शुक्रवार, 21 मार्च 2014

वसंत महाविषुव

साभार: Tau'olunga
चित्र: ब्याम शॉ - वसंत जागरण  
आज 21 मार्च को महाविषुव है। दिन और रात की अवधि में केवल 42 सेकेंड का अंतर जो वर्ष का न्यूनतम होगा। सूर्योदय ठीक प्राची दिशा में। सूर्यगति पद्धति से यह नववर्ष का पहला दिन है। चन्द्रगति से तालमेल बैठाने के कारण हिन्दू नववर्ष का पहला दिन 10 दिन बाद होगा।

पलाश पुष्प 
वसंत अपने पूर्ण यौवन में। सम तापमान - न अधिक जाड़ न अधिक गर्मी, सुहानी ऋतु। पुष्पों की बहार है और नवसृजन को प्रकृति पर कामज्वर का खुमार है। इसे आप कैसे मनायेंगे? प्रियतम के साथ सुहानी रात में? अच्छा हो कि इस रात कुछ तारों और नक्षत्रों से भी मित्रता कर ली जाय! 

अप्रैल, मई और जून के महीने (चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ) तारों को निहारने के लिये सर्वोत्तम महीने हैं - साफ आकाश और ठंड ग़ायब!


पंजाबियों! बैसाखी कब है?
आभार: सुप्रीति चौहान

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सूर्य उत्तर भाद्रपद नक्षत्र पर
चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र पर 

शनिवार, 8 मार्च 2014

स्त्री!

स्त्री! 
गुफाओं से निकल 
आखेट को तज 
उस दिन जब पहली बार 
लाठी को हल बना मैने जमीन जोती थी 
और तुमने अपने रोमिल आँचल में सहेजे बीज 
बिछाये थे गिन गिन सीताओं में 
प्रकृति का उलट पाठ था वह
उस दिन तुम्हारी आँखों में विद्रोह पढ़ा था मैंने 
आज भी सहम सहम जाता हूँ। 

थी चाँदनी उस रात 
थके थे हम दोनों खुले नभ की छाँव 
भुनते अन्नकन्दमूल, गन्ध बीच 
तुमने यूँ ही रखा प्रणय प्रस्ताव
और 
मैं डरा पहली बार।  
अचरज नहीं कि पहला छ्न्द गढ़ा 
भोली चाहतों को वर्जनाओं में मढ़ा 
की मर्यादा और सम्बन्धों की बातें पहली बार 
और पहली बार खिलखिलाहट सुनी
मानुषी खिल खिल
तारे छिपे और गहरे 
आग बुझी अचानक।
असमंजस में मैं 
देवताओं को तोड़ लाया नभ से भूमि पर 
दिव्य बातें - ऋत कीसच की
और तुम बस खिलखिलाती रही
कहा देवों ने - माँ को नमन करो! 
तुमने देखा सतिरस्कार 
बन्द यह वमन करो 
सृजन करो! 

स्त्री! 
मैंने तुम्हारी बात मानी 
सृजन के नियम बनाये 
(पहले होता ही न था जैसे!) 
संहितायें गढ़ीं 
चन्द्रकलाओं में नियम ढूँढ़े 
गर्भ को पवित्र और अपवित्र दो प्रकार दिये
और सबसे बाद प्रकट हुआ विराट ईश्वर परुष
प्रकृति की छाती पर सवार 
दार्शनिक उत्तेजना में
और
तुम्हारी आँखों में दिखी सहम पहली बार।

ज्यों माँ की बात न मान बच्चे ने 
उजाड़ दिया हो किसी चिड़िया का घोसला 
फोड़ दिया हो अंडा पहली बार - 
तुमने आह भरी 
मैं शापित हुआ पहली बार 
प्रलय तक स्वयं को छलने के लिये। 

शब्द छल 
वाक्य छल 
व्याकरण छल... 
मैं गढ़ता गया छल छल छल 
तुम रोती गयी छल छल छल 
आज भी नहीं भूला हूँ मैं अपना 
पहला अट्टहास - बल बल बल 
देहि मे बलं माता! 

आज भी मैं पढ़ने के प्रयास में हूँ 
तुम्हारी आँखों की वह ऋचा
उतरी थी जो बल की माँग पर
मेरी दृष्टि टँगी है तीसरी आँख पर।

दो सीधी सादी आँखों की बातों को 
मैं आज भी नहीं बाँच पाता हूँ।
आश्चर्य नहीं कि हर दोष का बीज
तुममें ही पाता हूँ।
 स्त्री!
मैं पुरुष, इस विश्व का विधाता हूँ।
- गिरिजेश राव