गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

शत्रु कपटी हो, शक्तिशाली हो तो कपट से या छिप कर मारें


श्रीराम ने बाली को छिप कर मारा। रामायण में बाली ने उन्हें बहुत खरी खोटी सुनाई है। स्वयं क्या किया था उसने? भाई को निर्वासित कर एक निश्चित घेरे में रहने पर विवश कर दिया था। पुत्रवधू समान अनुजवधू से बलात संसर्ग करता था, मारा गया तो धर्म की बातें करने लगा।
बाली के चरित्र को आजकल के कम्युनिस्टों एवं मुसलमानों का प्रतिनिधि समझें, अपने तो सारे कुकर्म करेंगे किंतु जब प्रतिकार होगा तो स्वयं को धर्मात्मा बताते हुये सामने वाले पर टूट पड़ेंगे। मीडिया से ले कर नेता अभिनेता तक जो कुछ हो रहा है, बाली कर्म ही है।
बाली ने क्या बातें कहीं हैं! पठनीय हैं -
राजा के गुण गिनाते हुये श्रीराम की भर्त्सना करता है - दम: शम: क्षमा धर्मो धृति: सत्य पराक्रम: । पार्थिवानां गुणा राओजन् दण्डश्चाप्ययकारिषु॥
तुमको तो बड़ा धर्मात्मा सुना था, बड़े अधर्मी निकले ! तुम्हारी बुद्धि मारी गयी है - विनिहतात्मानं। तुम्हारा आचार पापपूर्ण है - पापसमाचारम्। तुम घास फूस से ढके कुँये के समान धोखा देने वाले हो - तृणै: कूपमिवावृतम्। साधुओं के वेश में पापी हो - सतां वेषधरं पापं, राख से ढकी अग्नि समान हो, धर्म का छ्द्माभ्यास करते हो - धर्मच्छद्मानिसंवृतम्
मैं तो तुम्हारे राज्य में कोई उपद्रव नहीं कर रहा था, तब भी मुझ निरपराध को क्यों मारा? - विषये वा पुरे वा ते यदा पापं करोम्यहम् ... कस्मात् तं हंस्य?
महान क्षत्रियकुल में जन्मा, धर्म ज्ञाता बताते हुये उसने उन्हें क्रूरकर्मा कह कर ग्लानि से ग्रस्त करने का प्रयास भी किया, जैसे आज कल बरखा से रबिश तक सभी हिंदुओं पर लगे हुये हैं - धर्मलिङ्गप्रतिच्छन्न: क्रूरं कर्म समाचरेत् ! अखलाक के वध पर जैसी प्रतिक्रियायें आई थीं, इस अंश को पढ़ते हुये वे सभी ध्यान में आती हैं।
तुम्हें नीति एवं विनय नहीं ज्ञात, दण्ड एवं अनुग्रह का राजधर्म भी नहीं पता, तुम तो बड़े संकीर्ण, क्रोधी अमर्यादित हो - कोपनश्चानवस्थित:, संकीर्ण:। जहाँ कहीं भी बाण चलाते फिरते हो - शरासनपरायण:। तुम्हारी बुद्धि स्थिर नहीं है।
मुसलमानों की ही भाँति विक्टिम कार्ड भी खेलने लगा -
हत्वा बाणेन काकुत्स्थ मामिहानपराधिनम् ।
किं वक्ष्यसि सतां मध्ये कर्म कृत्वा जुगुप्सितम् ॥
मुझ निरपराध को बाण से मारने का जुगुप्सित कर्म कर तुम सत्पुरुषों के बीच में क्या कहोगे?

बाली ने इतना तक कह दिया कि अरे !  तुम शठ हो, अपकारी हो, क्षुद्र हो,  मिथ्या ही अपने को शांतचित्त दिखाते रहते हो। महात्मा जैसे राजा दशरथ से तुम्हारे जैसा पापी कैसे उत्पन्न हो गया !
शठो नैकृतिक: क्षुद्रो मिथ्याप्रश्रितमानस: । कथं दशरथेन त्वं जात: पापो महात्मना !
श्रीराम आज कल के मोहनदासी हिंदू होते तो पानी पानी हो गये होते!

