गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

कुरुक्षेत्र में ..क्या उखाड़ लोगे ?

जागरूक व्यक्तियों के अपने अपने कुरुक्षेत्र होते हैं । उनसे छुटकारा नहीं। चाहे कर्ण की तरह घुटते हुए लड़ें, अर्जुन की तरह मोहनिवृत्त हो लड़ें, अश्वत्थामा की तरह प्रतिशोध में लड़ें, भीष्म की तरह सिकुड़ी मर्यादाओं के पालन के लिए लड़ें .... लड़ना होता ही है।
घर के सामने का पार्क मेरे लिए कुरुक्षेत्र जैसा है। kuru लगभग चार एकड़ में फैला यह पार्क प्रशासन की दरियादिली और उपेक्षा दोनों का उदाहरण है। 600 पौधों का रोपण चहारदीवारी के साथ, पानी के लिए बोरवेल अगर दरियादिली के उदाहरण हैं तो इस घोर गर्मी में पानी देने के लिए स्थायी व्यक्तियों का न होना उपेक्षा का। ठीकेदार के भरोसे पौधे वैसे ही जीते, मरते, जीते, मरते के चक्र में पड़े हैं जैसे सरकारी खजाने को खाली करने से बनी हुई कोई भी चीज होती है।
जब आया तो इस विशाल पार्क में गाजर घास का बोलबाला था। एलर्जी की बिमारी के कारण घास के पौधों को छूते भी घबराता था। लेकिन आँखों की चुभन कुछ ही दिनों में एक अलग ही बिमारी हो गई। नई बिमारी से छुटकारा पाने को एक दिन अकेले ही इस घास के पौधों को उखाड़ने लगा। पहले दिन तो नहीं लेकिन दूसरे दिन से देखादेखी तीन चार लोग और धर्मप्राण माली भी आ जुटे। देखते ही देखते सात दिनों के भीतर ही पार्क गाजर घास से खाली हो गया। ...
पार्क के एक किनारे खाली प्लॉट पड़े हैं। अन्य एकांत जगहें होने पर भी सुविधा (?) और साफ जगह पर हगने के सनातन भारतीय चरित्र को चरितार्थ करते हुए आम जनता उन में सुबह शाम हगने का दैनिक देहकर्म सम्पन्न करती थी। कॉलोनी के लोग बदबू को सहते थे । महिलाएँ निर्लज्ज नंगई के कारण टहलने नहीं आती थीं। मुझे बड़ा अजीब लगता था कि कोई उन्हें टोकता नहीं था। एकाध से बात की तो ये सद्विचार आए:
- इस परम गोपनीय (खुले में हगना ?) कार्य करते हुओं को टोकना बेशर्मी होगी (गोया लाज शरम का हम ठेका लिए हैं और वे बेशर्मी का)
- अरे भाई, टोकने से सटक जाती है। बहुत स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।(जन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ?)
- कोई व्यवस्था नहीं है, कहाँ जाएँ सब ? ( तो यह है व्यवस्था! थोड़ी दूर जाएँ तो प्रकृति की व्यवस्था ही व्यवस्था है लेकिन कौन चल कर दूर जाय जब बगल में ही हगने की व्यवस्था है? व्यवस्था के वाहक झेल लेंगे लेकिन व्यवस्था बनाए रखेंगे ?) ...
हार कर(?) अर्जुन ने गांडीव उठाया। रोकना, डाँटना, समझाना, लानत भेजना .. तुणीर के शस्त्रास्त्र निकलने प्रारम्भ हुए। एक बार फिर उन्हीं तीन चार लोगों ने साथ देना शुरू किया और दस दिनों में ही हगने वाले दूर दीवार के पीछे सिमट गए। ..
जाड़ा आया। मेरे लिए प्रकृति का अभिशाप। घर की ऊष्मा के सुरक्षा कवच में मैं दुबका रहा। बचा रहा। डाक्टर की सलाह को मानते हुए मार्च और करीब पूरा अप्रैल सुबह शाम पुष्प पराग सुवासित वायु से बचता रहा। पिछ्ले सप्ताह से निकलना प्रारम्भ किया तो देखा कि कुरुक्षेत्र फिर से तैयार है। गाजर घास के सफेद फूल अपने चरम पर हैं। यही समय है कि उन्हें नष्ट किया जाय। श्रीमती जी कहती रहती हैं - एक अकेला क्या कर लेगा? कोई पुरुष मेरी बैचैनी देखता तो कहता - अकेले क्या उखाड़ लोगे ?
मुझे सेतु बन्ध की गिलहरी के गुण गाते विवेकानन्द याद आते रहते हैं। .. अभियान का प्रारम्भ घर के सामने की सड़क के लम्बे गलियारे से हुआ। एक सौ रूपए और दो दिनों में यह इलाका गाजर घास से साफ हो गया।  ये रूपए तो किसी मद में बचाए ही जा सकते हैं।    path
पार्क के भीतर से माली ग़ायब हो गया है। गाजर घास बढ़ी हुई है और पौधे दो तीन दिनों के अंतराल पर पानी पा रहे हैं - कैजुअल व्यवस्था। लिहाजा जी रहे हैं, मर रहे हैं। पानी के लिए तो शिकायत ही की जा सकती है। इतना बड़ा पार्क कोई लॉन तो है नहीं कि पाइप उठाया और सींचने लगे! park
एकड़ों में पसरी गाजर घास ने पहले तो हिम्मत पस्त कर दी लेकिन गिलहरी कहाँ बाज आती है ! लिहाजा कल से अकेले उखाड़ रहा हूँ । आज अनुमान लगाया कि करीब आठवाँ हिस्सा साफ हो गया। दाईं ओर एक छोटे भाग का चित्र लगा है। आज फिर से दो लोगों ने वाह वाही दी है और कल से हाथ बँटाने का वादा किया है। तो आशा कर रहा हूँ कि एक सप्ताह में पार्क गाजर घास से मुक्त हो जाएगा।


