कृपया इस आलेख को पढ़ने के पहले ये तींन भाग अवश्य पढ़ें: भाग -1, भाग -2 , भाग-3
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मोज़ार्ट की अपनी प्रिय सिम्फनी जुपिटर को सुनते हुये प्रथम सर्वप्रिय ब्लॉग के बारे में लिखना एक ‘रिच एक्सपीरियेंस’ है, यह ब्लॉग सम्भवत: ‘समृद्ध अनुभव’ नहीं लिखता
अविनाश चन्द्र जी ने ब्लॉग और ब्लॉगर के भेद के समाप्त होने की जिस बात की ओर संकेत किया है, वह यहाँ दिखती है।... ‘सुमेरु’! उफ्फ!!... साहित्त सा लगता है।
पश्चिमी संगीत की इस सिम्फनी को आप सुनेंगे तो पायेंगे कि इसके सुर अनेक स्थानों से ले कर भारतीय फिल्मी संगीत में सम्मिलित कर लिये गये हैं लिहाजा आम जन की रुचि का हिस्सा बन गये हैं, इन सुरों में सॉफिस्टिकेटेड शास्त्रीयता तो है ही। यह ब्लॉग भी ऐसे ही सबको अपने से जोड़ता है। विशिष्ट इस मामले में कि कहीं बनावट नहीं, दिल से आती लिखाई; बीच बीच में अंतर्दृष्टि की झलकियाँ जो सहज ही आ जाती हैं और पाठक को बाँध सी लेती हैं।
शायद यही कारण है कि इसकी पराश बहुत अधिक है और लोकप्रियता भी – इतनी कि प्लेटफॉर्म बदलने पर भी प्रभाव यथावत ही रहा। जी हाँ, मैं ‘गंगा किनारे वाले’ छोरे के ब्लॉग की बात कर रहा हूँ, जिसकी मानसिक हलचल सबको भाती है। फिर वही ...ब्लॉग और ब्लॉगर का विभेद ‘थिन’ सा लगने लगा। छोरा कहते अजीब भी लग रहा है और नहीं भी।
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यह ब्लॉग बहुत प्रयोगी भी है। टिप्पणियों को ले कर, स्लाइड शो को लेकर, नेट पर अन्य साधनों के प्रयोग द्वारा पराश बढ़ाने को लेकर और निज अध्ययन को प्रस्तुत करने को लेकर ... हर पहलू में सफल प्रयोगात्मकता झलकती है - निरंतर जीवंतता...
...निरंतर साधनाशील एक चीनी चित्रकार था। एक दिन उसने ऐसा जीवंत चित्र बनाया कि उसमें समा गया... वैसे ही यह ब्लॉग पढ़ाता नहीं, आप को परिदृश्य में समोता चलता है। नदी नारे, सड़क किनारे, कछार कचनार छुक छुक रेल...खेल रहा है एक छोरा गंगा किनारे!
एक अंश देखिये:
मेरी अम्मा ने बताया कि लोग मानते हैं कि आज से गंगाजी में पानी बढ़ना प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन से पहले, गंगापार जाने वाली बारात अगर हाथी के साथ हुआ करती थी, तो हाथी पानी में हिल कर गंगापार कर लिया करता था। पर गंगादशहरा के बाद यह नियमबद्ध हो गया था कि हाथी गंगा पार नहीं करेगा। बारात नाव में बैठ पार जाती थी पर हाथी नहीं जाता था।
- गंगा-तट की ऐसी निजी पत्रकारिता/उपस्थिति अन्यत्र कहा!
- कछार से लेकर कोयल तक के सूक्ष्म अवलोकन जैसी जीवंत ब्लॉगिंग मिलती है
- ...क्यों नहीं पढ़ता , यह जानने के लिये कि उपादान (मैटर) रचना की आत्मा नहीं हो सकता। ...यह मैटर तो ’मूल्य’ धारण ही करता है तब, जब रचनाकार की आत्मशक्ति उसमें संयुक्त होती है।
- बहुत लंबे अरसे से बेहद सरल-सहज भाषा में नानाविध विषयों पर औब्ज़र्वेशन पढ़ना मैं कभी नहीं चूकता
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(थक गया हूँ। अन्य बातें, सीमायें और पुरस्कार कल)
गिरिजेश जी !!! बहुत सुंदर,आपने जितनी मेहनत से और निष्पक्षता के साथ ब्लॉग्स को चुना है वह बेजोड़ है। आपके चयन की प्रक्रिया,पद्धति सबकुछ निष्पक्ष लगता है। आपने ब्लॉग की विषयवस्तु के साथ जो निर्णय प्रस्तुत किया है वह स्वत: आपके परिश्रम को दर्शाता है। आपने ब्लॉग जगत की कई मिथक धारणाओं को ध्वस्त किया है; जो निश्चय ही सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमेरे मन की बात कह दी आपने.
