हम अपनी ओर से कुछ नहीं कहेंगे, न जोड़ेंगे, न घटायेंगे। आप लोग खुदे समझिये और समझाइये:
ई हमार रचल नाहिं, रघुवीर सहाय के रचल हेs।
ए हरचरना! पढ़ु जोर जोर से!
ऐ सँवारू, रटि लs, अगिला विधान दिवस पर गा के सुनइहs।
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है।
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ई हमार रचल नाहिं, रघुवीर सहाय के रचल हेs।
ए हरचरना! पढ़ु जोर जोर से!
ऐ सँवारू, रटि लs, अगिला विधान दिवस पर गा के सुनइहs।
हाँ, हरचरना ज़ोर ज़ोर से पढ़ी तब्बे न मनमोहना सुनी... एकर त कानो डीयूटी बाजव त बा... देश के नाहि, उहे देश के बिदेशी पतोहिया के...
जवाब देंहटाएंकेहकर रचल ह एहसे हरचरना के कउनो मतबल नई खे ...बाकी बतिया त हरचरना के मन के कहल गइल ह...ईहे बड़का बात ह । एक दिन हरचरना हमरा से कहत रहे कि अब अज़ादी के परब ढकोसला हो गइल बा...कब तक गान्हीं बाबा आ नेहरू जी के जयकारा करीं ...काहे के करीं? हम कहलीं कि एह बारे मं गिरिजेश जी बतिअइहं ...। बता दिह हो हरचरना के।
जवाब देंहटाएंॐ मार, मार, मार, मार
जवाब देंहटाएंअपोजीशन के मुंड बनें तेरे गले का हार
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आंग
हम चबायेंगे तिलक और गाँधी की टांग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल, तुलसीदल
बिल्वपत्र, चन्दन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून, मरघट का फोता
हमेशा हमेशा राज करेगा -मेरा पोता-
(बाबा नागार्जुन)
जय हो.... बाबा की.
हटाएंसुनके रक्त में शीशा फिरने लगता है...
हटाएंसुदामा पाँड़े:
जवाब देंहटाएंदोपहर हो चुकी है
हर तरफ़ ताले लटक रहे हैं
दीवारों से चिपके गोली के छर्रों
और सड़कों पर बिखरे जूतों की भाषा में
एक दुर्घटना लिखी गई है
हवा से फड़फड़ाते हिन्दुस्तान के नक़्शे पर
गाय ने गोबर कर दिया है।
मगर यह वक़्त घबराये हुए लोगों की शर्म
आँकने का नहीं
और न यह पूछने का –
कि संत और सिपाही में
देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कौन है!
आह! वापस लौटकर
छूटे हुए जूतों में पैर डालने का वक़्त यह नहीं है
बीस साल बाद और इस शरीर में
सुनसान गलियों से चोरों की तरह गुज़रते हुए
अपने-आप से सवाल करता हूँ –
क्या आज़ादी सिर्फ़ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है?
और बिना किसी उत्तर के आगे बढ़ जाता हूँ
चुपचाप।
ओह....किनका लिखा हुआ है यह...?
हटाएंधूमिल यानि सुदामा पांडेय
हटाएंकविता में
जवाब देंहटाएंअब कोई शब्द छोटा नहीं पड़ रहा है :
लेकिन तुम चुप रहोगे;
तुम चुप रहोगे और लज्जा के
उस गूंगेपन-से सहोगे –
यह जानकर कि तुम्हारी मातृभाषा
उस महरी की तरह है, जो
महाजन के साथ रात-भर
सोने के लिए
एक साड़ी पर राज़ी है
सिर कटे मुर्गे की तरह फड़कते हुए
जनतन्त्र में
सुबह –
सिर्फ़ चमकते हुए रंगों की चालबाज़ी है
और यह जानकर भी, तुम चुप रहोगे
OH.....
हटाएंउन्होंने जनता और ज़रायमपेशा
जवाब देंहटाएंऔरतों के बीच की
सरल रेखा को काटकर
स्वास्तिक चिन्ह बना लिया है
और हवा में एक चमकदार गोल शब्द
फेंक दिया है – 'जनतन्त्र'
जिसकी रोज़ सैकड़ों बार हत्या होती है
और हर बार
वह भेड़ियों की ज़ुबान पर ज़िन्दा है!