श्रीराम ने उत्तर देना आरम्भ किया - धर्म, अर्थ, काम एवं लौकिक आचार को तो तुम स्वयं नहीं जानते, बालोचित अविवेक से ग्रस्त हो मेरी निंदा करते हो? - अविज्ञाय कथं बाल्यान्मामिहाद्य विगर्हसे ! यह समस्त पृथ्वी इक्ष्वाकुओं की है, वे पशु पक्षी सहित समस्त मनुष्यों पर दया करने एवं दण्ड देने के अधिकारी हैं।
धर्मात्मा राजा भरत इस पृथ्वी का पालन करते हैं - तां पालयति धर्मात्मा भरत: सत्यवानृजु:। भरत की ओर से हमें तथा अन्य पार्थिवों को यह आदेश प्राप्त है कि जगत में धर्म पालन एवं प्रचार का यत्न किया जाय। अत: हमलोग धर्म का प्रसार करने की इच्छा से इस पृथ्वी पर विचरते हैं :
तस्य धर्मकृतादेशा वयमन्ये च पार्थिवा: ।
चरामो वसुधां कृत्स्नां धर्मसंतानमिच्छव: ॥
राम ने भरत की महिमा बताई तथा आगे वह कारण गिनाये जिनके कारण बाली को उन्हें मारना पड़ा, तुलसीदास ने अनुवाद किया - अनुजबधू भगिनी सुतनारी  ...
राम ने पापकर्म का दण्ड भरत के प्रतिनिधि होने के कारण दिया।
तदेतत्कारणं पश्य यदर्थं त्वं मया हतः
भ्रातुर्वर्तसि भार्यायां त्यक्त्वा धर्मं सनातनम्
अस्य त्वं धरमाणस्य सुग्रीवस्य महात्मनः
रुमायां वर्तसे कामात्स्नुषायां पापकर्मकृत्
तद्व्यतीतस्य ते धर्मात्कामवृत्तस्य वानर
भ्रातृभार्याभिमर्शेऽस्मिन्दण्डोऽयं प्रतिपादितः
न हि धर्मविरुद्धस्य लोकवृत्तादपेयुषः
दण्डादन्यत्र पश्यामि निग्रहं हरियूथप
औरसीं भगिनीं वापि भार्यां वाप्यनुजस्य यः
प्रचरेत नरः कामात्तस्य दण्डो वधः स्मृतः
भरतस्तु महीपालो वयं त्वादेशवर्तिनः
त्वं च धर्मादतिक्रान्तः कथं शक्यमुपेक्षितुम्
गुरुधर्मव्यतिक्रान्तं प्राज्ञो धर्मेण पालयन्
भरतः कामवृत्तानां निग्रहे पर्यवस्थितः
वयं तु भरतादेशं विधिं कृत्वा हरीश्वर
त्वद्विधान्भिन्नमर्यादान्नियन्तुं पर्यवस्थिताः
श्रीराम ने यह भी बताया कि दण्ड देने में प्रमाद करने पर राजा को दूसरों के पाप भोगने पड़ते हैं। भारत की समस्या यही है कि राजदण्ड या तो है ही नहीं या मोहनदासी प्रभाव में चलता ही नहीं।
लोकतंत्र में तो लोक ही राजा है न? सरकार उसकी प्रतिनिधि। प्रतिनिधि दण्ड नहीं देगा तो राजा पाप भोगेगा अर्थात लोग कष्ट भोगेंगे। भारत की जनता भोग रही है।
victim card ख़ेल कर आजकल के वामपंथी प्रयासों की भाँति उन्हें अवसाद एवं पछतावे, ग्लानि आदि से भर देने के बाली के कथनों पर श्रीराम ने बहुत स्पष्ट कह दिया :
न मे तत्र मनस्तापो न मन्युर्हरिपुङ्गव ।
वागुराभिश्च पाशैश्च कूटैश्च विविधैर्नरा :॥
इस कार्य के लिये मेरे मन में न तो संताप होता है और न खेद ही। मनुष्य जाल बिछा कर, पाश पसार कर तथा नाना प्रकार के कूट उपाय कर मृगों को पकड़ लेते हैं, तू तो शाखामृग (उत्पाती) है - यस्माच्छाखामृगो ह्यसि !
...
शत्रु कपटी हो, शक्तिशाली हो तो कपट से या छिप कर मारें । मन में कोई अपराध भाव या ग्लानि न रखते हुये दुरात्माओं को येन केन प्रकारेण नष्ट करने वाले क्षात्रधर्म की आवश्यकता है।  

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