पहले भाग से आगे ...
“कैसे पति हो राम?”
मन्द स्मित राम के मन में मेघ घिर आये – आर्ये! बस यही प्रश्न बचा था। कैसे
पिता हो दशरथ? कैसी माँ हो सुमित्रा? कैसी पत्नी हो कैकेयी? कैसे भाई हो भरत? हर
प्रश्न रुधिर पिपासु नाराच की तरह राम को घायल करता रहा है। जैसे प्रश्न संबंधित
जनों के लिये न हो बस राम के लिये हों, सबका लक्ष्य एक – राम।
आज यह क्या पूछ लिया ऋषि? क्या
उत्तर है मेरे पास? वन वन भटकता सुरक्षा के लिये चिंतित राम उसे मातृत्त्व का सुख
तक न दे सका जिससे पशु तक वंचित नहीं। कन्द मूल फल संचयन की टोकरी में निषिद्ध
औषधियाँ! मौन से मौन संवादित – मेरे राम! अभी उपयुक्त समय नहीं है। अहेरियों का
आखेट करने में संतान बाधा होगी। सब जानते हुये भी सीता को नहीं रोक सका राम। सीते!
कितनी ऋतुयें व्यर्थ हुईं?
“कहाँ खो गये वत्स?” क्षितिज को निहारती सूखी आँखें लिये राम क्या उत्तर
दें? लक्ष्मण ने बचा लिया – भैया! पाद्य अर्घ्य की सामग्री प्रस्तुत है...
... शिलायें आराधक को आधार देती हैं, ऊँचाई देती हैं कि वह वह देख सके जो
और नहीं देख पा रहे। राम के सामने
चित्रावली चलने लगी!
गहन अमावस्या में सुदूर उत्तर में एक शिला पर बिठा कर कभी विश्वामित्र ने
दोनों भाइयों को वह दिखाया था जो तम से परे था।
आनुष्ठानिक अभिचार की वह शिला जिसकी साखी राजा जनक एक नागकन्या सीता को
अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के लिये विवश हुये, राम की प्रेमप्रतिज्ञा का आधार
बनी। सीता के लरजते नेत्र जैसे राम की आँखों की पुतलियाँ बन गये!
फिर तो दाशरथि राम भार्गव राम की उस परशु शिला को भी भेद गया जिसकी ओट जनक
ने वह शिवयंत्र सुरक्षित रखा था जिससे रावण का नाश हो सकता था। वीर्यशुल्का सीता
उस नरशार्दुल की संगिनी होने वाली थीं जो उस यंत्र का संधान कर सकता था। जाने
कितनी आशायें टूटी थीं उस दिन! नागों का प्रतिशोध भाव, जनक का प्रशांत निरपेक्ष
प्रतीक्षा भाव और भार्गव राम का गर्व भी कि दशानन वध होगा तो उसी यंत्र से और कोई
दूसरा युवा भार्गव सा शक्तिसम्पन्न हो ही नहीं सकता था जो सन्धान कर सके, दशानन
अमर है!; सब टूटे। मनुष्य द्वारा गढ़े व्यापार कभी कभी उस पर ही चढ़ बैठते हैं।
कालभंगुर शिवधनु और क्या था?
जनस्थान की वह सामरिक समर्थ शिला जिसकी आड़ ले राम ने एक पूरा रक्ष
स्कन्धावार ही नष्ट कर दिया, वह शिला भी जिसके पीछे छिप राम ने बाली का वध किया।
आततायियों का उन्मूलन उन्हीं की विधि, आर्यरीति का उल्लंघन कर राम ने युगांतर कलंक
माथे लिया।...
... भविष्य के लिये उदात्त यातना के तीन सागर दिनों को सुरक्षित कर देने वाली उस शिला पर आज ऋषि
दम्पति बैठे हैं जिस पर कभी राम के नेत्रों से झरते प्रकाश ने विजय मंत्र उद्घाटित
किये थे। थके पाँवों को राहत दे राम ने लोपामुद्रा की ओर देखा जैसे अनुमति माँग
रहे हों। वृद्धा ऋषि के समूचे अस्तित्त्व पर उल्लास उग आया – कैसे पति हो राम?