हटाएंमैं ब्लौगिंग में चार साल पहले आया. उन दिनों और उसके बाद भी यदि कोई मुझसे कोई सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लौग के बारे में पूछता तो मेरा उत्तर यही होता "मानसिक हलचल".
निशांत भाई, हाथ से हाथ मिला है आपसे! मानसिक हलचल--जहाँ होना चाहिए, वहीं हैं। यहाँ आकर लगता है अब कोई कसर नहीं!
हटाएंबहुत अच्छा लगा कि लोगों ने ज्ञानजी के ब्लॉग को सबसे अच्छा ब्लॉग चुना। उनकी पोस्टें मैं शुरुआती दिनों से पढ़ता रहा हूं। लगभग सभी पोस्टें बांची हैं। अंग्रेजी वाली हिंदी से शुरु होकर कठिन लम्बे वाक्यों वाली हिन्दी के बीच से टहलते हुये अब वे ललित हिंदी टाइप भाषा के मोहल्ले में आ गये हैं। प्रयोग और तमाम लटके-झटकों के साथ नियमितता ज्ञानजी के ब्लॉग का मूल तत्व है। उनको बधाई। सबको बधाई! :) आपकी मेहनत को सलाम!
जवाब देंहटाएंवाह वाह...!!
जवाब देंहटाएंआपने सच में कमाल कर दिया ..दिल बाग़-बाग़ हो गया...
सारे के सारे ब्लोग्स एकदम उम्दा...
सबको ह्रदय से बधाई..
मगन हूँ अपने द्वारा चुने गये तीन ब्लॉगों में से दो को यहां देखकर। अंदेशा था कि ज्ञान जी ही नंबर वन होंगे और वही हुआ ........
जवाब देंहटाएंज्ञान जी, जिनके ऑब्जर्वेशन में एक किस्म की दार्शनिकता झलकती है.....एक एहसास होता है कि चीजें इस नजरीये से भी देखी जा सकती हैं :)
मुझे याद है जब उन्होंने जवाहिरलाल का बाटलीकरण किया था, उसका विश्वास जीतकर उसका हालचाल पूछा और देखते ही देखते जवाहिर खुल गया.....उसने बताया कि कल पैर में टूटी कांच की बोतल घुस गई थी....दारू गिराते ही घाव ठीक हो जायेगा। वैसे भी जहां तक मैं समझता हूँ, जवाहिर जैसे दारूबाज हर किसी से इस किस्म की बातें शेयर नहीं कर सकते, लेकिन उसने ज्ञान जी से यह बात शेयर की......क्योंकि उसका बाटलीकरण हो चुका था......ज्ञान जी ने उसे अपनी बाटली में उतार लिया था और उसी सहजता से ब्लॉग पर आगे अभिव्यक्त भी किया था। कुछ कुछ प्रछन्न दार्शनिकता वाले अंदाज में :)
बहुत अद्भुत विश्लेषण.. और श्रम साध्य कार्य ...आभार ...
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी सर्वप्रथम आपकी मेहनत को सलाम. एक बात जानना चाहता हूँ की पहले व दुसरे स्थान के मतों में कितना अंतर है. अगर ये अंतर एक- आद मत का हुआ तो मुझे बड़ा बुरा लगेगा की मेरे जैसे पप्पू ने वोट नहीं किया और दो नम्बरी दो नम्बरी ही रह गया. पर अब पछताए क्या होत ......"मो सम कौन" मेरे हिसाब से पहले स्थान पर होना चाहिए था क्योंकि वो अपने देश वाला है. वैसे ये अपने पराये का भेद मिटा दूँ तो आपकी लिस्ट में पुरस्कृत सभी ब्लॉग मुझे पसंद हैं. इस निष्पक्ष चयन के लिए एक बार फिर से आपको सलाम ठोकता हूँ....
