पटवारी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पटवारी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

उल्टी बानी (भाग एक) - पंचवर्षीय कर्मकाण्ड

पंचवर्षीय कर्मकाण्ड का प्रथम चरण संपन्न हुआ. ढेर सारे आडम्बर हुए:
- अभिनेताओं ने जनता से अपील की – वोट के दिन घर से बाहर निकलो...
- स्वयंसेवी संस्थाओं ने नुक्क्ड़ नाटक किए.
- अखबारों ने इस्तहार निकाले बड़े बड़े.
- टी.वी. पर एक विज्ञापन खूब चला – वोट करो. 21 वी सदी के मुरीद एक पुराने प्रधानमंत्री ने हमें एक नई शब्दावली दी थी – ‘करा करी’ वाली. उसी की तर्ज़ पर नई पीढ़ी को रिझाने के लिए वोट “करो” ..खूब गूँजा.
- ट्रांसफरेबल नौकरी वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जोश में आ कर नई जगहों पर दुबारा वोटर कार्ड बनवा लिए... क्या फर्क पड़ता है यहाँ के लिए भी एक कार्ड बन जाए? आखिर बंगलादेशी भी लिए घूम रहे हैं! ...
और यह सब अभी चल ही रहा है. अभी तो कितने चरण बाकी हैं! एक राष्ट्रीय टाइम पास हो गया है.. वोट करो..जय हो...भय हो... जय हे.....पैसे बाँटे जा रहे हैं ... बड़ी पुख्ता व्यवस्था है.. ट्रेनिंग दर ट्रेनिंग चल रही है. सरकारी ऑफिसों में अधिकारियों को नया बहाना मिल गया है. इलेक्सन है साहब को फुर्सत कहाँ..आप की फाइल देखने को? गोया पहले निहाल कर देते थे फाइल देख देख कर!
पूरा देश व्यस्त है. सौदे हो रहे हैं किसे कहाँ वोट करना है? किसे घर में ही रहना है.....
और पहले चरण में इतनी नौटंकी के बाद भी यू.पी., बिहार में वही ढाक के तीन पात. आधे मतदाता घर से बाहर ही नहीं निकले.नक्सलियों ने वास्तविक सत्ता किसके हाथ में है इसका क्रांतिकारी शंख़नाद भी अपने तरीके से कइ जगहों पर किया.

