शनिवार, 10 अप्रैल 2021

... नहीं रहीं अम्मा

हिमच्छाया सी थी। प्रकाश के लट्टू ठिठुरते सैनिकों से टिमटिमा रहे थे - सावधान! दक्षिणी आकाश में ऐरावत की शुण्ड फुफकारते फणि सी दिख रही थी। और माँ बैठी थी नीचे, झर झर झरती शेफालिका के नीचे अनगढ़ शिव का शृङ्गार करती, हनुमान जी को टीकती, गँवई मंत्र पढ़ती जिसके अधिकार उसके पास सदातन थे और जिनके निकट आते ही मंत्रद्रष्टाओं की दीठें धुँधला जाती थीं - जय हनुमान जी, जय राम जी, किस्ना जी, जय दुर्गा मैया की, काली माई की जय ... जाने कितने देव देवी उसे सुन रहे थे। ये वे मंत्र थे जो समस्त गर्भगृहों के ध्वस्त होने पर भी माताओं ने अपने उदरों में छिपा लिये थे, जिन्हें बारम्बार जन्म देती हर स्त्री जननी थी, संतति को अमरत्व की मधुरिम धार पिलाती, मुस्कुराती।
पूजा समाप्त हुई और आसन पर बैठे हुये ही मैंने उनकी एक बाँह अपने हाथ ले ली - झुर्रियाँ ही झुर्रियाँ! त्वचा और अस्थियों के बीच जैसे केवल धमनियाँ ही बची थीं।
काहे अम्मा, ई का?
उनके मुख पर मानों रश्मियाँ हास बन कर खिल उठीं। मैं समझ गया कि अम्मा केवल इतने से उस पुरुषदुर्लभ सुख में है कि बेटे को इतना तो दिखा! वैसे ही उसने उत्तर दिया - तोहार माई बूढ़ भइली बेटा, सबदिन ओइसहीं रहिहें? ठीऽक बानीं हम! ... मैं ठीक तो हूँ और जाने को उठ गई!
मैंने रोकना चाहा तो उसने झिटका, रहऽ हो! बिहाने के बेरा कार करीं कि बइठि के बतकूचन करीं?
अम्मा मानों अदिक्षित उदासी सम्प्रदाय की थी - बहुत सी बातों पर उदासीन, अनासक्त। स्वावलम्बी, स्वाभिमानी अम्मा मृत्यु का कभी नाम तक न ली किंतु प्रतिनिश सोने से पूर्व उसकी प्रार्थना यही रहती कि हे भगवान! केहू के असरइत न बनइह! हे इसवर! चलते फिरते उठा लीह!! ... सभी प्रार्थनायें सुनी जातीं तो संसार कितना सुंदर होता! ...
... हरे राम हरे राम राम राम हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ... मंद स्वर में यह महामंत्र चल रहा है। मुझे लगता है कि अम्मा ने जब जाना कि दूसरों का आश्रय लेने का समय आ गया तो अपने भगवान को सायास बुला लिया।
... इतने दिनों के पश्चात भी मेरे आँसू सूखे ही हैं।
अम्मा जाने से पूर्व शेफालिका का वृक्ष कटवा गई थीं - उसमें धोंधड़ बन गया था जिसमें साँपों का बसेरा होने की सम्भावना थी। साँप माने विष, विष माने मृत्यु। अम्मा जाने के पूर्व हम सबको सुरक्षित कर के गई। उसके लिये मंत्रों की सिद्धि इतनी ही थी, झरते फूल तो निठल्ले जन के लिये होते हैं!
मेरी आँखों के समक्ष आज भी वही श्यामपट यथावत है जिससे लड़ने के लिये, जिसके पार देख पाने के लिये मैंने बलात अपनी पूर्वचर्या को अपनाया, बलात हास्य, बलात समस्त कार्यव्यापार कि उस परिभाषाहीन विषाद का कारण जानूँ जिसे कह भी नहीं पा रहा, मुझे मुक्ति मिले किंतु मैं तो उदासी सम्प्रदाय का नहीं न!
दक्षिण की दिशा यम की है। आकाश में आज भी फणिधर फुफकारता है, रहेगा और मैं आज भी मानों उन झुर्रियों को देखता विश्वास ही नहीं कर पा रहा कि... कितना काम बचा है और कुछ नहीं हो रहा!

न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत् प्रकेतः
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किञ्चनास    
तम आसीतीत्तमसा गूढमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्  
तुच्छ्येनाम्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्  
 को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् कुत आ जाता कुत इयं विसृष्टिः  
अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आ बभूव  
 इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न  
यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अंग वेद यदि वा न वेद    
        

10 टिप्‍पणियां:

  1. दुःख व्यक्त करने के अतिरिक्त और कुछ कर नहीं सकता। जब मेरी माताजी का स्वर्गवास हुआ तब मेरी वय लगभग 35 वर्ष की थी। माँ के न रहने से उत्पन्न निर्वात को कोई सान्त्वना भर सकने में सक्षम नहीं होती।

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  2. आप उम्र लेकर हैं सो इतना बड़ा साहस करः पाए ,हमारी आजतक हिम्मत न हो रही कि शरीर पर लगी दुःख की दीमक पर लिख पाएं, काँप जाते हैं!
    अन्येषां न शरणम् , माता पिता भूमि और व्योम हैं बाळक के ! प्रणाम भाव को ,माता जी 🙏🙏

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  3. माँ बचपन मे चली गयीं तो उनका कुछ याद नही ,आजी (दादी)थी वही हमारी मां थी वो गयी तो मैं नही रोया बस मौन एक सप्ताह बाद सपने में आई कभी कभी सपने असलियत का आभास देते हैं तो ये तो याद था कि आजी तो गयी पर सपने में तर्क नही चलते उसके गोद मे मुंह रखकर खूब रोये घण्टो रोये निद्रा भंग हुई पर रुदन भंग न हुआ उसके बाद भी घण्टो रोये ।

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  4. सहसा विश्वास करना कठिन हो रहा है इस दु:खद समाचार पर... अचानक उनके स्वर जो आपके ही इसी ब्लॉग के माध्यम से मैंने सुने थे, कई लोकगीत जो उनके स्वर से सज्जित थे, आज भी कानों में गूँज रहे हैं। मुझे आज भी याद है कि मैंने आपसे अम्मा के मधुर कण्ठ से एक लोकगीत का अग्रह किया था। किंतु मेरा दुर्भाग्य... ! और आज निर्वाक हूँ इस समाचार से... नि:शब्द हूँ और आँखें बंद किये अम्मा की छवि स्पष्ट देख पा रहा हूँ!

    मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि!!

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