रविवार, 27 मार्च 2011

नवकी... घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है!

बालम विदेस हैं। नवकी का करे? 
इस उजाड़खंड बरमंड में ससुर खाँसते रहते हैं और सास सुनगुन सूँघती रहती हैं। घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है जब कि  पलंग रात को चररमरर चर पर करती है। नवकी अपनी ही करवट उठान लेती है, लजाती है और फिर बालम को कोसती है  - मुआँ एक किल्ला तक ठीक न करा पाया, अब नवकी का करे? इस चररमरर का का करे? 
नवकी किरकेट देखती है। लागा झुलनिया के धक्का बलम कलकत्ता। अरे नाहीं रे छक्का! कोई इतनी नई मेहरारू को छोड कर जाता है भला?
चौका छक्का ना रे नवकी! सब धक्का है। तोहरी झुलनिया क नाहीं रे! माया क धक्का। देखो मोबैल पर, टीवी पर तिरकिथ धिन तिरकित धिन मधुबन में राधिका, धुत्त पगली! माया नाचे रे! बालम की मुरलिया बाजे रे। थिरकित थिरकित, छनछन न न न नोट गिरे स न न न। 
कहाँ बाड़ू sss हो पतोहा? नवकी नाक सिकोड़ती है। मुसकाती है। दाँत न दिखाना, अम्मा जी कहिन। घुघ्घुट काहें तनले, रे पतोहा। पुरान जमाना गइल रे। इहाँ आव देखीं। लपर लपर। हमहूँ कहीं, ललना काहे विदेस गैल? लै लो मुँहदेखाई। वोकर त करम फूट गैल। सनीचरी जस मेहरारू। 
नवकी रोय रही। झुलनिया में कौनो धक्का नाहीं, रे सच्चो! नवकी रिमोट से खेलती है। बालम रिमोट। हींच लाव। सनेसा भेजो। टीवी पर सनेसा। अरे ई त हरदम इतर फुलेला किरीम पवडर पोत झाड़ बनारसी। ई का सनेसा दीहें। नवकी टीवी में इतर फुलेल की खुशबू भी सूँघ लेती है। मास्साब पढ़ाये रहन। एडीसन। कवनो एडीसन अब काहें न होत? टीवी से बालम चलि जाऊँ। टीवी से खुशबू सुनगुन लै लेऊँ। 
नवकी सिसकारी ले रही है। ससुर खाँस रहे हैं। सास सुनगुन ले रही है। 
मउगा चैत मेहरारू के दिमाग खराब कै दिहिन है। बुढ़िया मुसका रही है। मालिक त खँसतो मउगा। लुग्गा के कोर दाँत दबा रही है बुढ़िया। 
घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है...           

7 टिप्‍पणियां:

  1. ..ई झाड़ बनारसी का होत है? सांड़ बनारसी से नहीं मिले का ?
    ..सदियों पुरानी माया, सदियों पुराना बुढ़ौना । फर्क है तो सिर्फ नवकी पतोहिया के दर्द का। कहीं कहीं तो नवकी पतोहिये दर्द दे रही हैं नवके भतार को।

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  2. घर के बुढ़ौना में उमंग की आस,
    जीवन अतृप्त, प्रतीक्षा की प्यास।

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  3. मउगा चैत मेहरारू के दिमाग खराब कै दिहिन है.

    बिलकुल के दिहिन है क्योंकि घर को बुढ़ौना लगा है...

    मस्त..

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