फागुन रेचक है। वास्तविक मधुउत्सव तो चैत्र में होता है। नौ दिन नवदुर्गा अनुष्ठान, जन जन में रमते राम का नवजन्म नये संवत्सर में।
नवान्न दे पुनः प्रवृत्त होती धरा का स्वेद सिंचन, धूप में सँवरायी गोरी का पिया को आह्वान - गहना गढ़ा दो न, बखार तो सोने से भर ही गयी है!
चैत में शृंगार का परिपाक होता है। गेहूँ कटता है, रोटी की आस बँधती है, मधुमास भिन्न भिन्न अनुभूतियाँ ला रहा होता है एवं ऐसे में उस राम का जन्म होता है जो आगे चल कर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये किंतु उनके जन्मोत्सव में जो भिन्न भिन्न पृष्ठभूमियों के लोकगायकों एवं नर्तकों की हर्षाभिव्यक्ति होती है, उसमें उल्लास स्वर नागर शास्त्रीयता तथा अभिरुचि की मर्यादाओं को तोड़ता दिखता है। इसमें गाये जाने वाले चइता चइती की टेर अरे रामा, हो रामा होती है।
चइता पुरुष गान है। सुनिये चइता विशाल गगन के स्वर में।
(अंत तक सुनने पर ही समझ में आयेगा कि चैत क्यों फागुन से श्रेष्ठ!)
पूरी प्रस्तावना के साथ गान होता है। प्रकृति भी आने वाले के स्वागत में है, रसाल फल गए हैं, महुवा मधुवा गए हैं, पवन कभी लहराता है तो कभी सिहराता है।
घर में नया अन्न आ गया है, पूजन हो रहा है, मंगल गान है, क्रीड़ा है। मस्ती भरे वातावरण में राम जी जन्म लेते हैं! ढोल की ढमढम के साथ बधाई गीतों की धूम है।
सावन से न भादो दूबर,
फागुन से ह चइत ऊपर
गजबे महीना रंगदार रे चइतवा।
आम टिकोराइ जाला
महुवा कोचाइ जाला
रस से रसाइल रसदार रे चइतवा।
कबहू लहर लागे
कबहू सिहर लागे
किसिम किसिम बहेला बयार रे चइतवा।
गेंहू के कटाई होला
नवमी के पुजाई होला
लेके आवे अजबे बहार रे चइतवा।
घरे घरे मंगल होला
कुस्ती आ दंगल होला
मस्ती से भरल मजदार रे चइतवा।
ढोल ढमढमाय लागे
चइता गवाय लागे
राम जी लिहलें अवतार रे चइतवा।
बाजे अजोधा में अनघ बधइया
ए राम रामजी जनमलें
दसरथ जी के अंगनइया।
बाजे चइत मास गावेला बधइया
ए राम रामजी जनमलें
दसरथ जी के अंगनइया।
~~~~~~~~~~~~~
शृंखला के अन्य गीत
लोक :
भोजपुरी - 10: चइता के तीन रंग
लोक: भोजपुरी- 9: पराती, घरनियों का सामगायन
लोक: भोजपुरी- 8: कस कसक मसक गई चोली(निराला) और सुतलऽ न सुत्ते दिहलऽ(लोक)
लोक : भोजपुरी - 7: बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरी (अंतिम भाग)
लोक : भोजपुरी - 6: रोइहें भरि भरि ऊ... बाबा हमरो...भाग-1
लोक : भोजपुरी - 5 : घुमंतू जोगी - जइसे धधकेले हो गोपीचन्द, लोहरा घरे लोहसाई
लोक : भोजपुरी - 4 : गउरा सिव बियाह
लोक : भोजपुरी -3: लोकसुर में सूर - सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
लोक : भोजपुरी - 2 : कवने ठगवा - वसुन्धरा और कुमार गन्धर्व : एक गली स्मृति की
लोक:भोजपुरी-1: साहेब राउर भेदवा
लोक: भोजपुरी- 9: पराती, घरनियों का सामगायन
लोक: भोजपुरी- 8: कस कसक मसक गई चोली(निराला) और सुतलऽ न सुत्ते दिहलऽ(लोक)
लोक : भोजपुरी - 7: बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरी (अंतिम भाग)
लोक : भोजपुरी - 6: रोइहें भरि भरि ऊ... बाबा हमरो...भाग-1
लोक : भोजपुरी - 5 : घुमंतू जोगी - जइसे धधकेले हो गोपीचन्द, लोहरा घरे लोहसाई
लोक : भोजपुरी - 4 : गउरा सिव बियाह
लोक : भोजपुरी -3: लोकसुर में सूर - सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
लोक : भोजपुरी - 2 : कवने ठगवा - वसुन्धरा और कुमार गन्धर्व : एक गली स्मृति की
लोक:भोजपुरी-1: साहेब राउर भेदवा
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आधुनिक काल की मीराबाई को नमन करती ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंहालाँकि भोजपुरी पुरु तरह नहीं आती पर सुंदर चैत रचना और उसमें रंग भरता नाधुर गीत मन को ख़ुशी से भर गया | धन्यवाद पम्मी जी इस ब्लॉग पर भेजने के लिए |
जवाब देंहटाएं