बनारस में साजन सिनेमा चौराहे पर नवनिर्मित फव्वारे से थोड़ा आगे सिगरा
तरकारी मंडी की ओर बढ़ने पर बायीं ओर तमाम पणियों, गाली गलौज करते चिल्लाते दलालों,
लोगों, पशुओं और गन्दगी की भीड़ के बीच भूमि पर छोटी सी टोकरी में तरकारी रख कर
बेचता यह व्यक्ति मुझे जँचता है।
साधारण वस्त्र, सँवारे केश और हल्की बढ़ी दाढ़ी लिये इस मानुष का उत्साह नख
नख से फूटता है। करीने से सजी सब्जियों में कोई असुन्दर नहीं होतीं और उनकी सजावट में
एक ज्यामितीय प्रारूप दिखता है।
इनकी तरकारियों के भाव में सामने वाले को देख कर उतार चढ़ाव होता रहता है। ग्राहकों
की कमाल की परख है इन्हें और उन पर पकड़ भी। किस को क्या दिखाना है, कैसे घेरना है
और कैसे भाग कर माँग पूरी करनी है, सब का कौशल इनमें है। निराशा का प्रदर्शन करते
हुये कभी कभी मैंने असम्भव माँगें भी की
हैं। उस समय फुर्ती के साथ कहीं और से ले आकर भी इस व्यक्ति ने पूरी की है।
इनके स्वभाव में एक खास तरह का आक्रामक माधुर्य है जिसके कारण कोई भी ग्राहक आ जाने पर खाली हाथ नहीं जाता। इनके यहाँ रुकने वाले भी खास ही होते हैं जिन्हें मैं मन ही मन ‘गुण ग्राहक’ कहता हूँ। गुण ग्राहक वह होता है जो भाव ताव में उन्नीस बीस की परवाह न करते हुये ‘सम्पूर्ण क्रय अनुभव’ पर केन्द्रित रहता हो। उसके लिये पण से ले कर थाली तक तरकारी के आने की पूरी प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है ताकि स्वाद का सम्पूर्ण परिपाक हो। गुण ग्राहक रुपये व्यय कर आनन्द का अनुभव करता है और इस हेतु वह आनन्ददायी विक्रेता पा ही लेता है। आप के आसपास भी ऐसे आनन्ददायी विक्रेता हों तो अवश्य बताइये!
इनके स्वभाव में एक खास तरह का आक्रामक माधुर्य है जिसके कारण कोई भी ग्राहक आ जाने पर खाली हाथ नहीं जाता। इनके यहाँ रुकने वाले भी खास ही होते हैं जिन्हें मैं मन ही मन ‘गुण ग्राहक’ कहता हूँ। गुण ग्राहक वह होता है जो भाव ताव में उन्नीस बीस की परवाह न करते हुये ‘सम्पूर्ण क्रय अनुभव’ पर केन्द्रित रहता हो। उसके लिये पण से ले कर थाली तक तरकारी के आने की पूरी प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है ताकि स्वाद का सम्पूर्ण परिपाक हो। गुण ग्राहक रुपये व्यय कर आनन्द का अनुभव करता है और इस हेतु वह आनन्ददायी विक्रेता पा ही लेता है। आप के आसपास भी ऐसे आनन्ददायी विक्रेता हों तो अवश्य बताइये!
अतीत में तो हम खुद ही ऐसे विक्रेता(सेवा प्रदाता) रहे हैं :) आत्मश्लाघा मत समझियेगा, कई ’गुणग्राहक’ हमारे अवकाश पर होने की स्थिति में खुद ही बैरंग लौट जाते थे।
जवाब देंहटाएंआप तो अब भी वैसे ही होंगे!
हटाएंवो दिन अब न रहे :)
हटाएंहम तो जो भी
जवाब देंहटाएंबेचना चाहें
उसका प्रोडक्शन
ही बंद हो जायेगा
जब माल दुकान
पर ही सड़ जायेगा
तो कम्पनी वाला
पागल जो क्या है
जो दुबारा बनायेगा :D
यहाँ हर जगह मॉल से ही सब्जियां लेनी होती हैं और शोपिंग मॉल में ऐसे विक्रेता नहीं मिलते ..ऐसी सुविधाओं से हम वंचित हैं .
जवाब देंहटाएंजिनसे रोज़ाना का वास्ता हो जाता है वे मिलनसार तो हो ही जाते हैं मूल्य भी वाजिव रहता है
जवाब देंहटाएंग्राहक को समझने के लिये तो प्रबन्धन विद्यालयों में शाखायें खुली हैं।
जवाब देंहटाएंभीड़-भाड़ भरी सड़क पर अपनी रोजी की जद्दोजहद करते ये साधारण से दिखने वाले लोग अपने भीतर कुछ असाधारण भी समेटे होते हैं। ब्लॉग लिखने के शुरुआती दिनों में मैंने भी एक ठेले वाले पर निगाह टिकाई थी।
जवाब देंहटाएंhttp://www.satyarthmitra.com/2008/04/blog-post.html
वाकई असली ग्राहक को समझना (जो कोई आसान बात नहीं है) कोई इन्हीं से सीखे।
जवाब देंहटाएंबढ़िया और सही आंकलन,,, सादर धन्यवाद।।
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : समीक्षा - यूसी ब्राउज़र 9.5 ( Review - UC Browser 9.5 )
कवि प्रदीप - जिनके गीतों ने राष्ट्र को जगाया
हैं कुछ, लेकिन उनकी तस्वीर ले पाना टेढ़ी खीर है।
जवाब देंहटाएंएक तो फल वाला ही है मूळिया...
एक हींग वाला था अफगानी,
एक छत्ते वाले (बर्फ का गोला) वाले हरिरामजी,
एक दूध मलाई वाले भईय्यन,
एक....
बहुत लंबी लिस्ट है... :)
बनारस कि बात ही निराली है खाश तौर से सिगरा की..
जवाब देंहटाएंसिगरा पर लिखी मेरी पोस्ट -
http://pravingullak.blogspot.in/2013/04/blog-post.html