बहुत दिनों से चाहा, बहुत कुछ लिखना तुम पर लेकिन नहीं लिख पाया।
न नमन है और न ग्लानि (पाखंड लगते हैं मुझे), मेरा समर्थन तुम्हें है।
वर्षों के तप को दिनों के सहारे नहीं चाहिये।
ठोस काम चाहिये, खोखले वादे नहीं चाहिये।
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अंततः वर्षों बाद !
जवाब देंहटाएंएक तपस्या।
जवाब देंहटाएंखोखले वादे........
जवाब देंहटाएंयही है भाई, अपुन के इंडिया में....
कई सालों से बाँट रहे हैं.
छ साल ...पहले या शायद सात साल पहले गया था मिलने| बस यूं ही , इनकी जीवटता को सलाम करने| दस मिनट बैठा रहा चुपचाप बगल की कुर्सी पर| पूछा था उन्होने "आर्मी में हो?" मैंने हाँ में सर हिलाया तो मुस्कुरा पड़ी थीं.... फिर चुप्पी रही जब तक रहा| एक ग्रीटिंग कार्ड लेकर गया था बुके के साथ| उनका स्वीकारना अपने आप में बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए| अब जब उनपे हजारों कवितायें और आलेख देखता हूँ, तो सोचता हूँ कि कितनों ने उन्हें एक पोस्ट-कार्ड तक भेजने की जोहमत उठायी होगी|
जवाब देंहटाएंi adore her, even though she is fighting for the cause that goes against my survival....
शुक्रिया भाई.इस वातावरण में इस पोस्ट की ज़रूरत थी.
जवाब देंहटाएंबहुत तसल्ली के साथ इस मुद्दे और मेंघूबी (the fair lady)पर लिखना चाहता था - इस ब्लॉग के लम्बे कई खंडों में फैले कुछ धारावाहिकों की तरह, लेकिन नहीं लिख पाया। संसार की जाने कितनी पीड़ायें उद्वेलित करती हैं और समय कम रहता है। छिछला और जल्दी वाला काम कर नहीं पाता। मेरी सीमा है।
जवाब देंहटाएंजब यह सुना कि अण्णा इस आन्दोलन के साथ जुड़ने वाले हैं तो न चाहते हुये भी मुँह तिक्त हो गया। लोकपाल आन्दोलन की जो तात्कालिक परिणति हुई उससे मैं बहुत क्षुब्ध हूँ - कहीं गहरे भीतर तक। मेरे अपने तर्क हैं जो सम्भवत: बहुसंख्य को न रुचें। यह लड़ाई विदेशी औपनिवेशी सत्ता के विरुद्ध नहीं थी ... अस्तु! प्रतीक्षा करते हैं। शायद समय मुझे ग़लत साबित कर दे।
...लेकिन इरोम शर्मिला का एकाकी आन्दोलन महज वादे और शुभेच्छा से आगे, बहुत बहुत आगे की माँग करता है। आवश्यक है कि हर भारतीय इसे समझे... भीतर बहुत बेचैनी है जिसे व्यक्त नहीं कर रहा... सीमा पर चीन की हरकतें, पूर्वोत्तर पर उसकी कुदृष्टि, हिन्द महासागर, पाकिस्तान, बंगलादेश, मयान्मार चारो ओर से घेराव और हमारी व्यस्त नौटंकी एवं पूर्वोत्तर के जन के प्रति गहन तिरस्कार उपेक्षा भाव...नींद उड़ती है...कुछ भी नहीं लिखा जाता।
...इरोम का एकाकी आन्दोलन बहुत गहराई और राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ लम्बे सुव्यवस्थित काम की माँग करता है, संसद की समवेत aye से बहुत आगे की माँग करता है...
इरोम शर्मिला -एक दुर्दांत साहस की कहानी -बलपूर्वक भोजन देकर जिन्दा बनाए रखने की जद्दोजहद मगर समस्या का समाधान अभी भी अधर में .....
जवाब देंहटाएंवाकई इस जज्बे को नमन --एक घनघोर तपस्या.
जवाब देंहटाएंआपका कमेन्ट देखने आया था कि आपने कुछ लिखा है कि नहीं.....ढेर सारी तसल्लियाँ लिए जा रहा हूँ अब! शुक्रिया, इस प्रकरण को तमाम नजरिए से देखने का....
जवाब देंहटाएंज़ज्बे को सलाम है. क्योंकि उन्होंने बीच का कोई रास्ता नहीं चुना इसलिए आज भी अनशन पर हैं.. यहाँ तो बीच का रास्ता चुनने की प्रथा है.. कुछ विचौलिये होने चाहिए आपके पास...
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जवाब देंहटाएंतपस्विनी इसी लिए, कि जन-पीड़ा की आवाज हैं वह!
यह कौन सी मजबूरी है जिसका लाभ नेता और अराजक सैनिक उठाए जा रहे, साधारणीकरण असंगत है इसलिए वैसा मैं भी नहीं करूँगा।
भारत ने अपनी पहचान को कितना सहृदय स्तर पर भू-मंडलिक किया है? - प्रश्न जी कचोटता है!
गौरम राजरिशी जी का प्रसंग पढ़ अच्छा लगा! काश सारे सेना के सिपाही ऐसे होते तो कोई मनोरमा की परिणति तक न पहुँचता!!
शब्द-शब्द, विचार-विचार सहमत हूँ यहाँ।
जवाब देंहटाएंअफसोस हुआ कि मेरा ध्यान अब तक इधर नहीं गया था।
जवाब देंहटाएंनमन भी है इन्हें , और ग्लानी भी अपनी अंधी बहरी इनर्शिया युक्त व्यवस्था पर |
जवाब देंहटाएंपाखण्ड बिल्कुल नहीं गिरिजेश जी - सिर्फ एक साधारण मानव की दैनिक जीवनचर्या की मजबूरी | सिर्फ नमन और ग्लानी ही तो है जो हम सब कर पाते हैं - इसे पाखण्ड न कहें, कि सब तो गिरिजेश राव या अनुराग शर्मा नहीं हो सकते ना?
कुछ कहने को शब्द नहीं हैं मेरे पास !
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