कल शाम/रात को गोमतीनगर में निकलना हुआ। 4 अण्णा जुलूस दिखे। मोमबत्तियाँ, अण्णा टोपी, रात में तिरंगे और शांत स्वभाव से नारे लगाते लगभग 20 से 50 लोग लुगाई। मुझे मुक्तिबोध की कविता 'अन्धेरे में' का जुलूस याद आ गया। पढ़िए:
चेहरे वे मेरे जाने-बूझे-से लगते,
उनके चित्र समाचार-पत्रों में छपे थे
उनके लेख देखे थे,
यहाँ तक कि कवितायें पढ़ी थीं,
भई वाह !
उनमे कई प्रकांड आलोचक, विचारक, जगमगाते कविगण
मंत्री भी, उद्योगपति और विद्वान्
यहाँ तक कि शहर का हत्यारा कुख्यात
डोमाजी उस्ताद
बनता है बलबन
हाय हाय !!
यहाँ ये दीखते हैं भूत-पिशाच-काय.
भीतर का राक्षसी स्वार्थ अब
साफ़ उभर आया है
छुपे हुए उद्देश्य
यहाँ निखर आए हैं,
यहाँ शोभा-यात्रा है किसी मृत्यु दल की
मैं ऐसे किसी भी आन्दोलन का समर्थक हूँ जो अ-अनुशासन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध हो। बाबा रामदेव और अण्णा को मेरा समर्थन है लेकिन रुमानियत, खोखली हरकतों और नीरस जीवन में कुछ नया आया!, सोच कर बेकार की उछ्ल कूद मचाने वालों से चिढ़ है।
उन जुलूसों में नगर निगम, तहसील, बिजली विभाग आदि आदि से त्रस्त जाने कितने लोग रहे होंगे। क्या ही अच्छा होता कि ये लोग ऐसे ही जुलूस के साथ इन संस्थानों में अपनी माँगों और समस्याओं की पूर्ति/सुलझाव के लिये घुसते और अड़ जाते!
इससे वे सफेदपोश रंगे सियार बेनकाब होते और भाग भी जाते जो सिर्फ अपने को चमकाने के लिये जुलूसों में सबसे आगे हैं, साथ ही आन्दोलन का 'अपहरण' करने की ताक में भी लगे हैं।
यह इसलिये लिख रहा हूँ कि 'अमर उजाला' की खबर थी कि भीतर घूसखोरी बदस्तूर जारी है और बाहर साहब/कर्मचारी आन्दोलन में भी लगे हैं।
हद तो यह है कि बस 600 रुपये घूस देकर अण्णा हजारे का जन्म प्रमाण पत्र बनवा लिया गया।
अब विभागीय जाँच जारी है (उसके बाद क्या होगा? पता ही है।)
ऊ पी वालों! गर्व करो। नखलौ वालों जश्न मनाओ - अण्णा हजारे उर्फ किशन बाबू राव का जन्म लखनऊ में हुआ था, कल ही .....हमसे कुछ न पूछो! हमहूँ अन्ना।
गिरिजेश जी ! इसी स्थिति से व्यथित हो कर मैंने भी इसी विषय पर आज ही एक लेख लिखा है. शहर के बड़े-बड़े भ्रष्ट लोग "मैं अन्ना हूँ ' लिखी हुयी टोपी लगाकर अन्ना के समर्थन में धरने पर बैठ रहे हैं. इन नालायकों को ज़रा भी शर्म नहीं है कि ये तो अन्ना का मल-मूत्र बनने के लायक भी नहीं हैं...और चले हैं अन्ना को भरोसा देने कि हम आपके साथ हैं ...और देश को यह भरोसा देने कि अब मैं भी अन्ना जितना ही पवित्र और भरोसेमंद बन गया हूँ . सच कहूं तो देश को खतरा है ऐसे कुकुर्मुत्तायी छद्म अन्नाओं से.
