[1]
निस्संतान उमा दु:खी थीं, इतनी कि अशोक वृक्ष को ही पुत्र मान लिया था। एक दिन बहुत दु:खी हो गईं तो शिव ने उनका प्रबोधन किया एवं समाधि लगा लिये। शिव के समक्ष एक हाथी समान जीव उपस्थित हो गया - उसकी नाक हाथी के सूँड़ समान लम्बी थी तथा उसमें शिव का सर्प न प्रवेश कर जाये इस हेतु वह बारम्बार अपनी नाक ऊपर कर रहा था। उसने शिव एवं शिवा की स्तुति की।
उसे स्पर्श करते ही भवानी के स्तनों में दूध उतर आया। उमा ने शिव से उसका परिचय पूछा तो उलझाऊ उत्तर मिला - उमा को पति ने छोड़ दिया, यह पुत्र दिया।
विनाकृता नायकेन यत्त्वम् देवी मया शुभे।
एष तत्र समुत्पन्नस तव पुत्रोऽर्कसन्निभ:॥
(पुरायठ संस्कृत पाण्डुलिपि में त्रुटियाँ हो सकती हैं)
हे देवी! यह तुम्हारा पुत्र बिना नायक अर्थात बिना पति के हुआ है, इस कारण विनायक कहलायेगा।
लम्बी नाक के कारण यह गजराज होगा, अमर होगा, अजेय होगा, समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होगा। स्त्रियों, बच्चों एवं गो द्विज का प्रिय होगा। इसकी आराधना वे मधु, मांस, सुगंधि एवं पुष्पों से करेंगे। यह समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होगा।
यह सभी गणों का नायक होगा - विनायक: सर्वगणेषु नायक:
जो अधार्मिक जीवन जियेंगे या जो निन्दित कर्म करेंगे उन्हें ग्रह समान धर लेगा - ग्रहं ग्रहाणां अपि कार्यवैरिणं
...
स्कंद पुराण के पुरातन पाठ में विनायक अभी गणेश होने की संधि अवस्था में हैं।
उसे स्पर्श करते ही भवानी के स्तनों में दूध उतर आया। उमा ने शिव से उसका परिचय पूछा तो उलझाऊ उत्तर मिला - उमा को पति ने छोड़ दिया, यह पुत्र दिया।
विनाकृता नायकेन यत्त्वम् देवी मया शुभे।
एष तत्र समुत्पन्नस तव पुत्रोऽर्कसन्निभ:॥
(पुरायठ संस्कृत पाण्डुलिपि में त्रुटियाँ हो सकती हैं)
हे देवी! यह तुम्हारा पुत्र बिना नायक अर्थात बिना पति के हुआ है, इस कारण विनायक कहलायेगा।
लम्बी नाक के कारण यह गजराज होगा, अमर होगा, अजेय होगा, समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होगा। स्त्रियों, बच्चों एवं गो द्विज का प्रिय होगा। इसकी आराधना वे मधु, मांस, सुगंधि एवं पुष्पों से करेंगे। यह समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होगा।
यह सभी गणों का नायक होगा - विनायक: सर्वगणेषु नायक:
जो अधार्मिक जीवन जियेंगे या जो निन्दित कर्म करेंगे उन्हें ग्रह समान धर लेगा - ग्रहं ग्रहाणां अपि कार्यवैरिणं
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स्कंद पुराण के पुरातन पाठ में विनायक अभी गणेश होने की संधि अवस्था में हैं।
[2]
पार्वती को संतान नहीं थी। दु:खी थीं। संताप से हृदय भर आया तो आँसू गिरे (हृदयाम्बु) जिनसे उनकी पुत्री हुई - उदकसेविका। शिव एवं पार्वती के बीच का भैरव काम भाव ही मूर्तिमान हो भैरव कहलाया जिसने उदकसेविका का हाथ माँग लिया।
काम महोत्सव के पश्चात उदकसेविका का उत्सव होता था जिसमें समस्त वर्जनायें टूट जाती थीं।
उदकसेविका एवं भैरव के पुतले बनाये जाते एवं यात्रा निकलती। बच्चे, बूढ़े, लोग, लुगाई सभी, भाँति भाँति के रूप बनाये रहते - कोई राजसी, कोई संन्यासी, कोई फटे पुराने कपड़े पहने, सभी देह पर भस्म, मल, मूत्र, कीचड़ लपेटे।
जिसके समक्ष उदकसेविका पहुँचती, उसे प्रमत्त, पियक्कड़, विदूषक या पागल की तरह व्यवहार करना होता। लोग कुत्तों पर सवार हो जाते, एक दूसरे को गालियाँ बकते, चोकरते हुये गीत गाते, नाचते, निर्लज्जता सामान्य हो जाती। पुरुष उदकसेविका के साथ जो चाहे, करते।
नगर ग्राम के भवनों तक को नहीं छोड़ा जाता। उन्हें भी गोबर, कीचड़ इत्यादि से कुछ इस प्रकार अलङ्कृत कर दिया जाता कि नगरी चोरों की नगरी लगने लगती।
शिव की व्याख्या थी कि स्त्री एवं पुरुषों के हृदय विपरीतलिङ्गी के यौन अङ्गों के प्रेम में होते ही हैं, सृष्टि इसी से है।
अंत में भैरव को मृत घोषित कर पुतले को सरोवर में फेंक दिया जाता था।
इस प्र्कार दिन बिताने के पश्चात सभी के पाप धुल जाते थे!
...
फागुन में बाबा देवर लगें कि भाँति ही यह लिखा गया है कि पुत्र पिता में भी परस्पर मर्यादा भाव नहीं रह जाता था!
दो सौ वर्षों के अंतर की दो पाण्डुलिपियों में रोचक पाठ भेद हैं। एक उदाहरण:
(1) मुहूर्तेनैव स्वजना निर्लज्जत्वं उपागता:
(2) मुहूर्तेनैव स्वजना: समशीलत्वं आगता: