सावधान! ...एक डिस्क्लेमर
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ऐसी शिकायतें मिली हैं कि मेरे नाम से लोगों को पुस्तकें भेजी जा रही हैं। अगर आपको मेरे नाम से पुस्तक, पत्रिकादि के पार्सल डाक या कुरियर से मिलें तो जान लीजिये कि उन्हें मैं नहीं कोई और भेज रहा है।
सावधान! वह व्यक्ति फर्ज़ी और जाली है।
... पुस्तकें भले ही असली हों।
कैसी किताबें?
जवाब देंहटाएंमेरा पता दीजिए जरा उसे. कोई अपनी लिखी किताब पढवाने ले लिए ऐसा कर रहा है क्या? :)
कैसा ज़माना आ गया है! जर्मनी में एक चोर पकडा गया जो मौका लगते ही लोगों के घर साफ कर दिया करता था। जी हाँ बाकायदा झाडू-पोंछा लगाकर [जी नहीं, चुराता कुछ नहीं था, ट्रैसपास की धाराओं में अन्दर है।] ये सब कलयुग के लक्षण हैं या 2012 के?
जवाब देंहटाएं[यह टिप्पणी एक मज़ाक है - लगे हाथ मैं भी एक डिस्क्लेमर लगा दूँ]
हमें मिली तो आपको अवश्य बतायेंगे।
जवाब देंहटाएंहम तो असली व्यक्तिओं की भी नहीं पढ़ते...
जवाब देंहटाएंवैसे भी आलसी क्या ख़ुद किसीको कुछ भेजेगा...
सावधान किया, अच्छा किया। हाय रे प्रकाशक! तू पान की दुकान क्यो नहीं खोल लेता..?
जवाब देंहटाएंहमें भी भिजवा दो ...बिना पैसा दिए ही पढ़ लेंगे ! :-)
जवाब देंहटाएंहमे भी भिजवा दिजीये ! हमे मुफ़्त की कोई भी चीज बुरी नही लगती है!
जवाब देंहटाएंपहले वाली किताब का जिल्द अभी तक साबूत है .....पन्ने चने वाला ले गया.....इसलिये भेजने से पहिले खुदै सोच लो :)
जवाब देंहटाएंहे भगवान क्या दिन आ गए हैं...
जवाब देंहटाएंकुछ मिले तो सही!
जवाब देंहटाएंनाम आपका (न)ही लेंगे।
मुफ्ते माल दिले बेरहम !
जवाब देंहटाएंमुफ्त का माल में हमें किसी प्रकार का कोई गुरेज नहीं !
(इसे डिस्क्लेमर के अलावा और कुछ समझने की जुर्रत ना की जाए)
मुझे वैसे भी नहीं नहीं चाहिए -आपके नाम से भी ..
जवाब देंहटाएंसेल्फ में रती भर जगहं नहीं है ..
वैसे कोई उदाहरण देना था न !
मुझे मिलेगी तो इत्त्ला करूँगा !
जवाब देंहटाएंकोई भिजवाये तो सही, फ़िर देखेंगे।
जवाब देंहटाएंमिलेगा तो देखेंगे.
जवाब देंहटाएंवह व्यक्ति फर्जी और जाली है? क्या वह वीपीपी से किताबें भेजता है?
पुस्तकें प्राप्त करते ही लगने लगता है कि पढ़ने का आग्रह और टिप्पणी का दबाव दूर नहीं.
जवाब देंहटाएंअरे राम, हमारे पास भी कल एक पार्सल पहुंचा था। यह तो अच्छा हुआ कि हमने यह आलेख पढ लिया था सो वापस भिजा दिया है। अब सोच रहा हूँ कि वापस कहाँ जायेगा? भेजने वाला भले ही फर्ज़ी हो मगर भेजने वाले का नाम पता तो असली ही लिखा था (शायद)!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी!
जवाब देंहटाएंपुरातन काल में अगर यह डिस्क्लेमर छपा होता तो यूं होता कि मेरे नामसे लोगों को पुस्तकें भेजी जा रही हैं. पुस्तकें भले असली हों, आदमी नकली है. पुस्तकें लेकर उसे तोता बना देना!!
बेचारा सन्देश वाहक!!!