शनिवार, 22 सितंबर 2018

मित्र, दोस्त, विभाषा, तितली के पर एवं हिन्‍दी का नाश


कल यात्रा में था । आजकल लोग यात्रा में सहयात्रियों से बातें नहीं करते परन्तु मैंने अपने पार्श्व के सज्जन से वार्त्तालाप आरम्भ किया जो कि चार घण्टे चलता रहा। वे मुझसे पिछली पीढ़ी के थे, ताम्ब्रम अर्थात तमिळ ब्राह्मण थे - हिन्दी, संस्कृत एवं तमिळ, तीनों में निष्णात । Chartered Accountant थे, दिल्ली जा रहे थे। एक बात जो यहाँ सामान्यत: ही दिख जाती है, ब्राह्मण बहुत ही सुसंस्कृत होते हैं, बातचीत एवं व्यवहार में सभ्यता सहज ही परिलक्षित होती है। ये सज्जन प्राच्य विद्या एवं पाश्चात्य तकनीकी के संयोग से जीवनयापन के समर्थक थे, DOS, Foxpro, DBase, VB, C++ इन सबमें काम कर चुके थे एवं प्रशिक्षक भी रहे।
बात संस्कृत पर जानी ही थी, मुझे नया कुछ तो नहीं मिला किन्‍तु प्रेक्षणजनित निज निष्कर्षों की पुष्टि हुई। उनका उत्साह देखते सुनते ही बनता था !
हमने लैपटॉप पर देखते हुये संस्कृत, वैदिक एवं तमिळ की यूनिकोड फॉण्ट व्यवस्थाओं पर भी बातें की। 

उनकी पीड़ा मुखरित थी कि किस प्रकार तमिळ को पिछ्ले ५० वर्षों में सायास संस्कृत से मुक्त कर दिया गया। उन्हों ने बताया कि सारिणी में जो रिक्त स्थान दिख रहे हैं, वे वस्तुत: उन अक्षरों के लिये हैं जो प्रत्येक वर्ग के बीच के तीन वर्णों के तमिळ में अभाव की पूर्ति हेतु रखे गये हैं, जिनका कि प्रस्ताव यूनिकोड संस्था को भेजा जा चुका है किन्‍तु कथित तमिळ राष्ट्रवादियों ने entry of Sanskrit from backdoor बता कर आपत्तियाँ लगाई हुई हैं एवं काम लम्बित है।
उन्हों ने उसकी पुष्टि की जो मैं कहता रहा हूँ - हिन्‍दी को संस्कृतनिष्ठ बनाये रखें तो शेष भारत के समस्त भाषा भाषी उसे अधिक समझेंगे एवं उत्साह से अपनायेंगे। उनका कहना था कि तमिळनाडु से बाहर होने पर उन्हें उत्तर या पश्चिम भारत की भाषाओं को समझने में कोई समस्या नहीं होती क्योंकि संस्कृत के कारण वह जोड़ कर समझ लेते हैं।
भाषिक क्षेत्र में माँग एवं आपूर्ति में इतना बड़ा अंतर स्यात ही मिले! दक्षिण भारतीय संस्कृतनिष्ठ हिंदी हेतु तड़प रहे हैं जब कि हिंदी जन उसे अरबी फारसी की रखैल बनाने में लगे हुये हैं !
(मुझे ज्ञात है कि इसे पढ़ कर आप के मन में 'भाषा बहता नीर', आधुनिक काल की सबसे अल्प समझी गयी एवं हिंदी के पतित काहिलों द्वारा सर्वाधिक दु:प्रयुक्त उक्ति आ रही होगी किन्‍तु मेरी बात बहुत ही सीधी है, मैं नदी नहीं, जीभ से बहती नाली की बात कर रहा हूँ।)
उनसे अन्य अनेक विषयों पर चर्चा हुई जिनकी परास बड़ी है। यह भी बता दूँ कि उन्हें तमिळ भाषा पर गर्व था एवं वह उसके 'पतन' से व्यथित थे।
आज प्रात:काल (तमिळ में आज भी प्रात या प्रातकालै या कालै, मध्याह्न एवं सायं प्रचलित हैं, साधारण जन बोलते हैं, हिन्‍दी पट्टी में कोई बोलता मिल जाय तो मेरे लिये आठवाँ आश्चर्य होगा) जब मैं संस्कृत पाठों हेतु यूट्यूब पर गया तो यह सुन कर व्यथित हुआ कि सभी 'दोस्तो' सम्बोधन का प्रयोग कर रहे थे न कि 'मित्रो' का।
दोस्त पा(फा)रसी मूल का शब्द है जिसका वास्तविक रूप दूस्त है । मेरा ध्यान ऐंवे दोस्त से गोश्त एवं दूस्त से दुष्ट पर चला जाता है। विचार करें कि जब आप 'मित्र' कहते हैं तो ऋग्वैदिक मित्र-वरुण, सूर्य, मैत्री से जुड़ते हैं एवं मंत्र, मंत्रणा जैसे समान वर्ण वाले शब्द भी आप के अंतर्मन में कहीं न कहीं उमड़ते हैं ।
विभाषा के शब्द अपने 'यार' शब्दों को आकर्षित करते हैं दोस्त कहेंगे तो 'जिगरी' आयेगा ही, परंतु मित्र कहेंगे तो 'परम' एवं 'घनिष्ठ' शब्द ही उसके साथ भाषित होंगे। भाषायें ऐसे ही बिगड़ती हैं, प्रदूषित हो जाती हैं। इसे भिन्न प्रकार का अनुनादी प्रभाव भी कह सकते हैं तथा String Theory की इस व्युत्पत्ति से भी जोड़ सकते हैं कि एक तितली यदि पर फड़फड़ाती है तो उससे सुदूर कहीं कोई अट्टालिका भी ध्वस्त हो सकती है ।
दैनिक जीवन की बातचीत से अरबी फारसी शब्दों के प्रयोग क्रमश:, सायास, हटायें, फड़फड़ाहटें हिन्‍दी को ध्वस्त कर रही हैं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी जानकारी, हिंदी भाषा संस्कृत के बिना अधूरी हैं। संस्कृत और हिंदी मिलकर मधुर वाणी बनती है, बशर्ते इसके लिए हम तैयार हों