इस बड़े लबड़धोंधों के दौरान क्या आप कभी सोचते भी हैं कि क्या होगा अगर सारे मतदाता सचमुच निकल पड़े वोट देने? क्या तंत्र इसके लिए तैयार है? वोटिंग टाइम और बूथों की संख्या क्या पर्याप्त होगी उसके लिए?
यह सब आप को एक षड़यंत्र नहीं लगता? बहुत ही सुनियोजित वेल स्ट्रक्च्रर्ड ! आखिर 58 सालों से चल रहा है. क्यों वोट देना जनता की इच्छा पर छोड़ दिया गया है? क्यों एक जगह पर एक ही दिन वोट पड़ता है?
क्यों यह प्रचारित नहीं किया जाता कि एक ऑप्सन यह भी उपलब्ध है कि हमें कोई उम्मीदवार पसन्द नहीं? हम सब को लतियाना चाहते हैं क्यों कि ये सभी उठाइगीर इस देश को चलाने के लिए “अयोग्य” हैं...डिस्क्वालिफॉइड!
क्यों यह प्रक्रिया तब तक नहीं चल सकती जब तक कम से कम 95% , 96%..... जैसी पोलिंग नहीं हो जाती?
....नहीं नहीं साहब मुझे मत बताइए कि बड़ी कयामत हो जाएगी. संसाधन कहाँ हैं इसके लिए? लॉ ऐण्ड ऑर्डर का क्या होगा?....आखिर पूरे संसार में ऐसे ही होता है! हम में कौन सुर्खाब के पर लगे हैं !!.....हमारे पास ठीक से कराने के लिए लोग कहाँ हैं?.
इस देश ने कर दिखाया है. बानगी देखिए..शायद आप भूल गए हैं:
- एक निर्वाचन आयुक्त सनक जाता है नौटंकी देखते देखते... और पूरा तंत्र एक ही चुनाव में बदल जाता है. जनता जान जाती है कि अनुशासन के साथ चुनाव कैसे होते हैं. प्रक्रिया जारी रहती है. इलेक्सन दर इलेक्सन.
- एक प्रधानमंत्री और उसका वित्त मंत्री निर्णय लेते हैं... शोर शराबा उठता है देश बेंच रहे हैं. दूसरी ग़ुलामी .... वगैरह... अर्थव्यवस्था खुल जाती है. परिणाम आप के सामने हैं.
- एक प्रधानमंत्री निर्णय लेता है. पूरे भारत को सड़कों के जाल से जोड़ने का. बहुत बवाल. कितनी ज़मीन जाएगी! सीमेंट और बाकी सामान कितने महंगे हो जाएँगें/गए.... सब के बावज़ूद काम हुआ और चल रहा है और सीमेंट कितना ही महंगा हो गया हो गांवों से ले कर शहरों तक घर बनने कम नहीं हुए.....
- एक कं. निर्णय लेती है..सब के हाथ मोबाइल होगा. बहुत फायदा होगा.... और कुछ ही सालों में अंतर...मेरा मोबाइल घनघना रहा है..बीबी जी को बोलना आज काम पर देर से आऊँगी. अर्जेण्ट हो तो मेरे नं. पर मिस कॉल कर देना !!
----- बड़ी लम्बी लिस्ट है गिनाने बैठूं तो. जब अलग अलग क्षेत्रों में क्रांतिकारी कायापलट हो सकती है तो इस क्षेत्र में क्यों नहीं ? विकल्प गिनाता हूँ:
- इनकम टैक्स रिटर्न की तर्ज़ पर यह अनिवार्य कर दिया जाय कि हर वोटर कार्ड धारक को वोट देना ही होगा. वह इंटर्नेट पर करे, ए टी एम से करे या बूथ पर जाए. पोलिंग दो दिन हो और दो दिन के एक्स्टेंडेड पिरियड में पोलियो ड्रॉप की तर्ज पर घर घर जा कर वोट दिलवाए जाँय. इंटर्नेट या ए टी एम या खाताधारक बैंकों के आन लाइन साइट या इलेक्सन कमीशन के साइट पर भी चारो दिन वोटिंग के ऑप्सन उपलब्ध रहें.
- ई मेल सेवा देने वाली कम्पनियॉ आज कल असीमित मेल बॉक्स साइज दे रही हैं. ज़रा सोचिए करोड़ों खाता धारकों को असीमीत मेल बॉक्स साइज अगर एक प्राइवेट कं दे सकती है तो करोड़ों मतदाताओं का ऑन लाइन बायोमेट्रिक डाटा बेस क्यों नहीं बनाया जा सकता?
- क्यों नहीं सेटेलाइट लिंक के ज़रिए गांव गांव पोर्टेबल वोटिंग मशीनें नहीं घुमाई जा सकतीं? बायोमेट्रिक प्रिंट तो हर मत दाता के लिए यूनीक होगा. गांवों के भूलेख यदि ऑन लाइन उपलब्ध हो सकते हैं तो हर टोले पर पटवारी और लेखपाल जा कर वोट क्यों नहीं डलवा सकते.
- हर मतदाता को ए टी एम कॉर्ड के पासवर्ड की तर्ज पर एक टेम्पोरेरी पासवर्ड दिया जा सकता है. अपने मोबाइल से इस का प्रयोग कर वह वोट कर सकता है.
अगर आप सोचें तो आप भी कुछ नायाब तरीका सुझा सकते हैं. यदि कुछ मस्तिष्क में आता है तो उसे पोस्ट करें. कैंची नस्ल के लोग जो हर बात को काटते ही रहते हैं और दोष दर्शन जिनका मौलिक स्वभाव है, मैं उनकी बात नहीं कर रहा.
समस्या यह है कि लोकतंत्र के नाम पर एक बहुत बड़ा षड़यंत्र चल रहा है और हम आप चुपचाप तमाशा कैसे देखते रह सकते हैं? आखिर इतनी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया को जो पाँच वर्षों में एक बार ही होती है, इतना जटिल, दुरूह और व्यय साध्य क्यों बना दिया गया है? कहीं यह प्रभु वर्ग की हमेशा सत्ता में बने रहने की चाल तो नहीं !...जरा मनन करें..................................जारी