गुरुवार, 17 मार्च 2011

जोबना हमार गोल गोल अरे बकलोल!

फागुन गीतों में अभिधा, लक्षणा और व्यञ्जना तीनों शब्द शक्तियाँ मिलती हैं। हमारे गाँव के पास के एक गाँव चितामन चक (चक चिंतामणि) के रामबली मास्टर साहब फगुआ और नौटंकियों के बहाने ज्वलंत मुद्दे उठाने के लिये जाने जाते थे। बचपन में उन्हें सुना था। आज सोचा कि भोजपुरी में स्वयं प्रयास करूँ।
कुछ संकेत दे दे रहा हूँ। पहला अंतरा 'नरेगा' के भ्रष्टाचार और किसानी के चौपट होने से सम्बन्धित है। दूसरा अंतरा चौपट होती ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था से, तीसरा सत्तासीन प्रभु वर्ग द्वारा जनता को लूट कर विदेशी बैंकों में धन जमा करने से, चौथा जो कि बाकियों से दुगुना है, मनुष्य द्वारा प्रकृति के दोहन और आपदाओं (जापानी भूकम्प) से, पाँचवाँ आप समझ ही गये होंगे ;) और छ्ठा क्रिकेट में व्याप्त भ्रष्टाचार और जनता की आँखमूँदू दीवानगी से सम्बन्धित है।
'जोबना' उरूज के लिये प्रयुक्त हुआ है, 'उरोज' के लिये नहीं ;)। 'ताक न रे!' की टेक आँख खोलने की चेतावनी है। 'बकलोल' देसज शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ देसभाषा और हिन्दी दोनों में निष्णात 'आचारज जी' ही बता पायेंगे :) मैं तो एक अदना सा विद्यार्थी हूँ। 'गोल' शब्द आकार के लिये नहीं बल्कि व्यवस्था की प्रकृति को दर्शाने के लिये प्रयुक्त हुआ है - चाहे जितना घूम लो, वापस पहुँचोगे उसी दर पर।
चित्र जहाँ से लिया है, वहाँ इसे पाकिस्तानी होली का चित्र बताया गया है। राम जाने क्या सच है? इतनी हिन्दू लड़कियाँ एक साथ इतनी उन्मुक्त होकर वहाँ होली खेल सकती हैं? पता नहीं। वहाँ इतनी बची भी हैं? फोटो प्यारा लगा, लगा दिया। आप आँख मूँद सकते हैं या बिना देखे जा सकते हैं। :) 
कुछ ईश्वरभीरु धर्मप्राण पवित्र संस्कारी जन को मेरे ब्लॉग के चित्रों से कष्ट पहुँचता है, इसके लिये उनसे क्षमा। एक पुरुष का अस्तित्त्व और पूर्णता, स्त्री के जननी, भगिनी, पुत्री, सखी,अंकिनी और पत्नी आदि सभी रूपों से है। स्त्रियाँ इस मामले में क्या सोचती हैं, मुझे नहीं पता। पता लगाने के प्रयास कर पिटने की कोई इच्छा नहीं है :) .... शुचिता और अश्लीलता दोनों के अतिरेक मुझे अप्राकृतिक और त्याज्य लगते हैं... अपनी अपनी दृष्टि है...सब केहू काकी त केकरे ओर ताकीं?... बुरा न मानो होली है! .... सर र र र sssss    
           _______________________________
जोबना हमार गोल गोल, अरे बकलोल, ताक न रे!
माया से हमरे लोग बउराइल
छूटल गरीबी अमीरी आइल
मुरगा छटके थरिया, रोटी बड़ी पनछोर
अरे बकलोल, ताक न रे!         ~1~


इसकूले के खिचड़ी में मूस मलाई
पंडीजी खाईं हरिजन जी खाईं
लइका कुल खाई लइकी कुल खाई
लाँणे के दक्खिन पढ़इया, उत्तर में पोल
अरे बकलोल, ताक न रे!        ~2~


तोहरे पसीना फसल इतराये
लूटें बहिन जी मैडम जी भाये
साहब मिलावें फोन, धन घन इटलिया शोर
अरे बकलोल, ताक न रे!        ~3~


जोबना में हमरे बहुते गरमी
लुग्गा हटावें सइयाँ बेशरमी
धधकल करेजवा जालिम, उठल लहरिया जोर
अरे बकलोल, ताक न रे!
पोछिटा खुलल जो सइयाँ जी भगलें
गरमी के डर से दुख सब जगलें
नोचे कपार बड़ि जोर, आइल जबर भुँइडोल
अरे बकलोल, ताक न रे!       ~4~
 
बड़की ईमानी बड़ी परधानी
पोसे पगड़िया सगर बैमानी
नाचें उघारे भड़ुआ, फाइल घुमे गोल गोल
अरे बकलोल, ताक न रे!       ~5~ 
 
हमरे जोबन के एगारे दीवाने
करोड़ीदेई जनता बहुते सयाने
फर्जी घुमावें बल्ला, गेना चले चोर चोर
अरे बकलोल, ताक न रे !       ~6~






27 टिप्‍पणियां:

  1. मजे दार आप की होली जी, यह चित्र तो किसी हास्टल का लगता हे, जहां हो ली ही हो ली हे धन्यवाद

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  2. १. पांचवा नहीं समझे, समझाना चाहिये था।

    २. ’आचारज’ आप ही हैं, बकलोल का अर्थ आप ही बताईये।

    ३. फ़ोटो प्यारा है, आँख मूंदकर और बिना देखे बता रहे हैं।

    ४. कुछ इच्छायें ऐसे ही प्रकट की जाती हैं कि कहा जाता है इच्छा नहीं है।

    ५. .सब केहू काकी त केकरे ओर ताकीं? नहीं .सब केहू काकी त का करें बाकी?

