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मध्य पूर्व से जुड़ी एक बर्बर क्षयी प्रवृत्ति को स्थापित करने के लिये पूरे संसार में चल रहे राजनैतिक-मज़हबी आन्दोलन की व्यापकता को समझिये। आठवीं सदी में सिन्ध पर हुये आक्रमण के बाद से यह निरंतर जारी है। इसके नुमाइन्दे हर जगह हैं - गाँवों में, नगरों में, झुग्गियों में, सामाजिक अंतर्जाल स्थानों पर, ब्लॉग जगत आदि में सर्वत्र ये भेंड़िये स्थापित हैं। कुछ खुल कर सामने हैं तो कुछ बौद्धिकता और प्रगतिवाद का लबादा ओढ़े बकवास करने और अवैध धन का घी पीने में व्यस्त हैं!
खुलेआम गद्दारी की बातें करने वाले भी हैं तो प्रेम, शांति, सद्भाव, गंगा जमुनी तहजीब आदि की बातें कर मस्तिष्क प्रक्षालन करने वाले भी।
बर्बरता के जो पाठ सभ्यता बहुत पहले भूल चुकी है उसे आज भी रटते हुये फैलाने में वे लगे हैं। उन्हें पहचानिये। इस मानवविरोधी आन्दोलन के प्रचार तंत्र को असफल कीजिये।
दैनिक गुंडागर्दी का प्रतिरोध करें। व्रण नासूर होने से पहले ही ठीक हो, इसके लिये जागरूकता आवश्यक है। जहाँ भी यह आन्दोलन सफल हुआ वहाँ जीवन की गुणवत्ता गर्त में गयी। वहाँ स्त्रियों, बच्चों और निर्बलों पर हो रहे बर्बर अत्याचार आज भी जारी हैं।
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नोट: मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना और इसी प्रकार की अन्य खोखली बातों और टिप्पणियों के लिये अपना समय यहाँ व्यर्थ मत कीजिये।
मैं यहाँ मजहब नहीं, अरबी हीनता को स्थापित करने के उद्देश्य से जारी उस राजनैतिक-मजहबी आन्दोलन की बात कर रहा हूँ जिसने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, गुजरात से लेकर असम तक हमें घाव दिये हैं और दिये जा रहा है।
इस आन्दोलन ने कश्मीरियों को अपने देश में शरणार्थी बनने को बाध्य किया। इस आन्दोलन ने बंगलादेश और पाकिस्तान में अन्य मतावलम्बियों का समूल नाश करने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी, अब वे वहाँ लुप्तप्राय हैं। संसार में चल रहे हर बड़े संघर्ष में दूसरा पक्ष चाहे जो हो, एक पक्ष या तो यह बेहूदा आन्दोलन है या उससे बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है।
मैं यहाँ मजहब नहीं, अरबी हीनता को स्थापित करने के उद्देश्य से जारी उस राजनैतिक-मजहबी आन्दोलन की बात कर रहा हूँ जिसने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, गुजरात से लेकर असम तक हमें घाव दिये हैं और दिये जा रहा है।
इस आन्दोलन ने कश्मीरियों को अपने देश में शरणार्थी बनने को बाध्य किया। इस आन्दोलन ने बंगलादेश और पाकिस्तान में अन्य मतावलम्बियों का समूल नाश करने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी, अब वे वहाँ लुप्तप्राय हैं। संसार में चल रहे हर बड़े संघर्ष में दूसरा पक्ष चाहे जो हो, एक पक्ष या तो यह बेहूदा आन्दोलन है या उससे बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है।
हाँ अगर ऐसा होता कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना तो इनके मुल्कों में तो केवल यही लोग हैं, कोई दूसरा मजहब नहीं है, तो वहाँ शांति होती...
जवाब देंहटाएंऐसी कुंठित मजहबी राजनीति का जड़ से विनाश हो, यही हमारी कामना है ।
श्रद्धांजलि! तमसो मा ज्योतिर्गमय!
जवाब देंहटाएं"ऐसी कुंठित मजहबी राजनीति का जड़ से विनाश हो, यही हमारी कामना है ।"--यही मेरा भी स्वर।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि!
