... ध्वंस
के बाद मैंने प्रार्थनायें पढ़ीं।
धरती
उमगी, लोहा तेज सान हुआ, सीतायें खिंची,
सरकंडे उपजे, कलम बनी।
ध्वंस
रेणु, आँसू घोल सूखे भोजपत्रों पर मैने लोरियाँ लिखीं,
ठूँठों पर फुनगियाँ उगीं, फुदकियों ने उन्हें
स्वर दिया, मैं गहिमणी पुन: माता हुई।
मैंने
आँचल में किलकारियों को जतन से सहेजा कि कल को जब पुन: बादल गड़गड़ायेंगे,
तड़ित झंझा मचलेगी, परिवेश का पुरुष मर्यादा
भूल ध्वंस करेगा तो मैं प्रार्थनायें पढ़ने को बच सकूँ ...
मेरा
तो बस यही है, अपनी कहो मनु! तुम तो पुरुष हो। तुममें कहानियाँ
गढ़ने की अनंत क्षमता है।
... मैं सुन रही हूँ। सच में तुम्हें सुनना अच्छा लगता है। कुछ कहो न, इतने दिनों बाद तो मिले हो!
सुबह-सुबह गाना सुनना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंतुममें कहानियाँ गढ़ने की अनंत क्षमता है। :)
जय हो!
सर्वोत्तम!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar ...
जवाब देंहटाएंअहा, संगीत प्रभावित करता है।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है. इसे तो बस ग़ुलाम अली की ही आवाज़ में सुनने की आदत हो गई थी. दिलराज कौर की आवाज़ में भी क्या मिठास है वाह
जवाब देंहटाएं'तुममें कहानियाँ गढ़ने की अनंत क्षमता है।'
जवाब देंहटाएंउसका बोला हर झूठ भी प्यारा लगता है।यही प्रयाप्त है बताने को कि तुम्हें सुनना कितना अच्छा लगता है!