आजकल अपन
कालयात्रा में हैं तो किसिम किसिम के महापुरुषों से भी भेंट होती रहती है। कुछ दिनों
पहले सुदास चचा से भेंट हो गई। राजमार्ग से लगी हुई एक गली के नुक्कड़ पर जमीन पर
खाल बिछाये जूते सिल रहे थे। सामने ही कठौती पड़ी थी।
घूमते घूमते मेरे
जूते का एक तला घिस गया था तो रिपेयर कराने उनके यहाँ रुक गया। लंठों की जुबान का हाल
तो आप लोग जनबे करते हैं, माहिर चौंधानवी कह गये हैं:
चुप रहने पर तूफान उठा लेती है
दुनिया
अब इस पे क़यामत है कि हम चुप नहीं रहते।
अब इस पे क़यामत है कि हम चुप नहीं रहते।
सो चुप्पी तोड़ हम
उनसे यूँ ही हाल चाल पूछ बैठे – चचा की हाल? पहले तो कुछ बोले नहीं, सिर झुकाये जूते
का तलवा सिलते रहे। दूसरी बार पूछा तो जूता किनारे रख बोले – जब मेरे हाथ में जूता
हो तो सवाल नहीं करना चाहिये। पहली बार आये हो इसलिये जूता रख कर बात कर रहा हूँ
वरना वही हाल करता जो हवलदार अल्ल लपलपी शीरत खाँ का किया।
इतने भक्त आदमी
के मुँह से ऐसी भभक सुन मैं सहम गया। डरते डरते पूछ पड़ा – चचा क्या हुआ? सुदास चचा
ने कठौती किनारे कर जमीन पर बैठने को कहा। मैं जींस पहिने था जो जुम्मन मियाँ के सिलने
के बाद से धुली ही नहीं गयी थी इसलिये ज्यों की त्यों धर दीनी सोचते हुये
मैंने रास्ते की धूल पर ही अपनी तशरीफ रख दी। चचा मेरी सादगी पर बड़े प्रसन्न हुये
और कह सुनाया। संतों की वाणी, अपने बूते की नहीं सो सारांश बताते हैं।
असल में राजमार्ग किनारे बड्डी सड्डी ऊँची
सूची दुकाने हैं। किसिम किसिम की सजावट, किसिम किसिम के माल। इटली के जूते,
स्विट्जरलैण की जूतियाँ, अमरीका की टोपी, सऊदी अरब का दिल्लो दिमाग गायब वगैरा वगैरा सब बिकते
हैं। हवलदार शीरत खाँ का सबके यहाँ रोजीना बँधा हुआ है, न मिले तो दुकानदारों की रोजी ‘ना’ करवा
दें सो वसूली करने रोज पहुँच जाते हैं।
मुहाने से गली दिखती है और कोने पर सुदास चचा की बिन
छत बिन छूत सदाबहार दुकान भी। चचा का काम ही ऐसा कि मूड़ गाड़ो तो सातो जहाँ जूते में
और आकाशगंगा कठौती में। ऐसे में चचा को शीरत खाँ दिखते ही नहीं थे। न सलामी, न
कोर्निश और न रोजीना की चवन्नी! शीरत खाँ जब तब आयें और कठौती पर डंडा मार कहें –
सुबहान अल्ला! क्या जूते बनाते हो! मैडम देख लें तो हम जैसों को दो चार ऐसे ही लगा
दें। सुदास चचा चुप ही रहें। शीरत खाँ की मनबढ़ई चचा की चुप्पी से और बढ़ती गयी। एक दिन शीरत खाँ ने कहा – मियाँ, तुम्हारे जूते का नमूना उधर प्रदर्शनी में टँगा है, चल के देख आओ।
चचा रोज रोज की
चख चख से हैराँ थे ही, पीछा छुड़ाने की गर्ज से पहुँच गये। पहले तो वहाँ घुसते ही
सहमे। इतनी सजावट, इतनी बू और इतना शोर कि आँख, नाक और कान तीनों फटने लगे! चचा के लिये खड़े रहना दूभर हो गया।
शीरत खाँ
ने बीच में टंगे चचा के चमरौधे सैम्पल की ओर इशारा किया। चचा को काटो तो खून नहीं,
सैम्पल चोरी का था। जज्ब कर चुप ही रहे लेकिन शीरत खाँ तो उतारू थे, सो पूछ पड़े – कहो मियाँ कैसी रही? चचा को अपने सिले चमरौधे जूतों के ठीक ऊपर टँगे अरबी जूते दिख गये। उनका पारा चढ़ गया - चमड़ा
कमाने का सहूर नहीं जिसे देखो वही जूते के बिजनेस में इंटरनेशनल बना जा रहा है,
कितना गन्हा रहा है!