  हगने वाले फिर से अपने कर्म में लग गए हैं। कल से टोका टोकी, समझाना और लानत मलामत शुरू कर दिया है। प्रभाव पड़ रहा है। आज टहलते दो अजनबियों ने भी मेरे साथ मोर्चा सँभाला।  उम्मीद है कि  कुछ दिनों में ही कौरव सेना समाप्त तो नहीं लेकिन पीछे जरूर हट जाएगी।
एक प्रश्न है - क्या आप भी कहीं उखाड़ते हैं ? यदि हाँ, तो यहाँ अपने अनुभव बताइए। यदि नहीं तो nice, सुन्दर प्रयास, लगे रहो जैसी फालतू टिप्पणियों के बजाय कहीं उखाड़ना शुरू कीजिए। आप के आस पास कुरुक्षेत्र अवश्य होगा।

25 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग जगत की गाजर घासों का जिम्मा हम लेते हैं ........हाय हाय
    बहुत सिविल काम में लगे हैं ......
    मेरी शुभकामनाएं !

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  2. हम तो कुछ उखाड़ नहीं सकते, क्योंकि यहाँ उखाड़ने के लिये कुछ है ही नहीं, हाँ हम वित्तीय अशिक्षितता को उखाड़ने का प्रयास जरुर कर रहे हैं, और लगभग रोज कोई न कोई हमारा शिकार होता है :)

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  3. इस पावन कार्य में लगे रहें. जब जमीन में नमीं हो तो उन्हें पूरे जड़ से उखाड़ा जा सकता है. हम उखाड़ते तो नहीं इकठ्ठा करते हैं. आस पास के पिकनिक स्थलों में लोगों द्वारा फेंकी गयी नाना प्रकार की वस्तुओं को.

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  4. जमे रहो.....एक ओर घास होती है जो एलर्जी करती है......

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  5. अखाड़ते रहिए, एक न एक दिन तो उखड़ ही जाएगी। मदद की जरूरत हो तो आवाज दीजिएगा, एक दिन वहीं पर ब्लॉगर्स मीट रख दी जाएगी और सबसे ज्यादा उखाडने वाले को एक उखाड़श्री की पदवी भेंट की जाएगी।
    --------
    गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
    ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।

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  6. Hire a man or a woman for the purpose. Labour charges can be shared with neighbours. [ kaam bhi ho gaya aur gareeb ko do paisa bhi mil gaya ]

    Hum to aise hi ukhadwate theyy.

