एक ठो कुत्ता रहा। उसे चैन से बैठने की बीमारी नहीं थी। एक दिन सड़क पर बैलगाड़ी जाते देखा। बहुत धूप रही सो उसके नीचे चलने लगा। बड़ी राहत मिली। अब ताड़ गया तो हमेशा ऐसे ही करने लगा। कभी ये कभी वो...
कुछ दिनों में सोचने लगा कि सारी गाड़ियाँ उसी के चलाए चलती हैं। कुछ दिन और बीते और उसका ज्ञान पोख्ता हो गया।
एक दिन चलते चलते उसे सू सू की सूझी। अब गाड़ी रुके कैसे और कुत्ता चलती चीज पर मूते कैसे?
सोचा कि गाड़ी तो उसी के चलाए चल रही है। रुकेगा तो रुक जाएगी। गाड़ी तो रुकने से रही और कुत्ता तो ..समझ ही रहे होंगे। सो पहिए के नीचे आ गया। ... दुनिया में एक और खम्भा मूत्र संस्कारित होने से रह गया।
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इस ब्लॉग पर और भी (20 टिप्पणियों के बाद ये लिंक लगाने की सुध आई):
- एक 'ज़ेन कथा'
बाप रे !
जवाब देंहटाएंआज कौन मारा गया गिरिजेश भाई ??? बेचारे को शुभकामनाएं !
:-))
कहानी द्वारा कोई बना-बनाया निर्णय पाठकों को नहीं थमाना चाहिए, बल्कि पाठक को एक मद्धिम आंच देता हुआ विचार नियामक सौंप दिया जाए, इस नीति का पालन करते हुए आपकी यह लघु-कहानी कोई ठोस निर्णायक उपसंहार देकर समाप्त नहीं होती बल्कि पाठक के हिस्से यह बेचैनी छोड़ कर चुप हो जाती है कि कहानी युं खत्म क्यों हो गई। आपकी इस कहानी का शिल्प इसकी ताकत है।
जवाब देंहटाएंकुकुर-कौवा के बीच में प्रेम कहानी गुम हो गयी है? ऐसे कई ठो कुकुर हैं मर नहीं रहे... और कुकुरों के अलावा बाकियों को भी लगने लगता है कि उसी के चलाये दुनिया चल रही है. एक ठो पिल्ली का कथा याद आ रहा है. सुनाएं का?
जवाब देंहटाएंबेचारा कुत्ता! अब उसकी शोक सभा होगी, उसे शहीद का दर्ज़ा भी दिया जा सकता है। हो सकता है कि टेक्स्ट बुक्स में बताया जाये कि कुत्तेजी कैसे अद्वितीय ऊर्जा के मालिक थे कि अकेले कई गाडियाँ खींच डालते थे। ईश्वर उनकी आत्मा को पर्मानेंट शांति दे!
जवाब देंहटाएंजब चलाने से जगत चल रहा था तो साध ही लेता थोड़ी और देर।
जवाब देंहटाएं@ अभिषेक बाबा
जवाब देंहटाएंनेकी और पूछ पूछ? सुनाय दो।
@प्रवीण जी
जवाब देंहटाएं:) क्या करता? रहा भी तो नहीं जाता।
एक सौ बीस करोड़ सवारियों से लदी एक गाड़ी भी सिर्फ 545 श्वानों के वृषभ कंधों पर टिकी है, गंतव्य का पता नहीं, विगत छः दशाब्दियों से किसी प्रगति नामक स्थान की ओर वाया समृद्धि अग्रसर है... हाँ जैसा कि आप ने बताया कुछ श्वानशिरोमणि इस यात्रा में खेत रहे ... ईश्वर उन शहिदों की मूत्रोत्कण्ठा को शांति प्रदान करे! आज प्रातःकाल,आपने इन शहीदों का स्मरण कराया, देखें आज का दिन किस गंतव्य तक ले जाता है!!
जवाब देंहटाएं@ अभिषेक ओझा:
जवाब देंहटाएंअब उत्सुकता जगाकर चुप्प साध गये नैं आप, सुनाईये ना? किस्सागोई का दस्तूर यही है, गिरिजेश साहब के किस्से से आपको कुछ याद आ गया(गई), आप कहेंगे तो किसी और को कुछ याद आ जायेगा। तो अब हुक्के की नै आप संभालिये, किस्सा-ए-पिलल्ल्ल्ल्ल शुरू किया जाये। गाड़ी चलती रही, किस्से भी चलते रहेंगे।
लेकिन जिस दिन खंभे चलने लगे, उस दिन क्या होगा, सोचा किसी ने?