चचा ने आव न
देखा ताव एक हाथ में चोरी वाला चमरौधा लिया और दूजे में गन्धाता अरबी और पिल पड़े
शीरत खाँ पर। शीरत खाँ भागते हुये चचा के दुकान तक आये तो कठौती भी मिल गयी, चचा भिगो
भिगो लगे लगाने ...
आगे की कथायें फिर कभी क्यों कि सुदास चचा
से मैंने जो गुरुमंत्र लिया है उसमें चुपचाप रहना और मूड़ गाड़े अपना काम करना सीधे
परमेश्वर से मिलन का मार्ग बताया गया है। यह तो बस सैम्पल के लिये ...ही, ही, ही...लंठई, नंगई।
आप लोग भी मौन
हो, आँखें बन्द कर यह भजन सुनिये:
__________
गुरु चचा परमीशन
देंगे तो आगे की कड़ियों में और काल कथायें, जैसे:
-
आज़ादी की लड़ाई और कुछ काहिल कुटिल
क्षद्म लठैत
-
अंग्रेजों के जमाने का जेलर, तीन
तिलंगे, साजिश-ए-सुरंग और गर्मागर्म लोहा
...
...
अरबी जूते.. वो भी गंधाते... हमने नहीं देखे.. अगर इस बार गये तो ये चचा वाले जूते ढूँढेंगे जरूर । और बात सही भी है जब जूता हाथ में हो तो सवाल पूछना वाजिब नहीं :)
जवाब देंहटाएंहम लोग तो सदियों से मौन हैं और केवल भजन ही सुन रहे हैं, आज भी सुन लेंगे ।
कारण भी है और साधन भी..तब तो होना भी चाहिये..
जवाब देंहटाएंअल्लसुबह!!! मुहूर्त अच्छा है. दिन अच्छा जाएगा.:)
जवाब देंहटाएंमाशा अल्ला, लंठई ऐसे हीं परवान चढ़े...
वर्णन से तो दिल्ली लाल किले के पीछे लगाने वाला 'चोर बाज़ार' लगता है कारण कि सारी गायब - सायब चीज़ें वहीं मिलती है और समझदार लोग, जिनको तीन जगह 'लगता' है, कम-से-कम अरबी 'दिल्लो-दिमाग़' की खरीददारी वहीं से करते हैं...
गुरु चचा से परमिसनवा रेक़ुएस्टियाईये. हम भी मूड़ गाड़े प्रतीक्षारत हैं.
सादर
ललित
maun hi rah jaate hain , joote nahi khane hame :(
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.
... ;)
...
वाह...शुंदर प्रश्तुति!!
जवाब देंहटाएंइस लंठ पोस्ट का लिंक टंटा पंच(निर्माणाधीन) पर:)
(वर्तनी की गलती पर लठैती न शुरू कर दीजियेगा, आजकल हम थोड़ा शा शिरफ़िराये हुये हैं)
टंटा पाँच कहाँ तक पहुंचा?
हटाएंइतने catchy titles की एडवांस बुकिंग कर ली हैं, जरूर किसी गहरी चीज की तरफ़ ध्यानाकर्षित करने की सोच रखी होगी।
जवाब देंहटाएंदो-चार टाईटल जल्दी जल्दी में हम भी सुझा देते हैं -
टेढ़ी नली
गगरी में तूफ़ान
हम से अड़ कर कौन?
छित कर मानेंगे..
ओके टाटा फ़िर मिलेंगे(ये वाला टाईटल नहीं है) :)
सुदास चचा आपको अनुमति दें और आप हमें ऐसी ही रोचक/प्रेरक कथायें।
जवाब देंहटाएंप्रभु जी ...
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