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंमेरा आधार ब्लॉग..
जवाब देंहटाएंमेरा ईष्ट-’द बेस्ट’ ब्लॉग!
हटाएंबल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएं☺☺☺
कोई विरला ही होगा जो इस ब्लॉग से होकर गंगा किनारे न जाता हो. सच कहूँ तो मुझे अब गंगा अपनी-अपनी सी लगने लगी है बस इसी कारण कि मैं भी औरों की ही तरह हर रोज उधर की सैर करता पाता हूं अपने आप को.
पता नहीं कितने लोगों में माद्दा होगा जो हर रोज़ एक ही दृश्यपटल पर एक नई इठलाती पोस्ट लिख पाएं...
सभी सातों ब्लॉग मेरे भी प्रिय ब्लॉग हैं दूसरे भी कई ब्लॉग हैं जिन्हें मैं भी निरंतर पढ़ता हूँ ☺
@ पता नहीं कितने लोगों में माद्दा होगा जो हर रोज़ एक ही दृश्यपटल पर एक नई इठलाती पोस्ट लिख पाएं...
हटाएंवही बात मैं भी कहना चाहता हूं....और यह भी सच है कि जो लोग मानसिक हलचल पढ़ते हैं उन्हें गंगा के किनारे का वह इलाका अपना सा लगने लगा होगा।
वाकई चन्द्रहार का सुमेरू|
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी को बधाई, सबको बधाई और आपकी मेहनत को सलाम|
'मानसिक हलचल' को बधाईयाँ। पाठकों की सही मानसिक हलचल है, सर्वाधिक प्रिय के लिए!!
जवाब देंहटाएंहम तो पहले ही पेपर आउट किए बैठे हैं.
जवाब देंहटाएंयह खोज का विषय हो सकता है कि पिछले पाँच (या अधिक?) सालों से मानसिक हलचल एक अग्रणी ब्लॉग क्यों बना हुआ है । हमारे लिये तो यह सात समन्दर पार रहते हुए भी गंगातीर भ्रमण और सीधी सरल हिंदी में गहरी बात कह देने का साधन बना हुआ हुआ है। ज्ञानदत्त पांडेय जी जैसे सुलझे हुए लोगों के विचार पढना सदा एक अच्छा अनुभव रहा है।
जवाब देंहटाएंगिरिजेश को इस "सबसे प्रिय ब्लॉग पुरस्कार" के लिये अभार! पाण्डेय जी को बधाई!
ये निर्विवाद बढ़िया है।
जवाब देंहटाएंमुझे जो सर्वप्रिय 'अन्य' ब्लॉग हैं। उनको मिले निगेटिव अंक और कारण देखने हैं :) गज़ब उत्सुकता है।
नहीं जी, आप की यह इच्छा पूरी नहीं कर सकते। बहुत ही गोपन मामला है। हम तो स्वयं भूलने वाले हैं।
हटाएंबहुत संजीदगी से सोच रहे हैं कि पूर्णाहुति में यज्ञानि पर अंतिम अभिचार कर दें -
इति स्वाहा, तर्प्यामि,
मार्ज्यामि मार्ज्यामि।
सर्वेऽपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद्दुखभाग्भवेत्।
ॐ शांति: शांति: शान्ति:।
क्या कोई तरीका नहीं? ;)
हटाएंमज़ाक से इतर - अच्छा है यह भूलना :)
खुद के लिए तसल्ली है कि उत्कृष्ट ब्लॉग में से चुने गये अधिकांश ब्लॉग मेरे पसंदीदा हैं. हालाँकि इनके अतिरिक्त कुछ और ब्लॉग भी मुझे बहुत प्रिय हैं ! ब्लॉगिंग में महिला पुरुष को अलग नजर से देखने के पक्ष में नहीं होने पर भी इस सूची में एक भी महिला ब्लॉगर को नहीं देख बहुत निराशा हुई . शायद इसका कारण महिला ब्लॉग पाठक की कमी हो . चुने हुए ब्लॉग्स की संख्या दस तक होने पर शायद कुछ सम्भावना बनती !
जवाब देंहटाएंआप सहित सभी ब्लॉगर्स को बहुत बधाई और शुभकामनायें !