    होली है न? :))

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  3. होली पर दिए खोल ..अरे बकलोल ..
    अद्भुत जबरदस्त एक कालजयी रचना ...
    मस्त मस्त ....
    बाकी तक़रीर से भी हर्फ़ दर हर्फ़ सहमत ...ज्यादातर लोग विमुक्त नहीं हो पायें हैं तमाम वर्जनाओं से !
    यह कविता श्याद उन्हें विमुक्त कर सके -सा विद्या या विमुक्तये !

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  4. पुनश्च 1
    काकी शब्द की व्युत्पत्ति बताईये -मैं वैयाकरण तो नहीं मगर कोशिश कर सकता हूँ -
    जो कौए की फीमेल है वही काकी है मूल लुक में ..काका तो होशियार के सेंस में है ....
    काक सरीखा काका मेरा
    काकी मेरी काली कूटी
    भर कर आँख जो देखे उसे
    जाए उसकी आँखे फूटी ....
    सब काकी बनने में कहें ककुआयी रहती हैं ?

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  5. बताइए.....

    अब इतने सुलन्झड़े गीत के गोल गोल बोल पर किस बकलोल को आपत्ति हो सकती है.....जिस किसी शुचितावादी को आपत्ति हो, उसे या तो अपनी शुचितावादिता पर गुमान है या फिर ....छद्म शुचितावादिता की आड़ में 'डायमण्ड कॉमिक्स' पढ़ने वाला लंठ :)

    होली के मौके पर अपनी ओर से भी सर्रर्र.....और हां....इसी गीत को दबंग के 'ताकते रहते' धुन पर दबंगई से पिरोया जा सकता है......बिसवास न हो तो 'मुन्नी झण्डू बाम' वालों से पूछ लो :)

    कम्पोजिंग हम खुद करेंगे :)

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  6. पुनश्च २
    बोर्ड के परीक्षार्थियों से प्रश्न
    गिरिजेश राव की प्रसिद्द ब्लॉग कविता 'जोबना हमार गोल गोल अरे बकलोल! के इस वाक्यांश की सोदाहरण व्याख्या कीजिये -
    "लाँणे के दक्खिन पढ़इया,"
    (कापी आचारज जी जांचेंगे ....)

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  7. होली की आपको ,उर्मि को ,परिवार घर बार को और आपके सभी सुधी पाठकों को रंगारंग बधाईयाँ !

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  8. मुरगा छटके थरिया, रोटी बड़ी पनछोर

    इसकूले के खिचड़ी में मूस मलाई
    हिला दिया

    तोहरे पसीना फसल इतराये
    लूटें बहिन जी मैडम जी भाये
    झुमा दिया

    फर्जी घुमावें बल्ला, गेना चले चोर चोर

    कहां कहां मारा

    कहां कहां पछड़ा

    होली है

    बेहतर

    सब केहू काकी त केकरे ओर ताकीं?... बुरा न मानो होली है! .... सर र र र sssss

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  9. अभी तो...ताक न रे.. की टेक पर मोहित हूँ।
    यह एक पुरानी परंपरा है। होली में इसका अच्छा प्रयोग देखने को मिलता है। स्व0 चकाचक बनारसी होली के दिन अस्सी कवि सम्मेलन में इसका बेहतरीन प्रयोग करते थे। विसंगतियों पर कुठाराघात इतना चरम होता था कि हजारों की संख्या में खड़े श्रोता हर हर महादेव के नारे के साथ उनके स्वर से स्वर मिलाते थे। आपके लिखे हर एक अंतरे पर कुछ न कुछ लिखने की इच्छा हो रही है। ...फुर्सत में।

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  10. पढ़ि के जोगीरा लजाय मेहरारू
    लंठन के भाषा बा फूहर उघारू
    होली के मौका लवंडा ई नौका
    गाँण खोल नाचे के बाटे उतारू

    ब्लॉगर बजावें लें ढोल, ताक न रे...

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  11. jiya ho raja lakh-lakh baris.....
    rachana tohar delak mishri ke tis....
    mukhva pe aaeel fagua ke geet......
    bola sarararararararararararara........


    fagunaste.

