Spring Equinox and Festivals
आप ने कुछ लोगों को सुना होगा कि विक्रम संवत तो वैशाख में लगता है, यह तो शक संवत है! वास्तव में वे सौर कैलेण्डर एवं सौर-चंद्र पञ्चाङ्ग की बातें कर रहे होते हैं, किञ्चित भ्रम में भी रहते हैं।
पहले चार बिंदुओं को जानिये। धरा से सूर्य को देखें तो सूर्य उत्तर-दक्षिण-उत्तर वर्ष भर दोलन करते प्रतीत होते हैं। इस गति के कारण ही जाड़ा, गरमी, बरसात ऋतुयें होती हैं जिन्हें दो दो में बाँटने पर छ: हो जाती हैं।
कल प्रात:काल 21 मार्च को महाविषुव या वसंत विषुव का सूर्योदय होगा। इस दिन पृथ्वी के बीचोबीच की कल्पित रेखा विषुवत वृत्त वाला तल सूर्य के गोले के बीचोबीच से जाता है, सूर्योदय ठीक पूरब में, सूर्यास्त ठीक पश्चिम में। सम ऋतु – वसंत। निकट का पर्व – वासंती नवरात्र। शस्य देखें तो गेहूँ, रबी। रामनवमी के नौ रोटी।
यहाँ से क्रमश: उत्तर की ओर झुकते सूर्य के कारण दिन के घण्टे बढ़ते जाते हैं, ताप भी बढ़ता जाता है। 21/22 जून को अधिकतम उत्तरी झुकाव होता है, भीषण उमस, वर्षा ऋतु का उद्घाटन। ग्रीष्म अयनांत, चलना रोक कर लौटना।
वहाँ से पुन: दक्षिण की ओर माध्य स्थान की ओर लौटते सूर्य 22/23 सितम्बर को पुन: विषुव वाली माध्य स्थिति प्राप्त करते हैं। सम ऋतु – शरद। निकट का पर्व – शारदीय नवरात्र। कृषि उपज देखें तो धान, खरीफ शस्य।
वहाँ से दक्षिण की ओर झुकते जाते हैं, दिन छोटे होने लगते हैं, शिशिर आ जाता है, पूस जाड़ तन थर थर काँपा। 21/22 दिसम्बर को अधिकतम दक्षिणी झुकाव होता है। शीत अयनान्त।
यहाँ से उत्तरायण होते सूर्य पुन: 21 मार्च की स्थिति तक आते हैं। ऋतु चक्र चलता रहता है। 3 – 3 महीनों के अंतर से चार बिंदु।
इतना समझ लेने पर अब जानिये कि अंतर्राष्ट्रीय कैलेण्डर सौर है अर्थात चंद्र गति से इसका कोई सम्बंध नहीं। विक्रम संवत सौर-चंद्र है अर्थात दोनों को मिला कर, समायोजित करते चलता है किंतु तिथियों एवं मास के लिये चंद्र गति पर ही निर्भर होता है, पूर्णिमा के दिन चंद्र नक्षत्र से मास का नाम होता है।
इस कारण आप पायेंगे कि अंतर्राष्ट्रीय कैलेण्डर के अनुसार अधिकतर पर्वों का दिनांक निश्चित नहीं होता किंतु चंद्र मास, पक्ष एवं तिथि निश्चित होते हैं।
वस्तुत: चंद्र तिथि मास के अनुसार हम मूलत: सौर गति से उत्पन्न ऋतु आधारित पर्व ही मनाते हैं। पर्व को पोर, सरकण्डे की गाँठ से समझिये, एक निश्चित बिंदु।
अब ऊपर लिखा पढ़िये तो! दो महत्त्वपूर्ण सौर बिंदुओं विषुव के निकट सम ऋतु में दोनों नवरात्र पड़ते हैं।
ऐसा नहीं है कि पूर्णत: सौर पर्व उत्तर में नहीं मनाये जाते। संक्रांतियाँ वही तो हैं! एक समय ऐसा था शीत अयनांत एवं वसंत विषुव के बिंदु परवर्ती काल में अपनाये गयी राशि पद्धति की क्रमश: मकर एवं मेष से सम्पाती थे। सापेक्ष सूर्य की लगभग 26000 वर्ष की एक अन्य गति के कारण यह सम्पात खिसकता रहा एवं अब 23/24 दिनों का अंतर आ गया है। जो जन पहले अयनांत एवं विषुव मनाया करते थे, अब सौर संक्रांति मनाते हैं जिसकी तिथि, मास स्थिर नहीं होते, सौर कैलेण्डर का दिनाङ्क स्थिर होता है – 14/15 जनवरी (मकर संक्रांति) एवं 13/14 अप्रैल।
14 अप्रैल को उत्तर में वैशाखी होती है – मेष संक्रांति, कतिपय पूरबी भागों में नया संवत्सर आरम्भ होता है तो दक्षिण में तमिळ नववर्ष –पूर्णत: सौर। वैशाखी नाम से स्पष्ट है कि पर्व का नाम चंद्र मास पर ही है। उस मास पूर्णिमा को चंद्र विशाखा नक्षत्र पर होता है।
ऐसे समझिये कि सूर्य तो वर्ष भर एक समान गोला ही दिखता है, जबकि चंद्रमा कलायें दर्शाता है, वह भी दो पक्षों में। इस कारण चंद्रमा ने आकाश में उस कैलेण्डर की भाँति दिन बताने का काम किया जो भीत पर टँगा कैलेण्डर आज कल करता है।
14 अप्रैल को ही भोजपुरी क्षेत्र में हर वर्ष पड़ता है – सतुआन (सतुवान, सतुवानि) पर्व, पूर्णत: सौर। सतुवा अर्थात रबी के उबले, सुखाये, भुने, पिसे विविध अन्न। आप के यहाँ कौन सा पर्व पड़ता है?
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कल सूर्योदय अवश्य देखें तथा उनकी स्थिति किसी दूरवर्ती स्थायी वस्तु, संरचना इत्यादि के सापेक्ष मन में बिठा लें। वह आप को वर्ष भर वास्तविक पूरब की दिशा बताती रहेगी। उसके सापेक्ष वर्ष भर सूरज की उत्तरी दक्षिणी यात्रा का पञ्चाङ्ग तथा कैलेण्डर देखते हुये प्रेक्षण कर सकते हैं।
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Awesome videos, thank you for sharing!
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख...
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