ऋग्वेद 10 मण्डलों में विभाजित है जिसमें 2 से ले कर 8 तक विशिष्ट ऋषिकुलों के मुख्यतया अपने सूक्त हैं, नवाँ सोम पवमान को समर्पित है एवं पहले तथा अंतिम दसवें मण्डलों में विविध ऋषि मंत्र हैं।
- अध्ययन गोत्र अनुसार करें। जो नाम दिये हैं वे मुख्य हैं। आप को आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि दो से ले कर आठ तक सात ऋषि हो जाते हैं - सप्तर्षि। यह प्राचीनतम बीज रहा होगा ।
- ऋग्वेद में प्रयुक्त मुख्य छंद भी सात ही हैं - गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुभ, बृहती, पङ्क्ति, त्रिष्टुभ, जगती जिनमें 4 की समान्तर श्रेणी से क्रमश: 24, 28, 32, 36, 40, 44 एवं 48 पूर्ण वर्ण होते हैं।
देखें तो इन्हें 4 x (6, 7, 8, 9, 10, 11, 12) की भाँति भी लिखा जा सकता है। मात्रा तो आप सब जानते ही होंगे, छ्न्दों को अंग्रेजी में meter कहा जाता है। आप को आश्चर्य होगा कि इन का प्रयोग मापन हेतु भी होता था । छ: ऋतुयें हों या बारह मास, चार के गुणक से संवत्सर मापन की दो सीमायें निर्धारित हैं। दिनों की गणना हो या चंद्र आधारित तिथियों की, उनकी संख्या को छन्दों की वर्ण संख्या से भी अभिव्यक्त किया जाता था।
छन्द वह छाजन थे जिनमें देवता शरण पाते थे। यह प्राचीन पद्धति एवं भाषा आधुनिक जन को कूटमय इस कारण लगते हैं कि अब प्रयोग में नहीं रहे।
- सप्तसिन्धु या सात नदियाँ जानते ही हैं।
मेरा अनुमान है कि त्रि षप्ता: का - सम्बंध सात ऋषियों, सात छंदों एवं सात नदियों से अवश्य रहा होगा।
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आगे जो कहने जा रहा हूँ उसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है, अनुमान मात्र है। मण्डल का एक अर्थ वृत्त होता है एवं यह शब्द भारतीय विद्याओं का एक बहुत ही प्रिय शब्द रहा है।
दिये गये चित्र में वृत्त की परिधि पर दस मण्डलों में से सात के ऋषिकुलों के नाम हैं। ऋग्वेद पढ़ते समय आरम्भ नवें से करें (सोम पवमान)।
नौ का अङ्क सबसे बड़ी एकल संख्या होने के साथ साथ गुणा का एक अद्भुत गुण लिये हुये है कि परिणाम के अंकों का योग भी 9 ही होता है।
सोम पवमान से अपने गोत्र (जिनके नहीं मिलते हों वे भी इन मूल गोत्रों से अपने गोत्र के सम्बंध जान सकते हैं) वाले मण्डल पर पहुँचें तथा दक्षिणावर्त दिशा में पढ़ते हुये आगे बढ़ें। अपने गोत्र से पूर्व वाले गोत्र के पश्चात पुन: वृत्त के केन्द्र से होते हुये उस मण्डल तक पहुँचें जो सबसे बायें हो वहाँ से दक्षिणावर्त घूमते हुये इस प्रकार अन्त करें कि अन्तिम दसवाँ मण्डल सबसे अंत में पढ़ा जाय एवं उससे ठीक पहले पहला।
उदाहरण हेतु यदि आप का गोत्र वसिष्ठ (सातवाँ मण्डल) या उनसे उद्भूत कोई अन्य गोत्र है तो आप का क्रम होगा :
9
7, 8
2, 3, 4, 5, 6
1, 10
यदि आप का गोत्र वामदेव गौतम (चौथा मण्डल) या उनसे उद्भूत कोई अन्य गोत्र है है तो क्रम होगा :
9
4, 5, 6, 7, 8
2, 3
1, 10
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[दुहरा दूँ कि इसका शास्त्रीय आधार नहीं है, मुझे तो नहीं मिला, यदि है तो इसे सुखद संयोग मानूँगा। हाँ, सम्भवत: परम्परा में सोम पवमान से ही अध्ययन आरम्भ का विधान है जिसकी पुष्टि कोई ऋग्वेदीय आचार्य ही कर पायेंगे।]
ऋग्वेद की गढ़न मुझे चमत्कृत करती रही है, अनेक परिकल्पनायें मेरे मन में हैं, चलती रहती हैं, जिनमें से एक यह है।]