........
हटाएंमैं अपने भविष्य के पठार पर आत्महीनता का दलदल
जवाब देंहटाएंउलीच रहा हूँ।...
युवकों को आत्महत्या के लिए रोज़गार दफ्तर भेजकर
पंचवर्षीय योजनाओं की सख्त चट्टान को
कागज़ से काट रहा हूँ।...
मैकमोहन रेखा एक मुर्दे की बगल में सो रही है
और मैं दुनिया के शान्ति-दूतों और जूतों को
परम्परा की पालिश से चमका रहा हूँ।...
उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम-कोरिया,वियतनाम
पाकिस्तान, इसराइल और कई नाम
उसके चारों कोनों पर खूनी धब्बे चमक रहे हैं।
मगर मैं अपनी भूखी अंतड़ियाँ हवा में फैलाकर
पूरी नैतिकता के साथ अपनी सड़े हुए अंगों को सह रहा हूँ।
भेड़िये को भाई कह रहा हूँ।...
मेरा गुस्सा-
जनमत की चढ़ी हुई नदी में
एक सड़ा हुआ काठ है।
लन्दन और न्यूयार्क के घुण्डीदार तसमों से
डमरू की तरह बजता हुआ मेरा चरित्र
अंग्रेजी का 8 है।
हटाएंनिःशब्द करती....
अद्भुद अद्वितीय...
सच है, बच गये, नहीं तो इतना गरियाने में नप गये होते, आज के टाइम में।
जवाब देंहटाएंकाहे असीम बनने निकले हैं? कोई पुलिसिया वारंट ले के आता ही होगा... भ्रष्ट-राष्ट्र-गीत का घोर अपमान... माने राष्ट्रदोह!!!! भले ही दूसरे की रचना है, मगर टांगा तो आपने अपने ब्लॉग पर है! :)
जवाब देंहटाएंजय हो जय जय कार हो.... बहुत दिन बाद दिल का गुब्बार निकाले हो गुरुवर.
जवाब देंहटाएंउफ़ ... इतना आक्रोश ...
जवाब देंहटाएंआपने तो निकाल लिया ... जो न निकाल सके वो क्या करे ...
स्तब्ध और निःशब्द ....
जवाब देंहटाएंबाबाजी की जय...हिरदय से जय...उनका आभार है हमपर..
औ आपका भी आभार..
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अथ मास्साब छात्र गाथा पढ़ी जाए -
मास्साब- अच्छा अब ई त बता, के राष्ट्र गान में कै गो नदी, पहाड़ औ प्रदेस का नाम है..?
कमला - आठ गो प्रदेस माने कि राज्य, दू गो पहाड़ और दू गो नदी...
मास्साब - वाह ...देखो त, केतना होनहार औ तेज बच्ची है..भेरी गुड बेटा, भेरी गुड...
गोपिया - लेकिन मास्साब.. ऐसे आधा अधूरा नाम सब काहे है गीत में..?? अब पूरा राष्ट्र का गीत है, त इमे ऐसे आधा अधूरा नाम सब नै न होया चाहिए...ऊ पर भी देखिये, "सिंध" त अब अपने देस में हइये नै, ई है अब पकिस्तान में, त राष्ट्रगीत में ई एतना बरस से सिंध सिंध काहे घोसा रहा है..चाहे त सिंध के पाकिस्तान से लै के गीत सही किया जाए आ न त गीते बदल के कौनो एकूरेट राष्ट्र गीत बनाया आ गया जाए , तबै न ई कुल ठीक रहेगा..
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तफसील से पढाई खातिर टाइम मिले तो ब्लोगवा पर सादर आमंत्रित..
जी, चहुँपते हैं अभी!
हटाएंऊँची हुई मशाल हमारी
जवाब देंहटाएंआगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।
--- पन्द्रह अगस्त 1947 को गिरिजाकुमार माथुर
क्या बात है!
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