महाभारत शांतिपर्व
Mahabharat Shanti Parv
युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो गया। श्रीकृष्ण ने वह रात अर्जुन के महल में व्यतीत की। प्रात:काल युधिष्ठिर मिलने गये तो उन्हें ध्यान में निश्चल दृढ़निश्चय पाया - काठ एवं शिला की भाँति:
स्थाणुकुड्यशिलाभूतो निरीहश्चासि माधव
9मानो निर्वात में कोई दीपशिखा हो!
यथा दीपो निवातस्थो निरिङ्गो ज्वलतेऽच्युत
तथासि भगवन्देव निश्चलो दृढनिश्चयः
स्थाणुकुड्यशिलाभूतो निरीहश्चासि माधव
9मानो निर्वात में कोई दीपशिखा हो!
यथा दीपो निवातस्थो निरिङ्गो ज्वलतेऽच्युत
तथासि भगवन्देव निश्चलो दृढनिश्चयः
पूछने पर भगवान ने उत्तर दिया कि शर शय्या पर इस समय भीष्म मेरा ध्यान कर रहे हैं, अत: मेरा मन उनमें लगा हुआ है:
शरतल्पगतो भीष्मः शाम्यन्निव हुताशनः
मां ध्याति पुरुषव्याघ्रस्ततो मे तद्गतं मनः
वे मेरी शरण में हैं अत: मेरा मन उनमें है। वे गङ्गा पुत्र वसिष्ठ ऋषि के शिष्य हैं - वसिष्ठशिष्यं तं। वे समस्त अङ्गों सहित चारो वेदों को धारण करते हैं - साङ्गांश्च चतुरो वेदांस्तमस्मि मनसा गतः।
वे जामदग्नेय राम के प्रिय शिष्य -रामस्य दयितं शिष्यं जामदग्न्यस्य - त्रिकालदर्शी हैं।
उन धर्मविद का मैं मन ही मन चिन्तन कर रहा था - वेत्ति धर्मभृतां श्रेष्ठस्ततो मे तद्गतं मनः। उनके अवसान से धरा उसी प्रकार सूनी हो जायेगी जैसे चंद्रमा से हीन अमा की रात होती है - भविष्यति मही पार्थ नष्टचन्द्रेव शर्वरी।
आप चल कर उनसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से सम्बंधित विद्याओं;
होता, उद्गाता, अध्वर्यु एवं उद्गाता से सम्बंधित यज्ञ कर्मों
एवं
चार वर्णों के धर्म के बारे में ज्ञान प्राप्त कीजिये।
कौरवों के धुरन्धर भीष्म के अस्त से ज्ञान शास्त्रादि अल्प रह जायेंगे, नष्ट हो जायेंगे। इस कारण ही मैं आप को उनके पास जा कर प्रेरक ज्ञान प्राप्त करने को कह रहा हूँ।
चातुर्वेद्यं चातुर्होत्रं चातुराश्रम्यमेव च
चातुर्वर्ण्यस्य धर्मं च पृच्छैनं पृथिवीपते
तस्मिन्नस्तमिते भीष्मे कौरवाणां धुरंधरे
ज्ञानान्यल्पीभविष्यन्ति तस्मात्त्वां चोदयाम्यहम्
युधिष्ठिर ने कहा कि मैं चाहता हूँ आप, स्वयं भगवान, मुझे उनके पास ले चलें ताकि आसन्नमृत्यु पितामह एक बार आप का दर्शन भी कर सकें।
श्रीकृष्ण ने सात्यकि से व्यवस्था करने को कहा। सात्यकि ने सारथी दारुक द्वारा रथ सज्जित करवा दिया।
शरतल्पगतो भीष्मः शाम्यन्निव हुताशनः
मां ध्याति पुरुषव्याघ्रस्ततो मे तद्गतं मनः
वे मेरी शरण में हैं अत: मेरा मन उनमें है। वे गङ्गा पुत्र वसिष्ठ ऋषि के शिष्य हैं - वसिष्ठशिष्यं तं। वे समस्त अङ्गों सहित चारो वेदों को धारण करते हैं - साङ्गांश्च चतुरो वेदांस्तमस्मि मनसा गतः।
वे जामदग्नेय राम के प्रिय शिष्य -रामस्य दयितं शिष्यं जामदग्न्यस्य - त्रिकालदर्शी हैं।
उन धर्मविद का मैं मन ही मन चिन्तन कर रहा था - वेत्ति धर्मभृतां श्रेष्ठस्ततो मे तद्गतं मनः। उनके अवसान से धरा उसी प्रकार सूनी हो जायेगी जैसे चंद्रमा से हीन अमा की रात होती है - भविष्यति मही पार्थ नष्टचन्द्रेव शर्वरी।
आप चल कर उनसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से सम्बंधित विद्याओं;
होता, उद्गाता, अध्वर्यु एवं उद्गाता से सम्बंधित यज्ञ कर्मों
एवं
चार वर्णों के धर्म के बारे में ज्ञान प्राप्त कीजिये।
कौरवों के धुरन्धर भीष्म के अस्त से ज्ञान शास्त्रादि अल्प रह जायेंगे, नष्ट हो जायेंगे। इस कारण ही मैं आप को उनके पास जा कर प्रेरक ज्ञान प्राप्त करने को कह रहा हूँ।
चातुर्वेद्यं चातुर्होत्रं चातुराश्रम्यमेव च
चातुर्वर्ण्यस्य धर्मं च पृच्छैनं पृथिवीपते
तस्मिन्नस्तमिते भीष्मे कौरवाणां धुरंधरे
ज्ञानान्यल्पीभविष्यन्ति तस्मात्त्वां चोदयाम्यहम्
युधिष्ठिर ने कहा कि मैं चाहता हूँ आप, स्वयं भगवान, मुझे उनके पास ले चलें ताकि आसन्नमृत्यु पितामह एक बार आप का दर्शन भी कर सकें।
श्रीकृष्ण ने सात्यकि से व्यवस्था करने को कहा। सात्यकि ने सारथी दारुक द्वारा रथ सज्जित करवा दिया।
(क्र्मश:)
निमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/