चित्र तो कलै देख लिया था, मुदा हम मेहनी पर मोहित भये :)
यहां मुम्बई में भी एक मेहंदी का झुरमुटा बहुत ही आकर्षित करता है। फूले होने पर उसकी एक खास महक होती है जिससे आकर्षित हो मैं अक्सर सड़क की पटरी बदल कर मेंहदी के झुरमुटे के नीचे से गुजरता हूँ :)
गाँव में भी मेरे घर एक मेहंदी थी। जब कभी मिंयाने से लड़कियाँ मेहंदी के पत्तें खोंटने( तोड़ने) आती थी, पता चल जाता था कि किसी के यहां ब्याह पड़ा है। रात में जब हवा चलती तो उसकी भीनी भीनी महक आसपास के घरों में पहुँचती थी। वैसे भी गाँव में अगरबत्ती, साबुन, तेल, फूलों की महक आदि बड़ी दूर तक पहुंचते है। यहां शहरों में तो साला कितना भी गमकौआ सेन्ट हो, जैसे सब जड़ हो जाते हैं।
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देहात चित्रमाला।
जवाब देंहटाएंगाँव के माहौल की याद आ गयी ...
जवाब देंहटाएंआभार !
लगता है पर्व-त्योहार पर गाँव का पूर्णानन्द उठाया गया है। मिस्सी की रोटी और बथुये का साग? घेंवड़ा और बोड़ा क्या होता है?
जवाब देंहटाएंघेंवड़ा - नेनुआ, गलका, तोरी, तरोई(हमलोगों के यहाँ तरोई दूसरी सब्जी को बोलते हैं।)
जवाब देंहटाएंबोड़ा - लोबिया
अभी बथुये का सीजन नहीं आया।
ok, thanks!
जवाब देंहटाएंघेवड़ा , बोड़ा ... सब्जियों के ये नाम फिर से याद आये !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र!
waah .... aur tasveerein share kijiye
जवाब देंहटाएंkawan gaon ka photua hai....theek hai..
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
हमारे घर के हाते में भी बाबू करेला, बोदा, लौकी, तोरई, बैंगन, टमाटर उगाते थे. आपने घर की याद ताजा कर दी. चित्र से भी ज्यादा अच्छे शीर्षक हैं.
जवाब देंहटाएंइस बार घोरठ वालों ने दंगल का नेवता नहीं दिया। हम बाद में जान पाये कि दंगल हुआ था, नहीं तो जरूर आये होते। वैसे अच्छा ही हुआ, कुछ रुपये बच गये। :)
जवाब देंहटाएंग्राम्य छवियाँ आज भी जीवंत
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद किसी को बोड़ा (हम लोग बोड़ो कहते हैं) कहते सुना!!
जवाब देंहटाएंचित्र तो कलै देख लिया था, मुदा हम मेहनी पर मोहित भये :)
जवाब देंहटाएंयहां मुम्बई में भी एक मेहंदी का झुरमुटा बहुत ही आकर्षित करता है। फूले होने पर उसकी एक खास महक होती है जिससे आकर्षित हो मैं अक्सर सड़क की पटरी बदल कर मेंहदी के झुरमुटे के नीचे से गुजरता हूँ :)
गाँव में भी मेरे घर एक मेहंदी थी। जब कभी मिंयाने से लड़कियाँ मेहंदी के पत्तें खोंटने( तोड़ने) आती थी, पता चल जाता था कि किसी के यहां ब्याह पड़ा है। रात में जब हवा चलती तो उसकी भीनी भीनी महक आसपास के घरों में पहुँचती थी। वैसे भी गाँव में अगरबत्ती, साबुन, तेल, फूलों की महक आदि बड़ी दूर तक पहुंचते है। यहां शहरों में तो साला कितना भी गमकौआ सेन्ट हो, जैसे सब जड़ हो जाते हैं।