बचपन से ही मुझे मफलर बाँधना नहीं आता। स्टाइलिश कूल हॉट देसी बिलायती आदि विधियों वाले मफलर बन्धुओं को देख देख जलन होती रहती है। अब तो मफलर प्रगतिशीलता और क्रांति का प्रतीक भी बन गया है।
वसंत आगमन निकट है लेकिन कोहरा और ठंड दोनों जाने का नाम नहीं ले रहे। चूँकि मफलर बाँधे बिना प्रगतिफीलता का भाव नहीं आता और बिना मफलर अराजक क्रांति हो नहीं सकती और चूँकि मैं यह सब चाहता हूँ इसलिये हर पल मफलर बाँधे रहना चाहता हूँ और इसीलिये मेरी माँग है कि हर मौसम सदाबहार मफलर बनाया जाना चाहिये। मफलर बाँधने की विधि सबको आनी चाहिये। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे सम्मिलित किया जाना चाहिये। साथ ही फैब्रिक भी ऋतु के अनुकूल होना चाहिये। लेकिन समस्या यह है कि जैसे ही इस क्रांतिकारी सुझाव को किसी को सुनाता हूँ, वह विचार करने के बजाय मुझ पर ही हँसने लगता है जैसे कह रहा हो कि तेरा भेजा खिसकेला है! इसके लिये आर टी भाई से सम्पर्क करना पड़ेगा। सुना है कि धरना, प्रदर्शन और नौटंकी की कला में वे इतने पारंगत हैं कि आर टी के आगे आई लगा कर इंडियन स्टेट की ऐसी तैसी कर देते हैं।
इंटरनेट पर ढूँढ़ा तो बता चला कि यह आम के बजाय अमरूद आदमी के लिये बनी एलीट टाइप की चीज है और इसे बाँधने की तमाम आसुरी और पश्चिमी विधियाँ हैं। अमेरिकन लिखना चाह रहा था लेकिन आसुरी शब्द कूल और एंटीक लगा सो लिख दिया। विश्वास है कि इससे मेरी प्रगतिफीलता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
आर टी भाई ने मफलर बाँधने की एक देसी तकनीक का आविष्कार किया है। यूँ तो यह विधि बैगन देहात में बहुत पहले से ग़रीब गुरबा अमीर उमराँ द्वारा प्रयुक्त होती रही है लेकिन जब तक आर टी भाई ने इसे नहीं नकलियाया था तब तक यह बहुत ही उपेक्षित टाइप थी जिससे चेहरे की बैकवर्डनेस झाँई की तरह झाँकती थी। उनके नकलियाते ही इसमें कूलनेस तो आई ही, इस भयानक सर्दी में यह हॉट आइटम हो गयी। जिसे देखो वही इसे बाँधे जब चाहे तब रात बिरात सड़क मुहल्ला गली राजपथ आइटम सांग करता नज़र आने लगा। सही पूछिये तो आर टी भाई इस मामले में युग पुरुष निकले!
इस विधि में कान को कस कर बाँधते हुये गले में लपेट लिया जाता है। चूँकि एक ही हॉट स्थान पर दो भयानक कूलें एक साथ एक ही समय नहीं विराज सकतीं इसलिये टोपी को किनारे रख दिया जाता है। इस विधि में सहूलियत यह रहती है कि आप को दूसरों की बातों पर कान नहीं देना होता और अपने गले की खाँसी भी कंट्रोल में रहती है। उस समय आप अक बक कुछ भी कह दें कैसी भी हरकत कर दें, उसमें क्रांति ही क्रांति पाई जाती है।
मैं आर टी भाई से सीखने जा रहा हूँ लेकिन मुझे बगल के भीखन काका का एक प्रश्न परेशाँ किये हुये है - कान बन्द कर और गला बाँध कर नौटंकी हो रही है बेटा! नौटंकी देखते देखते मरण सेज पर आ गये हम लेकिन नौटंकी की काट ऐसी नौटंकी होगी, सोच नहीं पाये थे। अपने आर टी भाई से पूछना दूसरों को मूर्ख बनाने और समझने की तकनीक का इतना ह्रास कब कैसे क्यों कर हुआ?
आप को इसका उत्तर पता हो तो बताइयेगा। साथ ही वसंत में मफलर कैसा हो, इसकी जुगत भी सोचियेगा। राम राम!
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चित्राभार: hindustantimeṣ.com, bbc.co.uk
atha shri muffler katha ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया :)
जवाब देंहटाएंआपने लिखा है - अपने आर टी भाई से पूछना दूसरों को मूर्ख बनाने और समझने की तकनीक का इतना ह्रास कब कैसे क्यों कर हुआ?
तो मेरे विचार में दरअसल सवाल मासूमियत का है - मासूम (मूर्ख नहीं,) लोग, लोगों की बातों में जरा जल्दी आ जाते हैं, और उतनी ही देरी से निकलते हैं :(
हम विद्यालयीन जमाने में मफ़लर बाँधना पसंद करते थे, शायद तब ईमानदार थे..
जवाब देंहटाएंइन दिनों मैं रेगुलर मफलर बाँध रहा हूँ -फेसबुक पर भी फ़ोटो चेपता हूँ!
जवाब देंहटाएंमफलर बोले तो अरविन्द मफलर
मैं तो सोच रहा था कि सीएम भैया गर्मी में सफ़ेद साफ़ा बाँधेंगे, आम आदमी की तरह।
जवाब देंहटाएंब्रांडेड कंपनियों के मफ़लर हजार रूपये से ज्यादा के आने लगे हैं। हमने बचपन में जो बाँधा वह २०-२५ का हुआ करता था। मार्केट पर भारी है यह नया ट्रेंड।
जवाब देंहटाएं:)
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