यह आयोजन ब्लॉग के लिये था, ब्लॉगर के लिये नहीं :)
हटाएंस्त्री लिखित ब्लॉग की बात करें तो घुघूतीबासूती का नाम आया था लेकिन प्रथम सात स्थानों में नहीं आ सका।
...अपनी और सीमाओं की बात पूर्णाहुति आलेख में करूँगा, वहाँ बहुत कुछ स्पष्ट हो सकेगा।
:(
हटाएंसीमा, सीमा सीमा, सहने की भी है कोई सीमा ... घुघूति जी भले ही यहाँ पहले सात में स्थान न पा सकी हों, उनका ब्लॉग मेरे सर्वप्रिय ब्लॉग्स में से है और वाणी जी का भी नियमित पाठक हूँ। तीन नाम देने की अपनी सीमायें हैं, विशेषकर मेरे जैसे पाठक जो 25-30 ब्लॉग्स के नियमित पाठक और मुरीद हों और "आलसी चिट्ठे" का नाम न दे सकने की मजबूरी भी हो। कमोबेश यही सीमायें अन्य लोगों की भी रही होंगी।
पाण्डेय जी सहित सभी ब्लॉगर्स को एक बार फिर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
असल में एक "मतदाता द्विविधा विजय" सम्मान बनता था।
हटाएंजब मैं मत डालने बैठा तो मैंने भी १२ नाम जोड़े थे, ५ बार की काट छाँट के बाद भी वो १० से कम न हुए। ये तब है जब गिरिजेश जी के दोनों चिट्ठे नहीं चुनने थे और मैं वैसे भी बहुत कम जगह आता जाता हूँ।
Tie भी मान्य नहीं था, ३ का अर्थ केवल तीन। अपनी-अपनी सीमाओं और अपने-अपने मानकों पर सबने तीन कसे हैं, पर जो निकला है - निर्विवाद सराहनीय है।
इतने सारे क्रमशः और जारी (कोणार्क, गुम्मी इत्यादि) के बाद भी ढेर सारा धन्यवाद आचार्य! :)
अच्छा चुनना कठिन कार्य है। सबसे अच्छे का चुनाव तो और भी कठिन। आप ने यह कर दिखाया। इस सार्थक श्रम को कोटि-कोटि नमन करता हूँ। अच्छे को सम्मान मिला। अच्छों की पहचान हुई।
जवाब देंहटाएंअच्छा! सबसे पहले तो ईमानदार स्वीकारोक्ति - मैं कभी सुमेरु पर नहीं चढ़ा, अअअ मेरा मतलब, कभी 'मानसिक हलचल' को नहीं पढ़ा। पर फिर मैंने देखा तो कोहिनूर भी नहीं है - कौन सा उसकी कीमत कम हुई जाती है। :)
जवाब देंहटाएंआपका आभार गिरिजेश जी जो आपने इस सुन्दर ब्लॉग से परिचित करवाया (बस देख के लौटा हूँ), यत्न करूँगा ताका-झाँका करूँ।
ज्ञानदत्त जी को ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएँ!
अविनाश जी आपने बिलकुल मेरे मन की बात कह दे - थैंक्स | सभी प्रिय ब्लोगों के ज्ञानी लेखकों को बधाईयाँ | :)
हटाएंवाणी जी के कहे में मेरी भी बात शामिल है, मुझे भी दुःख हुआ कि इस लिस्ट में एक भी ब्लॉग ऐसा नहीं जो किसी महिला का हो | किन्तु यह भी सच है की मेरे मत वाले तीनों ही ब्लॉग यहाँ हैं - और जिन्हें चौथा मत देना था किन्तु तीन ही दे सकती थी - वह भी यहाँ है | ( अर्थात मेरी अपनी पसंद के अनुसार तो गुणवत्ता के आधार पर यह सही नतीजे आये हैं | और गुणवत्ता ही आधार हो तो बेहतर होता है, जेंडर नहीं )|
dadda ko is-se kamtar dekhna balak ko gawara nahi......
जवाब देंहटाएंaacharya ashish denve "jab tak blog sansar rahe ye sab mere sakahar rahen"
pranam.
सुमेरू ब्लॉग को हमारी भी बधाई!
जवाब देंहटाएंजी डी का ब्लॉग :
जवाब देंहटाएंहाँ सुलझी हुई बातें, सीधे सपाट - किसी भी विषय पर.
सही कहा आपने सुमेरू ब्लॉग,
बधाई जी डी. ओर आपके प्रयासों को भी नमन .