सेना के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी से बातचीत में उन्होंने बताया कि 26/11 के बाद आतंकवादी गतिविधियों में बहुत कमी आई है। धरपकड़ भी पहले की तुलना में तेज हो पाई है, क्योंकि आम लोग पहले से अधिक सतर्क हैं। इसका फायदा सुरक्षा एजेंसियों को होता है।
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राजनैतिक-मजहबी आक्रमण, जिस ने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, गुजरात से लेकर असम तक हमें घाव दिये हैं और दिये जा रहा है। इस अभियान ने कश्मीरियों को अपने देश में शरणार्थी बनने को बाध्य किया। इस आक्रमण ने बंगलादेश और पाकिस्तान में अन्य मतावलम्बियों का समूल नाश करने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी, अब वे वहाँ लुप्तप्राय हैं। संसार में चल रहे हर बड़े संघर्ष में दूसरा पक्ष चाहे जो हो, एक पक्ष या तो यह आक्रमण है या उससे बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है।
आप आन्दोलन कह रहे हैं, मुझे यह Raid (धावा) लगता है, यह सभ्यताओं व संस्कृतियों को लीलने के सपने पालता आक्रमण है... दुनिया कुछ भी कर ले... तेल से कमाई अगले तीस-पैंतीस साल से ज्यादा नहीं रहेगी... तब तक हो सकता है स्थितियाँ अपेक्षाकृत नियंत्रण में रहें... पर वह कमाई खत्म होते ही सभ्यताओं का टकराव अवश्यम्भावी है... और हमारे न चाहते हुऐ भी हमें यह लड़ाई लड़नी ही होगी...
इस आक्रमण से लड़ते हुए और इसके शिकार हर शहीद को श्रद्धाँजलि... मैंने तो बहुत से साथी खोये हैं...
...
इन हुतात्माओं को हार्दिक श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंइस बर्बर और क्षयी प्रवृत्ति ने जितना नुकसान किया सो किया, हमें कितना पीछे धकेल दिया है समय और प्रगति के पैमाने पर, अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.
प्रेम, शांति, सद्भाव, गंगा जमुनी तहजीब आदि की बातें कर मस्तिष्क प्रक्षालन करने वालों से हीं ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है. अब घातों को सह चुप बैठने की नही वरन एक हो प्रतिघात करने की ज़रूरत है.
सादर
ललित
यदि किसी को इनकी नीयत समझ न आती हो तो उसकी मूर्खता को पुरस्कार देना चाहिये।
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि..
जवाब देंहटाएंसोचने के लिए विवश करती है
आपकी शब्दांजलि..
shradhanjali.......
जवाब देंहटाएंpranam.
shraddhaanjali is hamle me gaye sabhi sajjanon ko
जवाब देंहटाएं(durjan hamlaavaaron ko koi anjali nahi)
aur bhi bahut kuchh kahnaa chaahti hoon - par kya hoga kah kar ? :( :(
विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंअस्तित्व रक्षा हेतु कदम उठाने ही हैं.कब तक भीरु बने रहेंगे?
रविन्द्रनाथ टैगोर जी की 'गोरा' में सनातम धर्म के लिए उन्होंने जो संभावना जताई है,धीरे-धीरे सत्य सिद्ध हो रही है.
सतर्कता आवश्यक है.
कहीं किसी अनुभवी व्यक्ति के मुंह से सुना है कि हम में संगठन की कमी है ...हम को संगठित करना मेढकों को तराजू में तोलने के समान है.
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धाँजलि।
जवाब देंहटाएंअगले कई 26 nov. को सुरक्षित करने के लिए इन शहीदों को नमन !
जवाब देंहटाएंकुछ बौद्धिकता और प्रगतिवाद का लबादा ओढ़े बकवास करने और अवैध धन का घी पीने में व्यस्त हैं!
जवाब देंहटाएंखुलेआम गद्दारी की बातें करने वाले भी हैं तो प्रेम, शांति, सद्भाव, गंगा जमुनी तहजीब आदि की बातें कर मस्तिष्क प्रक्षालन करने वाले भी।
इसी से सचेत रहेँ यह सार्थक श्रद्धाँजलि होगी.
शहीदों को हार्दिक श्रद्धांजलि।
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