छीन
लो पुस्तकें उनसे
उन्हें
पढ़ने के पश्चात
वे
करते हैं विचित्र बातें
समझदार
से लगते हैं
छीन लो पुस्तकें उनसे!
उनमें
कोई असंतोष नहीं
न आपा
धापी,
चुपचाप
तेजी से काम कर
बचाते
हैं समय, पढ़ने को पुस्तकें
अर्थव्यवस्था
ठहरी है उनसे
(सोचो
वह समय जो काम में लगता!)
उन
कामचोरों को काम पर लगाओ
उनकी
देह में पसीना उगाओ
छीन लो पुस्तकें उनसे!
उनके
भीतर होती है विचित्र सी शांति
वे
सुनते हैं उतनी ही शांति से
आक्रोश
की बातें
असंतोष
की बातें
विद्रोह
की बातें
और जब
अपनी कहते हैं तो हिम बरसते हैं
क्रांतियाँ
नहीं हो पा रहीं उनके कारण
क्यों
कि उनके पास हैं समाधान
सौ
में निन्याबे के – घनीभूत मेधायें पन्नों
में
और
सौवें के बारे में वे बुलाते हैं - आओ! ढूँढ़ते हैं,
कहीं
न कहीं होगा कुछ अनदेखा रह गया
न कुछ
करते हैं और न करने देते हैं
वे
हमें बहकाते हैं
संकटों
में मुस्कुराते हैं
छीन लो पुस्तकें उनसे!
संतुष्ट
हैं वे दरिद्र
उनके
बच्चों को न दाग अच्छे लगते हैं
न नमक
वाले पेस्ट से उनके दाँत चमकते हैं
उनकी
टी वी में स्मार्ट नेट नहीं
उनके
घर में एंटीना डिश नहीं
उनके
पर्स में संतोषी सिक्के खनकते हैं
आँखों
पर चढ़ाये चश्मे
वे
सबसे बड़े हैं शत्रु अन्धता के
बहुत चुप से रहते हैं
जब देखो पढ़ते रहते हैं
छीन लो पुस्तकें उनसे!
धन्य हैं वे
जवाब देंहटाएंउन्हें पुस्तकें सौगात करो...
उन कामचोरों को काम पर लगाओ
जवाब देंहटाएंउनकी देह में पसीना उगाओ
मुश्किल काम है भाई ये तो।
कहो उनको पढ़ें पुस्तक,
जवाब देंहटाएंतभी पहुँचे लौट घर तक।
अक्सर आपकी कहानियाँ पढ़ती हूँ - कवितायेँ नहीं ।
जवाब देंहटाएंलेकिन आपकी यह कविता और इससे पहले वहां "कवितायें और कवि भी.." पर "स्त्री" वाली _विता बहुत अच्छी लगी ।
सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें यह गिफ्ट प्राप्त है इश्वर से - जो शांत हैं, जो पढ़ते हैं .....
उल्टी वाणी बोलिए मन चंगा-चंगा होय।
जवाब देंहटाएंऔरों को नंगा करे आपहूँ नंगा होय।।
ये पढ़ें वही जो और कोई न पढ़ पाए...
जवाब देंहटाएंपुस्तक को उनकी छिनना तो दूर कोई छेड़ भी न पाए ..