बुलाओ उसे, पुकारो राम, पुकारो! राम का रोम रोम नीरव पुकार कर उठा – सीते!
... सीता आयेंगी? पहले कौन राक्षस अपहृत स्त्री वापस आई? किस पिता, भाई,
पति, पुत्र ने उसका स्वागत किया? किस माँ ने उसके लिये आँचल पसारे? स्वागत की छोड़ो, उसे वापस लाने को किसने उद्योग
किया राम? क्यों नहीं किया राम?
तुम्हारा साहस उद्योग प्रणम्य है राम लेकिन भावी अग्निपरीक्षा का जो भय
वर्षों तक रक्ष अनाचार से पृथ्वी को मेदिनी बनते देखता रहा, वह क्या इतना आसान है?
महासंग्राम तो अब होना है राम!
प्रतिपक्ष में रक्ष नहीं, मानवसंस्कृति है आर्य! शस्त्रास्त्र प्रहार नहीं होने,
रुधिर नहीं बहना, इसीलिये हर व्यक्ति योद्धा है। मानव सब खोते रहे, जड़ता खोने से
रहे। जहाँ खोने के लिये कुछ और न हो वहाँ सब योद्धा हैं, कैसे निपटोगे राम? बूढ़े
ऋषिदम्पति के बल पर? ...
महर्षि के नेहसंबोधन से राम चेत गये – यह दक्षिणापथ का सागर तट है राम!
उत्तर के मानवों की नहीं; यहाँ वानर, ऋक्ष, किरात, नाग, कोल, भील, राक्षसादि की
सभा है। सीता आ रही है राम! भूमितनया नागकन्या सीता का स्वागत करो। कैसे
करोगे?
(जारी)
वे राम थे ...मर्यादा पुरुषोत्तम !इसलिए राक्षस अपहृत स्त्री को वापस लाने और स्वीकार करने का साहस कर सके!अन्यथा युग बदले, समय बदला मगर स्त्री के प्रति एक आम पुरुष की कुंठित सोच में अधिक परिवर्तन नहीं है.
जवाब देंहटाएं*जहाँ सभी योद्धा हैं वहाँ कैसे निपटेंगे राम!
अद्भुत लेखन जो अंतिम शब्द तक बाँधे रखता है.
कैसे निपटेंगे सियापति?
जवाब देंहटाएंआकर्षक...! भाषा की प्रवाहमयी सुमधुर कल-कल सुनते ही बन रहा है. ऐसी हिंदी भी आजकल दुर्लभ हो गयी है, जिसमें इतने तद्भव भी हों और इतना सहज प्रवाह भी हो....! ("कालभंगुर शिवधुन और क्या था?" संभवतः यहाँ शिवधनु होगा, टंकण की यह अशुद्धि ठीक कर लेवें...! )
जवाब देंहटाएंकर दिया। इन्नी बारीक पढ़ाई के लिये धन्यवाद।
हटाएंराम की भी परीक्षा थी वह, विरह तो दोनों के लिये पीड़ासित होता है।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिये शब्द नहीं हैं गिरिजेश जी।
जवाब देंहटाएंजब राम और उनके कृत्यों की आलोचना एक फ़ैशन बन गई हो, ऐसे में ऐसा लेखन धन्य है। किसी उपयुक्त कड़ी में अपनी आवाज में ’राम की शक्ति पूजा’ वाला ऑडियो क्लिप भी डालिये। अपने मोबाईल में ट्रांसफ़र करके मैंने तो दीवानों की तरह लगभग रोज सुना है वो, और भी सुनें और जानें सच्चाई का यह पहलू।
ओह्ह!कैसे छूटा जा रहा था यह!
जवाब देंहटाएंराम निपट लेवेंगे।
ऐसा कौन सा संग्राम है, कौन सा निकष जहाँ नहीं चमकेंगे राम!
गदगद हुआ आर्य!
वाह, लव यू।
हटाएंराम के चरित्र को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना अद्भुत। अनिर्वचनीय।
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