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दुर्गा खोटे और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. 'जब कि हिंदी-जन उसे अरबी-फ़ारसी की रखैल बनाने ने लगे हुए हैं' क्या ऐसे ही फ़ारसी-अरबी भाषा-विरोधी विष-बुझे वाक्यों से हम हिंदी का प्रचार करेंगे? और फिर शब्द- 'रखैल' का प्रयोग क्यों? 'रक्षिता' का प्रयोग क्यों नहीं? क्या हिंदी पाठ्य-क्रम में केवल प्रसाद, पन्त, महादेवी को रखा जाना है और उर्दू-हिंदी, अरबी-फ़ारसी शब्दों का खुलकर प्रयोग करने वाले प्रेमचंद, नीरज और दुष्यंत कुमार को हटाने की वेला आ चुकी है?

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    1. संस्कृत सोते का एक शब्द है 'च्युत', 'छूटना' उसी से है। जिसकी बुद्धि छूट गयी हो, उसे बुद्धिच्युत कहते हैं।
      ऐसे जन जो लिखा है, उसे न पढ़, अपने आग्रह पढ़ते हैं, जो नहीं लिखा है उसे भी आरोपित कर अपने आग्रह, अपने व्यर्थ के मानसिक उपद्रव उड़ेलते हैं । जो लिखा है, उसे दो चार बार आग्रह मुक्त हो पढ़ें, समझ में बात आ जायेगी। तब भी न समझ में आये तो आप को ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते। जो अतीतजीवी वर्तमान से नहीं सीखते, वे नष्ट हो जाते हैं। हिन्दी की दुर्दशा आप जैसे कुपढ़ों के कारण भी है।

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    2. हाँ तो गोपेश जैश-बाल भीडू... तेरेकू हिन्दी का प्रचार करना मांगता. कैसी हिंदी चाइये तेरेकू? बोले तो एकदम प्युअर वाली कि एकदम टकाटक मिक्सचर वाली? इसका एक एक्साम्पल देता मई तेरेकू - तू पानी मांगेगा तो तेरेकू घड़े का पानी पिलाया जाए या संडास का? पर तेरे जैसे भोसड़पप्पू तो घर से बाहर बिसलेरी का पानी पीते है ना बे?

      भैन्चो, तेरे जैसे झंटूरे ये कायकू नई समजते बे कि अपुन अपनी माँ की सेवा की बात कर रेला है तो तेरेकू बाजूवाली सलमा आपा के बाते में रंडीरोना नई करने को चईये. खाली पीली ऐसे में गांड में बम्बू घुस जाएगा तेरे तो फिर ईंटोलेरेंस का भोंपू बजाएगा तू, बे सड़े हुए केले के छिलके!

      अबे फटे हुए पायजामे... तेरेकू अपनी बेटी का हलाला अब्दुल से करवाना है तो तू करवा. अपुन को ये मत बता कि अब्दुल तेरे लौंडिया को कितना मजा दे रहा है. खा खुजा, बत्ती बुझा..चल निकल्ले इन्टुकले पिंटुकले. नई तो इन्टरनेट पे भोत गाली खायेगा. चल वटक इदर से.

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    3. गोपाल जी समय की अनवरत बहती धारा में प्रेमचंद, नीरज, दुष्यंत कुमार आदि बूँद भर भी नहीं हैं । इन सभी के एकसाथ विलुप्त हो जाने से भी यदि एक भी लुप्त (तत्सम/तद्भव/देशज) शब्द पुनः प्रतिष्ठित-प्रचलित हो जाता हो तो ऐसा अविलम्ब हो जाना चाहिए । भाषा महत्वपूर्ण है, शब्द महत्वपूर्ण हैं, लेखक-पाठ्यक्रम आदि बदलते रहते हैं । जय जय ।

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  4. विचारोत्तेजक एवं अनुकरणीय.
    हाल ही में गूगल तकनीकी हिंदी समूह में भी इसी विषय पर चर्चा चल रही है तो वहाँ भी इसे साझा किया है -

    https://groups.google.com/forum/#!topic/technical-hindi/FMeLKhZ848A

    😍

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  5. गिरिजेश जी,
    बहुत सुन्दर और तार्किक लेख है। आपको साधुवाद और सादर प्रणाम!
    हिन्दी समाचार पत्रों और प्रसार माध्यमों ने तो जैसे उर्दू के प्रचार प्रसाद का ठेका ले रखा है। हिमपात, वर्षा जैसे सामान्य शब्द भी अब सुनायी ही नहीं आते।








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