    Division of labour !

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  7. दिव्या जी,
    थोड़ा कहा बहुत समझना। बस इतना जान लीजिए कि रखरखाव और चौकीदार के लिए रु100/- प्रतिमाह देने को भी लोग तैयार नहीं हैं।

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  8. प्रतीकात्मक तौर पर मुहिम में हाथ बटाने के ख्याल से गाज़र घास के कुछ पौधे हमने भी उखाड़ फेंके है...कुछ यूँ समझिये अपने अपने कुरुक्षेत्र :)

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  9. .
    Girijesh ji,

    This is the irony. I do agree with with you. I too have witnessed all this. People are reluctant to pay a small amount even. They are ready to live in mess and stink, but not ready to spend . It reflects our mentality . Our attitude. People are not ready to grow and prosper .'Let go' attitude is prevalent. I guess it will take ages to change the trend and bring awareness in the crowd.

    Still, let's hope for the best..

    Although i'm prepared for the worst.

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  10. भाई उखाड़ने का यह नेक काम मै भी किया करता हूँ । आपके इस वाकये को पढ़कर यह अच्छा लगा कि मै ही एक पागल नहीं हूँ । आजकल कुछ और पागल मेरे साथ आने लगे हैं । इसके अलावा एक काम और भी करता हूँ मैं बाल्टी लेकर निकलता हूँ और अगल बगल की स्ट्रीट के प्यासे पौधो को भी पानी दे आता हूँ मै । कुछ लोग मुस्कराते हुए निकल जाते है , कुछ लगे रहो के भाव के साथ और कुछ बढ़िया नाइस जैसे कमेंट के साथ ।
    लेकिन कुछ भी कहिये ... हमारे जैसे लोग दुनिया में हैं राव साहब ....चलिये लगे रहें...

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  11. उखाड़ तो हम किसी का भी कुछ नहीं पाते ...आम भारतीय की तरह राय दे सकते हैं ...गाजर घास उखाड़ते हुए भी बहुत एलर्जी करती हैं ...इसको जड़ से उखाड़ना बहुत जरुरी है ...वर्ना फिर से उगेगी ...सारी मेहनत दुबारा ....इस नेक कार्य के लिए शुभकामनायें ....!!

    ना उखाड़ पायें किसी का कुछ ...मॉर्निग वाक करते हुए देर तक सोने वाले सज्जन पड़ोसियों के घर के आगे लगी स्ट्रीट लाईट बंद करने का जिम्मा जरुर ले रखा है पतिदेव ने ...हम तो नए वृक्ष लगा कर संतुलन बनाने का प्रयास कर लेते हैं ...जहाँ हर तरफ गौरैया के लुप्त होने का शोर है ...हमारी गली इनके कलरव से गुलजार रहती है दिन भर ...

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  12. sharad kokas ji, rao saab, ali ji jaise samaj sevi ko pranaam...hume to ghaas ukhadne mein sharam aati hai....female hone ki ek aur demerit..

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  13. वैसे आपके जैसे सच्चे इंसान हैं कहाँ ?
    हमारे यहाँ तो इनसब बातों की ज़रुरत नहीं होती ...लेकिन वोलेन्टियर का काम हम भी कर देते हैं...ओल्ड एज होम में....बुजुर्गों के काम आजाते हैं....
    हमारी शुभकामना है आपके लिए....

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  14. झूठ क्यों बोलें जब हम नहीं उखाड़ रहे कुछ भी...
    बहुत दिन हो गए ऐसा कुछ उखाड़ने का प्रयास किये... लगभग साल भर. थोडा बहुत उखाड़ा था फिलहाल बंद है. कई बहाने मिल जाते हैं आलसी इंसान को. यहाँ नहीं बताएँगे क्या उखाड़ने का प्रयास था, बताने का क्या लाभ? वैसे ये सटके हुए लोग जिन्हें ये सब देखकर खुजली होती है... मेरे एक दोस्त कहते है 'थोडा तो सटका हुआ है ऐसे ही कोई थोड़े न... ' (कुछ भी उखाड़ने लगता है?). उखाड़ते रहिये... साथ में कुछ और लोग सटकते जाएँ तो बात बने.

