बोल कर संस्कृत पढ़ने से जिह्वा, मुख एवं स्वर तंत्र का व्यायाम भी होता है। किसी एक ही मन्त्र के पाठ या जप का यह परोक्ष लाभ है। पुरुष सूक्त के प्रथम मन्त्र को देखें, अथर्वण सहस्रबाहु के स्थान पर ऋग्वैदिक सहस्रशीर्षा।
स॒हस्र॑शीर्षा॒ पुरु॑षः सहस्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात् ।
स भूमिं॑ वि॒श्वतो॑ वृ॒त्वात्य॑तिष्ठद्दशाङ्गु॒लम् ॥
य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, अक्षमाला का अंतिम य वर्ग समस्त ऊष्म संघर्षी ध्वनियों के साथ उपस्थित है। पहले शब्द में ही र एवं ह के सम्पुट के साथ तीनों ध्वनियाँ - स, श, ष उपस्थित हैं, सम्पूर्ण ऊष्म परास। हममें से कितने इसका शुद्ध उच्चारण कर सकते हैं?
स+ह+स्+र+श+ई+र्+ष+आ - सहस्रशीर्षा।
ई कुण्डलिनी स्वरूपा मानी जाती है, आ अर्थात अन्त में स्वाहा!
स्वाहा की गढ़न भी देखें - ऊष्म ध्वनियों का संयोजन है।
Just today, Bikaneri Jyotishi Maharaj has posted a video on fb, it seems the swedish girl is reciting the same mantra.
जवाब देंहटाएं