लघु कथाओं के इस नए ट्रेंड का स्वागत है
जवाब देंहटाएंसंभावना ये कि एक नया कुत्ता...फिर एक और नया कुत्ता...उसके आगे और भी निरंतर , बैलगाड़ी के नीचे...स्थानापन्न होते रहेंगे और बोध कथा जीवंत बनी रहेगी ! कथा के भीतर बाहर...कुत्तों,बैलों और बैलगाड़ी के रोल में कोई बदलाव नहीं होने वाला !
जवाब देंहटाएंवैसे हर कुत्ते की मृत्यु के समय संस्कारित होने से बच गये खम्बों और उसके जीवन काल में संस्कारित हो चुके खम्बों में भी एक वर्ग भेद हो गया ना :)
bari jor ka laga....kahan...kise...kab......
जवाब देंहटाएंkuccho nahi pata ...................
pranam.
मुई मूत्रोत्कण्ठा का ही तो नहिं होता शमन।
जवाब देंहटाएंवर्ना श्वान पाल सकता था,जिंदगी भर अभिमान।
कहते है के ऊँगली क्या दी के चूल / चुटिया पकड़ ली | वही कुत्ते ने किया और फिर गलतफ़हमी का शिकार हो कर अपनी सीमाएं भूल गया और मारा गया | लघुकथा संक्षिप्त है पर सार्थक और पाठको तक अपना मेसेज पहुचाती है..
जवाब देंहटाएंआपको कुत्ते कुत्तियों से ही इतनी शिकायत क्यों रहती है :)
जवाब देंहटाएंवो जो एक ठो कुता रहा, बेचारा कित्ती बड़ी गलतफहमी का सिकार हो गया... भगवान करे कोई ओर ऐसी गलतफहमी का सिकार न हो भाई... हमें तो कटाई अच्छा नहीं लगा... हाँ! आपने लिखा बहुत बढ़िया है...
जवाब देंहटाएंबेचारे को लोगों को समझाने के लिये अपनी शहादत देनी पडी। अच्छी लघु कथा। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकवोनो खम्बा बचा नहीं है.....
जवाब देंहटाएंकुत्तों की नई जमात नए-नए सुफेद झकाझक चमत्कारी चंगाई रूप में मौजूद है .......
सब आसपास ही है .....
पहचान लो.
जवाब देंहटाएंउत्तम-कथा : मनोरँजक निष्कर्ष
पर, कहीं आप यह सँदेश तो नहीं देना चाहते कि
1. उत्सर्जन के लिये उचित अवसर की समझ होनी चाहिये ।
2. घूमते कालचक्र के अँतर्गत गतिमान कतिपय श्वान-शिरोमणियों को स्वयँ ही अपनी औकात भूलना काल-कलवित होने का कारण बन सकता है ।
3. शीतलता ( सुविधा ) की छत्रछाया का लाभ लेने वालों के लिये उसकी जड़ों में मूतना एक आत्मघाती कदम है ।
कुछ अतिरिक्त निट्ठल्ले क्षणों में कुछ और सँभावित निष्कर्ष भी निकाले जायेंगे । कृपया प्रतीक्षा करें, अभी मुझे इसी स्टॉप पर उतर लेने दीजिये ।
मूत्र दानं महा दानं सर्व दानं प्रियं
जवाब देंहटाएंबेचारा कुत्ता सेकूलर था ...हर किसी की गाड़ी खींचता था :)
जवाब देंहटाएंपर अफसोस....कुत्ते को उसके काम का क्रेडिट दिए बगैर कहानी में मार दिया गया :)
आखिर बोध कथाएं इतनी बायस्ड क्यों होती हैं पार्थ :)
यशपाल की एक कहानी में एक कुत्ता बैलगाड़ी को ऐसे ही चलाता है ! बेचारा !
जवाब देंहटाएंआपने लघुकथा में कुत्ते को सार्थक कर दिया !
इंजेक्शन पूरे हो गए हैं या एकाध बाकी है ??
कुत्तवन की इहे त परेसानी है...
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि .. नूतन संस्कार जनक का ये हश्र.
जवाब देंहटाएंशायद कुत्ता नहीं रहा होगा कुत्तानुमा ही कुछ रहा होगा.
गिरजेश भाई,
जवाब देंहटाएंयह पुरानी कहावत ऐसे ही नहीं बनी है।
"कुकुर के भरोसे गाड़ी नहीं चलती"
वो 'एक देहाती बोध कथा' अभी पढी,
जवाब देंहटाएंलेकिन यह मात्र धुनिया का तीर तो नहिं
सच तो यह है…
"वन के राव बड़े हो ज्ञानी, बड़ों की बात बड़ों ने जानी"
अरे आपने तो उसकी पोल ही खोल दी ....ज़रा सीक्रेट ही रहने देते :)
जवाब देंहटाएंआप के ब्लांग का लिंक मेरे यहां क्यो नही आता ? बेचारा कुता जी शुअक्र रेल गाडी से पंगा नही ले लिया
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