में दो दो दिन सोये तो सप्ताह बीत जायेगा। चादरें बदलने की क्या आवश्यकता?)
12. मोजे कोने में न फेंक कर धुलते रहियेगा।
- हूँ (मन में - इसके लिये धन्यवाद। मुझे बदबू सहन नहीं होती)
13. रोज शाम को टंकियों का पानी देख लिया करियेगा। मोटर चलाते रहियेगा।
- हूँ (मन में - किसी दिन खाली रह गयीं तो ऑफिस गेस्ट हाउस जिन्दाबाद! वैसे भी पानी खर्चने वाले तो जा ही रहे हैं।)
14. एलर्जी की दवायें रख दी हूँ। ये देखिये - यहाँ।
- हूँ (मन में - तुम नहीं रहती हो तो एलर्जी भी फरार रहती है।)
15. बुक शेल्व खुला मत छोड़ियेगा। कितनी धूल जम जाती है। साफ करते अब मुझे भी परेशानी होने लगी है, कामवाली के वश का नहीं। उस वैक्युम क्लीनर को तो हटा ही दीजिये। किसी काम का नहीं।
- हूँ (मन में - अब तो मैं बहुत कम पढ़ता हूँ। खोलता ही कहाँ हूँ कि धूल जमे? तुम्हें तो बस कहने के लिये कुछ चाहिये।)
16. जाऊँ न?
- हाँ, अपना मोबाइल हमेशा ऑन रखना और पास रखना। हा, हा, हा।
- (मुस्कुरा कर) मुझे पता था कि अंत में यही होने वाला है...
(सूचनार्थ - तीन दिन बाद नैहर जाने की योजना थी। छोटे चाचा आ गये तो तीन दिन पहले ही जाने की योजना शाम को बनी और प्रात: फरारी भी हो गई! इन्हें योजना आयोग का मेम्बर बना दिया जाय तो देश कितनी तरक्की कर जाय!)
_______________
(जाने के आधे घंटे के बाद)
निगम चुनावों के वोट के लिये पड़ोसियों की मीटिंग में जाना है। घर की चाभी मिल नहीं रही कि बन्द कर सकूँ।
श्रीमती जी का मोबाइल 'आउट ऑफ कवरेज एरिया' बता रहा है। धन्य भाई साहब यानि कि बी एस एन एल ...धन्य मैं!
___________
अपडेट - प्रस्थान के एक घंटे ही हुये होंगे और बारिश शुरू हो गई है :) ;)
...उड़ी बाबा! छत पर कपड़े तो नहीं?
कौन देखने जाय? जाते हुये बताया नहीं तो नहीं ही होंगे।
(जाने के आधे घंटे के बाद)
निगम चुनावों के वोट के लिये पड़ोसियों की मीटिंग में जाना है। घर की चाभी मिल नहीं रही कि बन्द कर सकूँ।
श्रीमती जी का मोबाइल 'आउट ऑफ कवरेज एरिया' बता रहा है। धन्य भाई साहब यानि कि बी एस एन एल ...धन्य मैं!
___________
अपडेट - प्रस्थान के एक घंटे ही हुये होंगे और बारिश शुरू हो गई है :) ;)
...उड़ी बाबा! छत पर कपड़े तो नहीं?
कौन देखने जाय? जाते हुये बताया नहीं तो नहीं ही होंगे।
हा हा हा हा, धन्य हो आप और आप की गयी देखभाल। हमसे तो बिना बताये ही खिसक लिया जाता है, ढूढ़ सके तो ढूढ़।
जवाब देंहटाएं:) उनकी सहेली मेरे मुँह पर ही कहती हैं - अपने मियाँ को आप ही ने बिगाड़ रखा है। मैं उत्तर देता हूँ - सभी बच्चे बिगड़ैल नहीं बनाये जा सकते। ऐसी सलाहियत बहुत कम में पायी जाती है।
हटाएंकल 24/06/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
जोड़ दीजिये लिंक एक्सप्रेस में यह बोगी भी। मैं तो बिना बताये ही लिंक ट्रैक पर दौड़ता दौड़ाता रहता हूँ :)
हटाएंअमां यार यह तो घर घर की बात है। हर पति अपनी पत्नी के इसी अंदाज से संवरता निखरता रहता है।
जवाब देंहटाएंवैसे भी अब यह सिद्ध बात हो गई है कि इस देश में राष्ट्रपति बनना आसान है लेकिन अच्छा पति बनना बहुत मुश्किल।
ऐसे में तो और जब कि पति हर कमरे में दो दो दिन सोकर चादर न बदलने का बहाना ढ़ूंढता हो।
और वैसे भी राष्ट्रपति भौन में तो इत्ते कमरे हैं कि पूरे साल चादर बदलनी न पड़े :)
यहाँ एक अदद के पति बनने में हाल बेहाल हो रखा है, आप को राष्ट्र की पड़ी है।
हटाएंहूँ
जवाब देंहटाएंबड़ी डिप्लोमेटिक टिप्पणी है। भाभी जी नैहर जाने वाली हैं हाल, फिलहाल या जा चुकी हैं?
हटाएंमेरे ख्याल से सब लिखित में लेना चाहिए.... ताकि भूलने पर पुन: याद आ जाये,
जवाब देंहटाएंदूसरे (मेरे शब्दों में)
भागवान जाओ तो सही, कामवाली का सोरी सोरी घर का पूरा ध्यान रखूँगा. :)
आप के खयाल के पहले ही मैंने लिखित कर दिया।
हटाएंअनुपस्थिति में कामवाली के जारी रहने के पीछे रहस्य यह होता है कि बाद में पता चले कि इसने क्या खाना बनाया (जूठे बर्तनों से अनुमान)? कैसे रहता था (सामान बिखरे रहते थे या ठीक ठाक), कितना फेंका गया आदि आदि।
सीख यह है कि इस दौरान बचा हुआ भले किसी दूसरे को दे दो, कामवाली को कभी नहीं दो। कुछ फेंकने को कहे तो तुरंत उत्तर - अरे शाम को वही तो खाना है, दुपहर में अधिक बना दिया था।
'गेट' ही था न उस कहानी(?) का नाम? :)
हटाएंमैं सोच रहा था कि कोई तो मन पारेगा! :) सतर्क पाठक हैं जी आप तो। पुरस्कार देने को मन करता है;)
हटाएंहाँ, उस बवालकाटी कहानी का शीर्षक गेट ही था - http://girijeshrao.blogspot.in/2009/11/blog-post_07.html। लेकिन उसके कहानी होने पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं है।
..अभी टिप्पणियों को पढ़ आया। एक बच्चे की तरह ही मैंने अपनी पहली मौलिक कहानी को डिफेंड किया था! क्या दिन थे!!
न भईया, अब हाथ जुड़वा लो हमारे इस बवालकाटी पुरस्कार से| पहले से ही अपने पराये सब छेड़ने में लगे हैं मुझे :) बाकी पाठक तो हम सतर्क ही हैं कहीं कहीं, कभी कभी| वो कहानी मेरे आने से पहले की है और इसी विषय पर बाद में मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी, याद है|
हटाएंयहीं लिंक चेंप दीजिये कि गेट गाथा के दोनों प्रकार एक ही स्थान पर लिंकित हो जायँ।
हटाएंहमारा तो आप जानो ही हो कि बड़ा भुरभुरा स्वभाव है, कैसे मना कर सकते हैं आपको? :))
हटाएंhttp://mosamkaun.blogspot.in/2011/04/blog-post_20.html
ha ha ha ...sajeev aur sachitra varnan
जवाब देंहटाएंआप का 'सुनो मैं पढ़ रहा हूँ तुम्हें' पढ़ आया और यह टिप्पणी भी:
हटाएंMired MirageJune 18, 2012 6:58 PM
सोनल, न जाने क्यों मुझे लगता है कि ये वे विचार हैं जो एक स्त्री चाहती है उसका प्रेमी सोचे. मुझे नहीं लगता ये शब्द कभी पुरुष के हो सकते हैं. यदि हाँ तो किसी विरले पुरुष के.
