मंगलवार, 1 सितंबर 2009

पुरानी डायरी से - 1


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नया जवान होता व्यक्ति अभिव्यक्ति के सागर जेब में लिए चलता है। जेब भी कैसी ! पानी तक न टपके। जब जरूरत हो तो निचोड़ कर ऐसी टपकाए कि बस ....
थोड़ा रूमानी और ताक झाँक वाला स्वभाव हो तो क्या कहने ! 
आज अपनी पुरानी डायरी आप के सामने खोलना प्रारम्भ कर रहा हूँ - पन्ने दर पन्ने , बेतरतीब । डायरी रोजनामचा टाइप नहीं बल्कि सँभाल कर छिपा कर किए प्रेम की तरह - जब मन आया लिख दिए, जब मन आया चूमने चल दिए, बहाने चाहे जो बनाने पड़ें। 
नई जवानी में बचपना अभी शेष है लेकिन आश सी है कि इन पन्नों को भी उतना ही प्यार दुलार मिलेगा।
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9 मई 1992                          'झुलसा सारा गाँव'



आज चाँदनी के आगन में, गरमी धरती पाँव
झुलस गए सब फूल पतंगे, झुलसा सारा गाँव।


सूख गए सब ताल तलइया
कोयल छोड़ चली अमरइया
गिद्धों के उन्मुक्त भोज में
कउवे बोलें काँव
झुलसा सारा गाँव।


भाग चले सब छोड़ घोंसले
मन में जलता काठ कोप ले
भाग दौड़ छीना झपटी में
सधते सबके पाँव
झुलसा सारा गाँव।


दीप दिवाली होली गाली
खा गइ सभी अमीरी (?) साली
नए ठाँव के नए ठाठ में
चलती कागज की नाँव
झुलसा सारा गाँव।  
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17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना है इतनी देर बाद अपनी रचनाओं को पढना बहुत अच्छा लगता है आभार्

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  2. बहुत उम्दा रचना -आप तो पूरे कवि भी हैं !

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  3. गिद्धों से याद आया अब तो बेचारे गायब ही हो गए !

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  4. तो गोया अब हमें रोज़ आपकी डायरी पढ़नी होगी!!! चलो, ये भी झेल लेते हैं:)

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  5. खोल डायरी लिखी शायरी
    ब्लॉगपोस्ट बन देख जाय री
    आलस से अब जाग चुके हैं
    कवि गिरिजेश राव
    झुलसा सारा गाँव

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  6. एक विशुद्ध धरती से जुड़े आदमी की कविता पढ़ रहे हैं, यह तो साफ हो गया। कोई भी शहरी अभिजात्य मोटिफ नहीं।
    अन्यथा ताल तलैया की जगह स्वीमिंग पूल होते। गिद्ध की जगह नाइटिंगेल। :-(

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  7. "डायरी रोजनामचा टाइप नहीं बल्कि सँभाल कर छिपा कर किए प्रेम की तरह...." इस पंक्ति पर ही वारा जाऊँ पहले तो । कितना माधुर्य होगा इस गोपन प्रेम की माधुरी में ।

    हम तो इस डायरी के पन्नों को कलेजे से लगा कर रखना चाहेंगे ।

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  8. अफ़सोस हो रहा है मैंने अपनी डायरीयां क्यों जला/फाड़ डाली ..अब जाकर अक्ल आई है पर का वर्षा जब कृषि सुखानी ..खैर अच्छा लगा आपको पढ़ कर.

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  9. अद्भुत है भाई....ओर इससे पहले की भूमिका भी दिलचस्प है

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  10. पुरानी डायरियाँ सम्भाल कर रखने से यही फायदा होता है आपको तो हुआ ही हमे भी हुआ जो बढिया गीत पढ़ने को मिला । मै भी आज अपनी पुरानी डायरियाँ टटोलता हूँ -शरद कोकास दुर्ग ,छ.ग.

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  11. आपकी डायरी के पन्ने
    अब विश्व जाल पर
    चिर काल तक
    स्थायी हुए
    कविता पसंद आयी
    - लावण्या

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