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  12. गिरिजेश जी - कहने की ज़रुरत ही नहीं है कि आपकी लेखनी कितनी आकर्षक है - बहुत खूब लिखा है |....... अब यहाँ ये लिखना अजब सा तो है - लेकिन पता नहीं - next post तक आप कहीं फिर टिपण्णी निकल दें - इसलिए - PLEEEEEZZZ अधूरे प्रेमपत्र की अगली किश्त के लिए इंतज़ार अब खत्म भी कीजिये - मनु तो इतने नहीं - लेकिन उर्मी बड़ी याद आती हैं!!!

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  13. विसंगतियों के अनगिनत रंगों को मनोरम शब्दों में रंग पिचकारी में डाल जो बौछार छोडी गयी है इस गीत के माध्यम से...बस कलेजे में जा लगी है...

    तनी ताक न रे...

    यह टेर जन जन के ह्रदय तक पहुंचे और और उसे झिंझोर जागने को मजबूर कर दे, यही कामना है...

    क्या गीत सुनवाया आपने....कोटि कोटि आभार.....

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  14. धन्य है पूर्वांचल की मस्ती, कैसे कैसे कटु सत्य को भी कैसी बेबाकी से फाग में प्रस्तुते कर दिया..... बधाई के पात्र है आप .

    @स्त्रियाँ इस मामले में क्या सोचती हैं, मुझे नहीं पता। पता लगाने के प्रयास कर पिटने की कोई इच्छा नहीं है :)

    आचारज, देख लीजिये, मौका भी है, कोशिश कीजिए....... दो चार पढ़ गए तो समझा देंगे मथुरा कि लठमार होरी है.

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  15. Sgilpa mehta ने कहा…
    @ - PLEEEEEZZZ अधूरे प्रेमपत्र की अगली किश्त के लिए इंतज़ार अब खत्म भी कीजिये - मनु तो इतने नहीं - लेकिन उर्मी बड़ी याद आती हैं!!!


    इतना आलस मत कीजिए कि अधुरा प्रेमपत्र आपकी अधूरी कृति मानी जाए.... शिल्पा से मैं भी सहमत हूँ, उर्मी-मन्नू प्रसंग को उसकी पूर्णता की और पहुंचाए.... आभार.

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. :)
    पढ़ लिया, मन प्रसन्न हुआ, ऊपर की टीपें भी पढ़ीं, क्या कहूँ?
    हाँ! सभी अंतरे पसंद आए।
    आपको और आपके सभी प्रियजनों को होली की ढेरों शुभकामनाएँ।

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  18. i m speechless!aap engineer ho achhi baat hai ,lekhak hote to aur bhi ,bahut hi achhi baat hoti.lanth puran ya lanth mahacharcha ko kitab ke roop main publish kara de ,up ,bihar main hi itni bik jayegi ki best seller ho jayegi .main to bau ka fan hoon ...aur bau ke janam par sohar ..jhoolhu ye laal jhulahu ....main aap ko padhta hoon aur pandit chhanu lal ki mishra ki aawaaz main ye sohar sunta hoon ....tulsi das to kahte hain ki aankh ko jeebh nahin aur jeebh ko aankh nahi ...kaise sundarta bakhanu ?lekin main to aankh aur kaan dono se aap ki rachna ka maza leta hoon .....main swabhav se benami nahin hoon ,lekin naam batane ka bhi shaukin nahin ...kaun jaanta hai mujhe ?kabhi email karoonga ,ummid hai apni pategi mitra ....i really respect u .i like u but i like u baau more....hahahaa

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  19. हमने जोबना को उरोज के लिए नहीं पढ़ा पर ये तो समझाइये कि उरूज किसका ? और हम इसे देखना चाहें तो कहां पर देखें :)

    रंगपर्व पर जोबना देखने के लिए लालायित मित्रों की ओर से देख चुके मित्रों , आई मीन अदने से विद्यार्थियों को बधाइयां :)

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  20. गिरिजेश जी,
    धुआं उठा दिया.
    चित्र और "जोबना हमार गोल गोल अरे बकलोल!" की संगति देखकर सचमुच बकलोल होने का जी करता है.
    जो चीज जिसके दक्खिन गयी है वह त्रासदी है.
    जियत रहिं.. होली शुभ हो.

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  21. पाचवाँ तो मैडम जी को समर्पित है :) अनेजा जी समझैं अब !

    अली जी का सवाल मेरा भी कि आखिर उरुज किसका ?

    बकलोल मतलब बुद्धि का भोला-भोथर ! जिसे रेणु के मैला आँचल में ”बुडबक” कहा गया है। याद दिलाता हूँ:

    रे बुडबक बभना ,
    चुम्मा लेवे में जात नहीं जावे !!

    बकलोल में बंग भाषा की ”बोका” वाली ध्वनि भी मिला दीजिये। भोजपुरी का ”भकचोन्हर” भी इसके अर्थ को व्यक्त करता है।

    कुल मिलाइके मजा आवा, चित्र लै लिहे अहन :) हैप्पी होली !!

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  22. ऐसी वाली तस्वीर की ईमेल आपको भी आती है क्या ?:) बढ़िया है !

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  23. भाई गिरिजेश जी.......
    आपने बचपन की गँवई होली की यादें ताज़ा कर दी......
    बहुत आभार....

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