घुघूतीबासूती
Reply
_______
आप ने कभी 'मैं तुम्हें लिखता हूँ'(http://girijeshrao.blogspot.in/2012/02/blog-post_26.html) या मैं तुम्हें लिखती हूँ (http://girijeshrao.blogspot.in/2012/02/blog-post_28.html) पढ़ा क्या? न पढ़ा हो पढ़ियेगा, सुनियेगा और बासूती जी को बताइयेगा कि विरले पुरुष होते हैं :)
उन्होंने पढ़ा / पढवाया या नहीं पता नहीं - मैं ज़रूर फिर से सुन आई दोनों पोस्ट्स के |
हटाएंउनके जाने की खबर से ही इतने हल्के हो गये कि सबको मजे देने वाली पोस्ट लिख दी! वैसे तो भारी बने, भारी-भारी ढीलते जा रहे थे।:)
जवाब देंहटाएं:) आधे हो गये हैं तो हल्के तो हो ही जायेंगे!
हटाएंवाह, क्या बात है! :)
जवाब देंहटाएंहिम्मती हो!
वो तो हम हैं ही! :)
हटाएंलड्डू फूट ही लिए :)
जवाब देंहटाएंअरे नहीं जी, सही कहें तो हालत पस्त हो जाती है। पता चलता है कि घरनी कितना कुछ सँभालती है और उनका मन एक साथ कितने फिकर लिये घूमता रहता है।
हटाएं:)
हटाएंअब पधारे हैं उष्ट्र गोवर्धन के अधोतल में :):)
जवाब देंहटाएं:) आम पाठकों के हितार्थ इसका अनुवाद भी प्रस्तुत कर दें।
हटाएंअब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे ??
हटाएं:)
badi aasani se apne dil ki baten ataai ...padhkar aanad aa gaya...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी, आती रहिये।
हटाएंआप खुशकिस्मत है कि आपको अकेले भी छोड़ा जाता है | यहाँ तो मुझे अकेले में होने वाले सुख की कल्पना कर मुझे अकेला छोड़ा ही नहीं जाता | पीहर जाना हो तब भी आइडेंटिटी कार्ड की तरह मुझे ही प्रयोग किया जाता है |
जवाब देंहटाएंहा, हा, हा. she may be too possessive of you, it is LOVE in capital :)
हटाएंआप का ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा। फेरा लगता रहेगा।
:)
जवाब देंहटाएंस्माइली के पीछे मन्द मुस्कान का अनुमान लगा सकता हूँ :) घर घर की कहानी है शायद - कहीं अधिक, कहीं कम।
हटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है साप्ताहिक महाबुलेटिन ,101 लिंक एक्सप्रेस के लिए , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक , यही उद्देश्य है हमारा , उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी , टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें
जवाब देंहटाएंरोचक रहे पति पत्नी संवाद .चलो यहाँ पति बोलता तो है कमसे कम .
जवाब देंहटाएंसामने वाले की बात पर आप अक्सर हूँ हूँ करते रहते हैं जबकि भीतर बहुत सी खुराफ़ाती बातें चलती रहती हैं। अब यह पक्का हो गया कि आप बाहर जितना खोलते हैं उससे कई गुना अंदर छिपाये रहते हैं। :)
जवाब देंहटाएंबाप रे बाप, मैं तो सबकुछ सामने ही उगल देता हूँ और उसके बाद झेलता भी हूँ। आगे से यह डिप्लोमेसी आजमाने की कोशिश करूंगा। :D
अब तो ८ साल हुए खानाबदोश जीवन है, पर अब भी सुनता हूँ - माँ जातीं है तो पापा एक दिन लाई, एक दिन चिवड़ा, एक दिन खिचड़ी (माँ के रहते में भले तूफ़ान आ जाय, नहीं खायेंगे) सब टिका लेते हैं। :)
जवाब देंहटाएंरोचक. प्रतिक्रियाएं मन में ही सिमटी रहती है!
जवाब देंहटाएं