बहुधा लोग मद्य एवं सुरा को एक समझते हैं जब कि दोनों भिन्न वर्ग के पेय हैं। अमरकोश इत्यादि परवर्ती ग्रंथों में उन्हें पर्यायवाची बताया गया है किंतु शास्त्रीय प्रमाणों से दोनों विशिष्ट हैं।
स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड, वासुदेव माहात्म्य में श्वेत द्वीप की चर्चा के समय निषेध स्वरूप 11 प्रकार के मद्य एवं तीन प्रकार की सुराओं का उल्लेख है:
एकादशविधं
मद्यं त्रिविधां च सुरामपि।
नाजिघ्रदपि कोपीह तस्मिन्राज्यं प्रशासति ॥
11 प्रकार के मद्य पुलस्त्य स्मृति में ये बताये गये हैं:
पानस (कटहल), द्राक्ष (अंगूर), माधूक (महुवा), खार्ज्जूर (खजूर), ताल (ताड़), ऐक्षव (ईंख), माध्वीक (मधु), टाङ्क (कपित्थ/ कैथ), सान्नमाध्वीक (अन्न एवं मधु साथ साथ), मैरेय (जौ) त था नारिकेल (नारियल)।
तीन सुरायें अग्नि पुराण में ये बतायी गयी हैं:
माधवी गौड़ी च पैष्टी च त्रिविधा सुरा।
मधु से माधवी, गुड़ से गौड़ी तथा आटे से पैष्टी।
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