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  15. मेरी कॉलोनी में तो लॉन ही नहीं है मगर कॉलोनी २५ फुट चौड़ी है। गाजर घांस यहाँ भी जम जाते थे। मैने भी एकला चलो रे की नीति पर उखाड़ने की प्रक्रिया प्रारंभ करी धीरे-धीरे बात लोगों की समझ में आ गई। कॉलोनी में एक भी वृक्ष नहीं थे एक वर्ष के अथक प्रयास से वन विभाग की मदद से कई वृक्ष लगवाए। सभी को अपने-अपने घर के सामने के वृक्ष को जिंदा रखने की जिम्मेदारी दी। आज कॉलोनी हरी-भरी है। शुरू-शुरू में तो कॉलोनी में ऐसे लोग भी मिले जो कहते थे... आप तो सड़क ही छोटी कर दे रहे हैं..! आज वे भी प्रसन्न हैं।
    उखाड़ना तो पड़ता ही है। पहल भी किसी न किसी को करनी ही पड़ेगी। आप अकेले उखाड़ने के बजाय कुछ समझदार लोगों को ढूंढ कर एक समीति का गठन कर लें और भी समस्याओं का निदान हो जाएगा।
    मेरे गुरूजी कहते थे.. करने से होता है, करो करो...

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  16. हगना शब्द कितना सुहाना लगता है!!!!
    इसका नंबर अभी आया ही नही, कतार में ही खड़ा है।


    बकिया पोस्ट लाजवाब है।

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  17. गाजर घास बड़ा भयंकर प्रतीक है. गाजर लुभाती है और घास काटती है. अच्छा ये बताएये कि बैचारी गाजर घास कहाँ उगे, उसे भी तो उगने का जीने का अधिकार है?

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  18. इस तरह के प्रयास होते रहें तो लोगों का संबल बना रहता है और एक हल्की फुल्की आस बंधी रहती है कि कोई तो है जो देख रहा है। इस एक हल्के से डर या दबाव का होना भी अपने आप में बहुत काम का होता है।

    लगे रहो भई लगे रहो।

    और हां,

    जौनपुर से अभी अभी उखाड़ कर आ रहा हूँ :)

    गुड़ वगैरह लेकर आया हूँ...जब उखाड़ते हुए थक जाना तो अपने पास बंदोबस्त है....एक भेली गुड़ और एक लोटा पानी से तरी आ जाती है :)

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  19. गंगा किनारे एक चौदह पन्द्रह साल का किशोर हग रहा था। सब के आने जाने के रास्ते के पास। मैं तो बगल से निकल गया। पर पत्नी जी से न रहा गया। उसे ललकार दिया। "यहीं चूतड़ पर दो चप्पल जमाऊंगी हरामी के पिल्ले, उठ, जा, आपनी मां की गोदी में हग।"
    वह भागा। कुछ लोग उसका पक्ष लेने लगे तो पत्नीजी ने उन्हे भी लखेदा। बोलती बन्द हो गयी सबकी।
    पता नहीं तब क्या उखड़ा। :)

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  20. कालोनी में अगर क्रिकेट खेलने वाले मिल जायें तो शायद काम आसान हो जाये ।

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  21. देखती हूँ की पोस्ट पुरानी है- और दुनिया के दस्तूर के ही अनुरूप इस पर भी खूब गाजरघास उग गयी है - पिछली टिपण्णी डेढ़ साल पुरानी है ... :)

    पूछने की हिम्मत कर सकती हूँ की अब क्या हाल हैं वहां ? या कि गाजरघास का राज ख़त्म हो कर इंसान का ( सरकारी या फिर गैर सरकारी - official या unofficial अतिक्रमण ? )
    कब्ज़ा हो चुका है उस खुली ज़मीन पर ?

    यदि अब भी खुला मैदान है - तो बच्चे खेलते क्यों नहीं वहां ? एक बार सफाई के बाद यदि यहाँ खेलने आदि के groups आने लगें, तो सफाई बनी रहेगी |

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  22. शिल्पा जी,

    वहाँ कोई कब्जा नहीं है और न गाजर घास। सफाई है। लगभग ढाई एकड़ में फैले इस पार्क की देखभाल हमलोग ही करते हैं। सरकारी अमला झाँकने तक नहीं आता।

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