जवाब देंहटाएंयही चिढ़ मुझे भी है यार कि ये 'राजनीतिक राखी सावंत' टाइप के लोग ताक में हैं कि कब और कैसे अन्ना के आंदोलन के जरिये खुद को हाइलाइट करें। टीवी पर देख रहा था किसिम किसिम के लोग अन्ना से जुड़ रहे हैं, जो त्रस्त है वह तो है ही जो त्रास देता है, वह भी शामिल है।
जवाब देंहटाएंखैर, ई तो महामंथन का दौर है तो राछस औ देवता का भेद करना उचित नहीं लग रहा लेकिन लगता है जल्द ही इन राछसों से भी निजात पाने के लिये कुछ करना होगा जो आंदोलन में रंगे सियार बने घुसे हुए हैं।
आज देखा एक आध्यात्मिक महाशय सरकार से बातचीत में शरीक हो रहे हैं, टीवी पर बार बार फ्लैश हो रहा है कि जनाब गुफ्तगू में हैं.....वही जनाब जो टीवी पर सुबह सुबह लोगों का भाग्य जगाते हैं...देखें इस आंदोलन के जरिये खुद का और देश का कितना भाग्य जगा पाते हैं ।
कुछ सकारात्मक परिणाम की आशा में...
जवाब देंहटाएं@ क्या ही अच्छा होता कि ये लोग ऐसे ही जुलूस के साथ इन संस्थानों में अपनी माँगों और समस्याओं की पूर्ति/सुलझाव के लिये घुसते और अड़ जाते!
जवाब देंहटाएंएकदम सही पकडा है। डटे रहिये, कई लोगों को मार्ग ढूंढने में सहायता की आवश्यकता है, अन्ना में भी वही दिशा-निर्देशक ढूंढ रहे हैं वे।
सभी के लिए ये हाथ धो लेने का मौक़ा है :)
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता पढ़ाई है, देखते हैं कि संसद भ्रष्टाचार के विरूद्ध है या नहीं ? वैसे अभी मम्मीजी बाहर हैं ।
जवाब देंहटाएं@ क्या ही अच्छा होता कि ये लोग ऐसे ही जुलूस के साथ इन संस्थानों में अपनी माँगों और समस्याओं की पूर्ति/सुलझाव के लिये घुसते और अड़ जाते! ............... stream line....sahi nabz...
जवाब देंहटाएं@pancham da'
"rajnitik rakhi wawant"
'kya baat hai'
pranam.
किसी भी समाज में 10% लोग ईमानदार होते हैं कैसी भी व्यव्स्था हो वह ईमानदार ही रहता है, 10% बेईमान होते हैं पक्के बेईमान, कभी न सुधरने वाले बेईमान ! बाकी 80% न ईमानदार होते हैं न बेईमान वो अगर व्यव्स्था ईमानदार होती है तो ईमानदार होते हैं व्यव्स्था बेईमान होती है तो वो बेईमान हो जाते हैं! (ये वही लोग होतें हैं जो सिंगापुर जाने पर पान की पीक सड़क पर नहीं फेकते बल्कि गटक जाते हैं। अमेरिका जाकर अपना टैक्स सही तरह से देने लगते हैं)....
जवाब देंहटाएंजनलोकपाल बिल इन्हीं 80% लोगों के लिये है!!
@chetany ji ne bilkul sahi kaha....
जवाब देंहटाएंचैतन्य जी की बात सही है की आम आदमी भ्रष्ट नहीं होता है उसे व्यवस्था भ्रष्ट बनने के लिए मजबूर करती है यदि व्यवस्था सही हो तो बाकि चीजे अपने आप सही होने लगती है | किसी को भी घुस देने की आदत नहीं होती है लोग मजबूर हो कर ही देना सुरु करते है और बाद में यही रिवाज बना दिया जाता है |
जवाब देंहटाएं@ जो सिर्फ अपने को चमकाने के लिये जुलूसों में सबसे आगे हैं, साथ ही आन्दोलन का 'अपहरण' करने की ताक में भी लगे हैं।
जवाब देंहटाएंयह इसलिये लिख रहा हूँ कि 'अमर उजाला' की खबर थी कि भीतर घूसखोरी बदस्तूर जारी है और बाहर साहब/कर्मचारी आन्दोलन में भी लगे हैं।...
सही है,भाई साहब वही लोग सबसे ज्यादा सक्रिय है यूपी में,
बढ़िया पोस्ट,,आभार.
आपको कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनायें और बधाइयाँ.
यहाँ सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि हर आदमी यहाँ दूसरों से अपेक्षा रखता है वह भ्रष्टाचार से मुक्त हो ,अपने भ्रष्टाचार को लेकर वह मुतमईन है!
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंकिसी का भी कोई प्रमाणपत्र बन सकता है।
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